Friday, August 4, 2023

गणित का अर्थ और प्रकृति Meaning and Nature Of Mathematics

गणित की शुरुआत ऋग्वेद से हुई है।

गणित एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है. इसलिए इसकी शिक्षाओं का आदान-प्रदान या हस्तांतरण करने से पहले यह जानना आवश्यक और महत्वपूर्ण है कि गणित क्या है? इसे क्यों सिखाया जाना चाहिए?और इसकी प्रकृति क्या है? 

 गणित शब्द की उत्पत्ति 'गण' धातु से हुई है जिसका अर्थ है 'गिनना'। 

 'गणित' शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द ' मैथेमेटा' से हुई है, जिसका अर्थ है 'चीजें' (विषय) जिनका अध्ययन किया जाता है। 

 गणित का शाब्दिक अर्थ :-  वह शास्त्र जिसमें गणनाओं की प्रधानता होती है !

 गणित अंक ,संख्याओं , अक्षरों, प्रतीकों आदि संक्षिप्त संकेतों का वह विज्ञान है जिसकी सहायता से परिमाण, दिशा एवं स्थान का बोध होता है।


 परिभाषा :-

  • लिंडसे:- गणित भौतिक विज्ञानों की भाषा है और निश्चय ही मानव मस्तिष्क में उत्पन्न इससे उत्तम अन्य कोई भाषा नही है। ( प्रशंसात्मक मूल्य) 
  • कोरेंट तथा रॉबिंस:- गणित मानव मस्तिष्क द्वारा वर्णित इच्छाओं का क्रियात्मक पक्ष है। 
  • रोजर बेकन:-  गणित सभी विज्ञानों का प्रवेश द्वार ( सिंह द्वार) और कुंजी है। 
  • हॉगवेन - गणित सभ्यता एवं संस्कृति का दर्पण है।( सांस्कृतिक मूल्य) 
  • बेंजामिन पीयर्स :- गणित एक विज्ञान है जो आवश्यक निष्कर्ष निकालता है।( बौद्धिक मूल्य)
  • गैलीलियो :- गणित वह भाषा है जिसमें ईश्वर ने संपूर्ण विश्व या ब्रह्मांड को लिखा है।
  • बर्थलॉट :- गणित भौतिक अनुसंधान का एक आवश्यक उपकरण है। 
  • आइंस्टीन :- गणित क्या है, यह उस मानवीय सोच का परिणाम है जो अनुभवों से स्वतंत्र और सत्य के अनुरूप है। 
  • हार्वर्ड समिति :- गणित को अमूर्त प्रकृति के विज्ञान के रूप में परिभाषित किया जा सकता।
  • कांट :- विज्ञान केवल उसी सीमा तक सत्य है, जहाँ तक उसमें गणित का प्रयोग किया गया है।
  • लीबनिज़ :- संगीत अंकगणितीय संख्याओं के संबंध में मानव अवचेतन मन का एक आधुनिक गुप्त अभ्यास है।(सौंदर्यात्मक तथा कलात्मक मूल्य)
  • हर्बर्ट स्पेंसर:- मनोविज्ञान में गणित का उपयोग न केवल संभव है बल्कि आवश्यक भी है।
  • लॉक:- गणित वह तरीका है जिसके द्वारा बच्चों का मन या मस्तिष्क विकसित होता है तर्क करने की आदत स्थापित हो जाती है।
  • डेविड व्हीलर:- अधिक गणित जानने की अपेक्षा यह जानना अधिक उपयोगी है कि गणितीयकरण कैसे किया  जाए।
  • वेदांग ज्योतिष:- मोरों के सिर पर मुकुट और साँपों के सिर पर रत्नों की भाँति, वेदांग नामक विज्ञानों में गणित का स्थान सर्वोच्च है।
  • कॉम्टे :- गणित के बिना शुरू होने वाला सभी वैज्ञानिक ज्ञान झूठा है - यह त्रुटिपूर्ण है।
  • डटन:- गणित तार्किक विचार, सटीक कथन और सत्य कथन शक्ति प्रदान करता है.( नैतिक मूल्य)
  • नेपोलियन- देश की प्रगति का गणित की प्रगति से गहरा संबंध है।( सामाजिक मूल्य) 
  • युंग:- यदि विज्ञान की रीढ़ की हड्डी गणित को हटा दिया जाए तो संपूर्ण भौतिक सभ्यता निस्संदेह नष्ट हो जायेगी।  लोहे, गैस और बिजली के इस युग में आप चाहे जिस भी दृष्टि से देखें,गणित सर्वोपरि है. 
  • प्लेटो :- जो छात्र ज्यामिति नहीं समझ सकते वे इस विद्यालय में नहीं आ सकते।
  • बार्टेड रसैल :- गणित एक ऐसा विषय है , जिसमें हम यह भी जानते हैं कि हम किसके बारे में बात कर रहे हैं और न ही यह जान पाते हैं कि हम जो कह रहे हैं वह सत्य है। 
  • मार्शल एच स्टोन :- गणित ऐसा अमूर्त व्यवस्था का अध्ययन है जो अमूर्त तत्त्वों से मिलकर बनी है। इन तत्त्वों को मूर्त रूप में परिभाषित किया गया है। 
  • हब्श :- गणित मस्तिष्क को तीक्ष्ण एवं तीव्र बनाने का वही काम करती है जो किसी औजार को तेज करने में काम आने वाला पत्थर।
  • गॉस :- गणित, विज्ञान की रानी है।
  • बेल :- गणित को विज्ञान का नौकर माना जाता है। -
  • गिब्स:- गणित एक भाषा है।
  • कॉमटे :- वह सभी वैज्ञानिक शिक्षा जो गणित को साथ लेकर नहीं चलती, अनिवार्यत: अपने मूल रूप में दोषपूर्ण है। 
  • व्हाइटहैड - व्यापक महत्त्व की दृष्टि से गणित सभी प्रकार की औपचारिक निगमनात्मक तार्किक योग्यता का विकास है। 

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर गणित के संबंध में सारांश के रूप में हम कह सकते हैं कि-

1. गणित स्थान तथा संख्याओं का विज्ञान है।


2. गणित गणनाओं का विज्ञान है।

3. गणित माप-तौल (मापन), मात्रा (परिमाण) तथा दिशा का विज्ञान है। 

4. गणित विज्ञान की क्रमबद्ध, संगठित तथा यथार्थ शाखा है। 

5. इसमें मात्रात्मक तथ्यों तथा संबंधों का अध्ययन किया जाता है।

6. यह विज्ञान का अमूर्त रूप है। 

7. यह तार्किक विचारों का विज्ञान है।

8. गणित के अध्ययन से मस्तिष्क में तर्क करने की आदत स्थापित होती है। 

9. यह आगमनात्मक तथा प्रायोगिक विज्ञान है।

10. गणित वह विज्ञान है जिसमें आवश्यक निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

गणित की प्रकृति (Nature of Mathematics) :-

विद्यालय पाठ्यक्रम में सम्मिलित किए जाने वाले प्रत्येक विषय के कुछ उद्देश्य तथा उसकी संरचना होती है जिसके आधार पर उस विषय की प्रकृति निश्चित होती है। गणित की प्रकृति को निम्न बिन्दुओं द्वारा भली-भाँति समझा जा सकता है-

1. गणित में संख्याएँ, स्थान, दिशा तथा मापन या माप-तौल का ज्ञान प्राप्त किया जाता है।

2. गणित की अपनी भाषा है। भाषा का तात्पर्य- गणितीय पद, गणितीय प्रत्यय, सूत्र, सिद्धान्त तथा संकेतों से है जो विशेष प्रकार के होते हैं तथा गणित की भाषा को जन्म देते हैं।

3. गणित के ज्ञान का आधार हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ हैं। 

4. इसके ज्ञान का आधार निश्चित होता है जिससे उस पर विश्वास किया जा सकता है।

5. गणित का ज्ञान यथार्थ, क्रमबद्ध, तार्किक तथा अधिक स्पष्ट होता है,जिससे उसे एक बार ग्रहण करके आसानी से भुलाया नहीं जा सकता।

6. गणित में अमूर्त प्रत्ययों को मूर्त रूप में परिवर्तित किया जाता है, साथ ही उनकी व्याख्या भी की जाती है। 

7. गणित के नियम, सिद्धांत, सूत्र सभी स्थानों पर एक समान होते हैं जिसमें उनकी सत्यता की जाँच किसी भी समय तथा स्थान पर की जा सकती है।

8. इसमें सम्पूर्ण वातावरण में पाई जाने वाली वस्तुओं के परस्पर सम्बन्ध तथा संख्यात्मक निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

9. इसके अध्ययन से प्रत्येक ज्ञान तथा सूचना स्पष्ट है तथा उसका सम्भावित उत्तर निश्चित होता है।

10.इसके विभिन्न नियमों, सिद्धांतों, सूत्रों आदि में संदेह की संभावना नहीं रहती है। 

11. गणित के अध्ययन से आगमन, निगमन तथा सामान्यीकरण की योग्यता विकसित होती है।

12. गणित के अध्ययन से बालकों में आत्म-विश्वास और आत्म-निर्भरता का विकास होता है।

13. गणित की भाषा सुपरिभाषित, उपयुक्त तथा स्पष्ट होती है।

14. गणित के ज्ञान से बालकों में प्रशंसात्मक दृष्टिकोण तथा भावना का विकास होता है। 

15. इससे बालकों में स्वस्थ तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित होता है।

16. इसमें प्रदत्तों अथवा सूचनाओं को आधार मानकर संख्यात्मक निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

17. गणित के ज्ञान का उपयोग विज्ञान की विभिन्न शाखाओं यथा- भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान तथा अन्य विषयों के अध्ययन में किया जाता है। 

18. गणित विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के अध्ययन में सहायक ही नहीं,बल्कि उनकी प्रगति तथा संगठन की आधारशिला है। 

19. इसकी प्रकृति अमूर्त से मूर्त की ओर होती है 

20. गणित का सभी विषयों के साथ सहसंबंध होता है ।


Thursday, March 2, 2023

Nature of Math's गणित की प्रकृति

 1. गणित की अपनी भाषा है। भाषा का अर्थ गणितीय अवधारणाओं, सूत्रों, सिद्धांतों और संकेतों से है, जो एक विशेष प्रकार के होते हैं और गति की भाषा को जन्म देते हैं।

2. गति में अंक, स्थान, दिशा और माप या माप का ज्ञान प्राप्त होता है।

3. नियम, सिद्धान्त, गति के सत्र सभी स्थानों पर एक समान होते हैं जिससे किसी भी समय और किसी भी स्थान पर उनकी सत्यता का परीक्षण किया जा सकता है।

4. गणित के ज्ञान का आधार हमारी इन्द्रियाँ हैं।  इसके ज्ञान का आधार निश्चित है जिससे इस पर विश्वास किया जा सकता है।

5. गति का ज्ञान वास्तविक, व्यवस्थित, तार्किक तथा अधिक स्पष्ट होता है, जिसे एक बार प्राप्त कर लेने पर उसमें आसानी से सुधार नहीं किया जा सकता।

6. गणित में अमूर्त अवधारणाओं को ठोस अवधारणाओं में परिवर्तित किया जाता है, साथ ही उनकी व्याख्या की जाती है।

7. इसमें प्रापर्टी में पाये गये माल के सम्बन्ध तथा संख्यात्मक निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

8. इसके अध्ययन से प्रत्येक ज्ञान और सूचना स्पष्ट हो जाती है और उसका एक सम्भावित उत्तर निश्चित होता है।

9. इसके विभिन्न नियमों, सिद्धान्तों, अधिवेशनों आदि में किसी प्रकार की शंका की सम्भावना नहीं है।

10. गति के अध्ययन से आगमनात्मक, निगमनात्मक तथा सामान्यीकरण की क्षमता का विकास होता है।

11.गणित के अध्ययन से बालकों में आत्म-विश्वास एवं स्वावलंबन का विकास होता है।

12. गति की भाषा सुपरिभाषित, उपयुक्त और स्पष्ट होती है।

13. गणित के ज्ञान के साथ बच्चों में प्रशंसात्मक दृष्टिकोण और भावना का विकास होता है।

14. इसमें संख्याओं या सूचनाओं (संख्यात्मक) को आधार मानकर संख्यात्मक निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

15. गति के ज्ञान का उपयोग विज्ञान की विभिन्न शाखाओं जैसे भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान और अन्य विषयों के अध्ययन में किया जाता है।

16. गणित न केवल विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के अध्ययन में सहायक है, बल्कि यह उनकी प्रगति और संगठन का आधार है।

17. इससे बच्चों में स्वस्थ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है।  उपर्युक्त कथनों के आधार पर हम गति की प्रकृति को समझ सकते हैं और यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि वास्तव में गति की संरचना, जो उसकी प्रकृति का आधार है, अन्य विषयों से अधिक प्रबल है।

रोजर बेकन ने ठीक ही कहा है कि गणित सभी विज्ञानों का प्रवेश द्वार और कुंजी है।





1. Ganit has its own language.  The meaning of language is from mathematical concepts, formulas, principles and signs, which are of a special type and give birth to the language of motion. 

 2. Knowledge of numbers, place, direction and measurement or measurement is obtained in motion.  

3. The rules, principles, sessions of motion are the same at all places so that their correctness can be tested at any time and at any place.  

4. The basis of the knowledge of Ganit is our senses.  The basis of its knowledge is certain from which it can be believed. 

 5. The knowledge of motion is real, systematic, logical and more clear, which cannot be easily improved by receiving it once.  

6. In Ganit, abstract concepts are converted into concrete concepts, as well as they are explained.  

7. In this, the relationship between the goods found in the property and numerical conclusions are drawn.  

8. Every knowledge and information becomes clear from its study and its one possible answer is certain.  

9. There is no possibility of doubt in its various rules, principles, sessions etc. 

 10. The study of movement develops the ability of inductive, deductive and generalization. 

 11. The study of Ganit develops self-confidence and self-reliance in children.  

12. The language of motion is well defined, appropriate and clear. 

 13. Appreciative attitude and spirit develop in children with the knowledge of mathematics. 

 14. In this, numerical conclusions are drawn by considering numbers or information (numerical) as the basis.

  15. Knowledge of motion is used in the study of various branches of science like physics, chemistry, biology and other subjects.

16. Mathematics is not only helpful in the study of various branches of science, but it is the basis of their progress and organization. 

 17. This develops healthy and scientific outlook in children.  On the basis of the above statements, we can understand the nature of movement and can conclude that in fact the structure of movement, which is the foundation of its nature, is stronger than other subjects.  

Roger Bacon has rightly said that mathamatics is the gateway and key to all the sciences.


General Aims Of Maths गणित के सामान्य उद्देश्य

 

You will be able to read this unit. 

1.Will you be able to explain the adverse development in your shabs.

 2. Proposal of governance, which is related to the people - Will be able to make it. 

3. The types of practices will be able to compete the basuments of the truthfulness and conditions of the complaints.

 4. Sanctuary, voogan, attribution, shelter and identity in the world. 

5. Select the truthful issues of the people and the families

 6. Can be able to identify them and identify the essence of the people.

 7. At the same time, will be able to velve the disasters, pretentoms and promotions.

 8. Will be able to vary in the vibrant type.

 9. Will be able to appreciate the monitoring of the honor in the governor along with the defense of the constitution. 

10. The difference between the high-meaning level will be made in the selection of the program.


आप इस इकाई को पढ़ सकेंगे।

 1. क्या आप अपने shabs में प्रतिकूल विकास की व्याख्या करने में सक्षम हो। 

2. शासन का प्रस्ताव, जो लोगों से संबंधित है - इसे बनाने में सक्षम हो जाएगा। 

3. प्रथाओं के प्रकार शिकायतों की सच्चाई और शर्तों के अधीनस्थता की प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम होंगे। 

4. अभयारण्य, वोगन, एट्रिब्यूशन, आश्रय और दुनिया में पहचान। 

5. लोगों और परिवारों के सच्चे मुद्दों का चयन करें 

6. उन्हें पहचानने और लोगों के सार की पहचान करने में सक्षम हो सकते हैं। 

7. एक ही समय में, आपदाओं, pretentoms और प्रचार को खतरे में डाल दिया जाएगा। 

8. जीवंत प्रकार में भिन्न हो पाएगा।

 9. संविधान की रक्षा के साथ राज्यपाल में सम्मान की निगरानी की सराहना करने में सक्षम होगा। 

10. उच्च-अर्थ स्तर के बीच का अंतर कार्यक्रम के चयन में किया जाएगा।

Sunday, July 17, 2022

शिक्षण सूत्र TEACHING MAXIMS

 शिक्षण के सूत्र (Maxims of Teaching)


"शिक्षण सूत्र शिक्षण प्रक्रिया में विशेष विधियों का ज्ञान कराते हैं जिन्हें ध्यान में रखकर शिक्षण करके शिक्षक अपने छात्रों की उपलब्धि में गुणात्मक सुधार कर सकते हैं।"

प्रमुख शिक्षण बिन्दु

शिक्षा के कुछ निश्चित उद्देश्य होते हैं। इन
उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए ही साधन के रूप में शिक्षण सूत्रों का प्रयोग किया जाता है । अच्छे शिक्षण की एक मुख्यविशेषता यह है कि छात्रों को जो भी विषयवस्तु
पढ़ायी/सिखाई जाये वे उसे भलीभाँति सीख व समझ
लें। उन्हें सीखने के लिए प्रेरित करना तथा कक्षा में विषय
शिक्षण में उनकी रुचि व ध्यान प्राप्त करना अध्यापक की कुशलता पर निर्भर करता है और शिक्षक की
कुशलता शिक्षण विधियों, सिद्धान्तों, शिक्षण सूत्रों, छात्रों की क्षमताओं के समुचित ज्ञान पर निर्भर है। इनकी
जानकारी व समुचित प्रयोग द्वारा वह अपने शिक्षण तथा सीखने की क्रियाओं को प्रभावी बना सकता है।

चर्चा के बिन्दु
  1. कक्षा में शिक्षण के समय अध्यापक के सामने क्या समस्यायें आती हैं ?
  2. शिक्षण में आने वाली समस्याओं को वह कैसे दूर कर सकता है ?
  3. शिक्षण सूत्र का अर्थ- (Meaning of Teaching Maxims)
  4. कक्षा कक्ष में प्रत्येक विषय शिक्षक के सामने महत्वपूर्ण प्रश्न होते हैं कि-
  5. मूल पाठ का प्रारम्भ कैसे किया जाये ?
  6. शिक्षण कब और किस क्रम में किया जाये ?
  7. बच्चों का ध्यान कैसे आकर्षित किया जाये ?
  8. पाठ व विषय में उनकी रुचि कैसे उत्पन्न की जाये ?
  9. शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग कब, कैसे और कहाँ पर किया जाये ?
शिक्षकों की उपरोक्त कठिनाइयों का समाधान करने के लिए मनोवैज्ञानिकों व शिक्षा शास्त्रियों ने अपने
अनुभवों व विचारों को सूत्र रूप में प्रस्तुत किया है जिन्हें शिक्षण के सूत्र कहा जाता है ।
 

ये सूत्र उस मार्ग की ओर संकेत करते हैं जिस पर चलकर शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया सुगम, रुचिकर, प्रभावशाली व
वैज्ञानिक बन जाती है।


 ये सूत्र 'बाल प्रकृति' पर आधारित हैं। अतः प्रत्येक अध्यापक को शिक्षण कला में सफलता व दक्षता प्राप्त करने के लिए अपने विषयज्ञान के साथ-साथ शिक्षण सूत्रों का ज्ञान होना भी
आवश्यक है कि किस सूत्र का प्रयोग उसे किस स्थान पर और कैसे करना है ताकि उसके छात्र विषयवस्तु को सरलता से समझ सकें।

और भी जाने-

कामेनियस एवं हरबर्ट स्पेन्सर आदि ने अपने अनुभवों के आधार पर शिक्षण के कुछ सामान्य नियम निर्धारित किये थे, जिन्हें बाद में शिक्षण सूत्रों के नाम से जाना जाने लगा।



शिक्षण सूत्र की परिभाषा (Definition of Teaching Maxims)
रेमण्ट के अनुसार-
" शिक्षण सूत्र पथ प्रदर्शन करते हैं जिसमें सिद्धांत से व्यवहार में सहायता के लिए अपेक्षा की जाती है।"


ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार- 
'सूत्र एक आम सच्चाई है जो विज्ञान एवं अनुभव से ली जाती है। ये अध्यापक को सुचारु रूप से शिक्षण में मदद करते हैं विशेष रूप से प्रारम्भिक कक्षाओं में पठन-पाठन की क्रिया आसान हो जाती है, क्योंकि ये सभी सूत्र छात्र को ध्यान में रखकर बनाये गये हैं।"


उपर्युक्त परिभाषाओं पर विचार करने से स्पष्ट हो जाता है कि 'शिक्षकों द्वारा अध्ययन-अध्यापन को प्रभावशाली बनाने के लिए एवं छात्रों को अध्ययन के प्रति जागरुक तथा क्रियाशील बनाने हेतु जो तकनीकें एवं विधियां प्रयोग में लाई जाती हैं वह शिक्षण सूत्र कहलाती हैं ।"



विचार करें और बताएं- शिक्षक को शिक्षण सूत्रों को ध्यान में रखकर शिक्षण क्यों करना चाहिए ?
शिक्षण के विभिन्न सूत्र ( Various maxims of Teaching)
कक्षा शिक्षण में शिक्षकों द्वारा विभिन्न शिक्षण सूत्रों का
प्रयोग किया जाता है। 

ये सूत्र निम्नलिखित हैं।
  1. सरल जटिल की ओर
  2. ज्ञात से अज्ञात की ओर
  3. स्थूल से सूक्ष्म की ओर
  4. पूर्ण से अंश की ओर
  5. अनिश्चित से निश्चित की ओर 
  6. प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर
  7. विशिष्ट से सामान्य की ओर 
  8. विश्लेषण से संश्लेषण की ओर 
  9. मनोवैज्ञानिक क्रम से तर्कसंगत की ओर
  10. अनुभव से युक्तियुक्त की ओर
  11. प्रकृति का अनुसरण 
1. सरल से जटिल की ओर (From simple to complex)
इस सूत्र का आशय यह है कि छात्रों को पहले सरल व फिर जटिल बातों की जानकारी दी जाये जिससे
पाठ व विषय में उनकी रुचि व ध्यान लगा रहे। यह क्रम बाल विकास के अनुकूल व मनोवैज्ञानिक है क्योंकि बच्चा आयु बढ़ने व मानसिक विकास के साथ जटिल बातों कोभी समझने लगता है। यदि अध्यापक प्रारम्भ में ही कठिन बातों/ तथ्यों को छात्रों को बताने लगे तो वे उसे समझने में असमर्थ रहेंगे इससे शिक्षक का प्रयास व्यर्थ हो जायेगा।

शिक्षक सदैव ध्यान रखें-

हमारा कार्य और हमारे पाठ हमारे छात्रों के मानसिक स्तर के अनुकूल होने चाहिए अर्थात् सरल या कठिन बालकों की दृष्टि से होना चाहिए न कि शिक्षक के अनुसार ।
उदाहरणार्थ


* हमारे देश का इतिहास छोटी-छोटी कहानियों के रूप में बच्चों को सरल प्रतीत होगा परन्तु युद्धों, घटनाओं, सन्धियों व शासन प्रबन्ध के विस्तृत रूप में यह अत्यन्त कठिन लगेगा
 ।

2. ज्ञात से अज्ञात की ओर (From known to unknown)


इस सूत्र के अनुसार शिक्षक को बालकों के पूर्व ज्ञान को जाँचकर उसी के आधार पर उन्हें नया ज्ञान देना चाहिए अर्थात् उसे पहले वे बातें बतानी चाहिए जिन्हें वह जानता है फिर उस विषयवस्तु पर आना चाहिए जिन्हें वह नहीं जानता क्योंकि सर्वथा नवीन तथ्य बच्चे के लिए कठिन होते हैं। किसी पाठ में
छात्रों की रुचि व ध्यान तभी संभव है जब उसमें जानकारी व नयापन दोनों सम्मिलित हों। अतः शिक्षक को पढ़ाने से पूर्व छात्रों का पूर्वज्ञान अवश्य जान लेना चाहिए।



ध्यान रखें- जिस बात को हम जानते हैं वह हमारे लिए सरल और जिस बात को हम नहीं जानते हैं,
वह बात हमारे लिए कठिन होती है ।


उदाहरणार्थ- भाषा शिक्षण में वर्णमाला की जानकारी कराते समय प्रत्येक वर्ण से सम्बन्धित वस्तु की जानकारी करायें तत्पश्चात् उसी वर्ण से सम्बन्धित एक से अधिक वस्तुओं की जानकारी कराई जा सकती है। 

जैसे- क से कमल, कलम, कलश, कबूतर तथा ख से खरगोश, खत, खड़ाऊं आदि

@ गणित में पहाड़ा सिखाने से पहले छात्रों को गिनती का ज्ञान होना चाहिए तभी वह पहाड़ा सुगमता से सीख सकेंगे।


चर्चा करें-
बच्चों को पहले कठिन विषयवस्तु सिखाया जाना चाहिए या सरल ?
सीखने सिखाने में बच्चों के पूर्व अनुभवों को शामिल किया जाना चाहिए। यदि हाँ तो क्यों ?


3. स्थूल से सूक्ष्म
i a (From concrete to abstract)


बच्चों के शारीरिक विकास के साथ-साथ उनका
* हरबर्ट स्पेन्सर ने इस सूत्र को अपनाने पर विशेष बल दिया है। उनके अनुसार-"हमारे पाठ का प्रारम्भ स्थूल वस्तुओं से किया जाये और उसका अन्त सूक्ष्म बातों से हो।"

मानसिक विकास भी
होता है। शैशवावस्था में वह
सूक्ष्म / अमूर्त वस्तुओं के बारे में नहीं जानता परन्तु स्थूल/मूर्त पदार्थों को सरलता से जान लेता है । आयु बढ़ने के साथ-साथ उसमें सूक्ष्म भावों/तथ्यों/ वस्तुओं को समझने की क्षमता का विकास होता जाता है ।
अतः शिक्षकों को छोटे बच्चों को पढ़ाते समय प्रारम्भ में केवल मूर्त
वस्तुओं का ही प्रयोग करना चाहिए और उनकी सहायता से सूक्ष्म बातों को बताना चाहिए ।



उदाहरणार्थ :-

गणित में जोड़, घटाना सिखाने के लिए गेंद, गोली, कंकड़ आदि का प्रयोग किया जा सकता है।


भूगोल में नदी, पर्वत, समुद्र, झीलों, तालाबों कुओं आदि का ज्ञान प्रत्यक्ष प्रदर्शन (भ्रमण) या फिर मॉडल,
चित्र, चार्ट आदि के माध्यम से सरलतापूर्वक कराया जा सकता है।


4. पूर्ण से अंश की ओर (From whole to part)
इस सूत्र का आधार गेस्टॉल्टवाद ( अवयवीवाद) है । गेस्टॉल्ट मनोवैज्ञानिकों के अनुसार हम किसी
वस्तु को उसके पूर्ण रूप में ही देखते हैं। बालक के सामने कोई वस्तु आने पर वह सर्वप्रथम पूर्ण वस्तु को
ही देखता, जानता व समझता है उसके विभिन्न अंगों/ अंशों को नहीं । जैसे- बालक सर्वप्रथम किसी वृक्ष
को उसके पूर्ण रूप में ही देखता है उसके भागों के बारे में अलग -अलग नहीं । शिक्षक को उसके इस पूर्व
ज्ञान से लाभ उठाकर उसे वृक्ष के अंगों जड़, तना, डाली पत्ती, फल, फूल आदि के बारे में जानकारी देना
चाहिए।

इसे भी जाने-

यह सूत्र काव्य शिक्षण में विशेष रूप से लागू होता है जिसमें पहले सम्पूर्ण कविता का पाठ करना उचित होता है तत्पश्चात् एक-एक पंक्ति का, क्योंकि प्रारम्भ में एक - एक पंक्ति पढ़ाने से कविता की मूल भावना बच्चों की समझ में नहीं आती है ।


उदाहरणार्थ


कम्प्यूटर का ज्ञान कराने के लिए पहले कम्प्यूटर व फिर उसके भागों जैसे- मॉनीटर, की बोर्ड, सी0पी0यू0, माउस, प्रिन्टर का ज्ञान कराया जाये।


भूगोल में पहले भारत का मानचित्र दिखाकर फिर राज्यों का ज्ञान कराया जाये।

स्वयं करने की बारी-

भाषा, गणित, विज्ञान, सामाजिक विषय से ऐसे प्रकरणों की पहचान करें जिनमें स्थूल से सूक्ष्म व
पूर्ण से अंश शिक्षण सूत्र का प्रयोग किया जा सकता है।


5. अनिश्चित से निश्चित की ओर (From Indefinite to Definite)


बालकों के बौद्धिक विकास का क्रम अनिश्चित से निश्चित की ओर होता है । मानसिक विकास(ज्ञानेन्द्रियों के विकास) व अनुभव के साथ- साथ उसके विचारों में स्पष्टता व निश्चित आती है प्रारम्भ में बच्चों को किसी घटना, तथ्य, वस्तु का स्पष्ट व निश्चित ज्ञान नहीं होता है । अनुभव परिपक्वता के अभाव व कल्पना की अधिकता के कारण वह उनके बारे में अपने मन में कुछ विचार बना लेते हैं जो अस्पष्ट,
अनिश्चित व कई बार गलत भी होते हैं। अतः शिक्षक को चाहिए कि वह उनके अनिश्चित ज्ञान को स्पष्ट व निश्चित करे तथा गलत धारणाओं /जानकारियों में भी सुधार करें


उदाहरणार्थ- 
किसी देश /प्रदेश, प्रमुख स्थल व वहां की विशिष्टताओं से सम्बन्धित छात्रों के अस्पष्ट व अनिश्चित ज्ञान को शिक्षक वहाँ के मानचित्र, चित्र, मॉडल, चार्ट व उदाहरणों के माध्यम से निश्चित व स्पष्ट
कर सकता है


6. प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर (From Seen to Unseen)


इस सूत्र के अनुसार छात्रों को सबसे पहले उनके द्वारा देखी गई वस्तुओं के बारे बताना चाहिए तत्पश्चात् उन वस्तुओं के बारे में, जिन्हें वह नहीं देख सकता है। अर्थात् उन्हें पहले उनके वर्तमान की जानकारी कराई जाये फिर उसी की सहायता से भूत या भविष्य की, क्योंकि जो वस्तुएं हमारे सामने होती हैं उनका ज्ञान हम आसानी से प्राप्त कर लेते हैं अतः शिक्षण के समय शिक्षकों को छात्रों को अप्रत्यक्ष
वस्तुओं/ तथ्यों/घटनाओं की जानकारी देने के लिए पहले प्रत्यक्ष वस्तुओं, घटनाओं के उदाहरण प्रस्तुत
करना चाहिए।

उदाहरणार्थ :- 

भाषा में चित्र पठन व अन्य विषयों में सहायक सामग्री ( चार्ट, चित्र, मॉडल, मूर्त वस्तुओं) के माध्यम
से बच्चों को अप्रत्यक्ष वस्तुओं के बारे में सरलता से जानकारी दी जा सकती है ।

सामाजिक विषय में ग्लोब मॉडल, चित्र आदि के माध्यम से संसार के विविध भागों के बारे में
बताया जा सकता है।


7. विशिष्ट से सामान्य की ओर (From Particular to General)

इस सूत्र के अनुसार अध्यापक को छात्रों के सामने पहले किसी प्रकरण से सम्बन्धित कई उदाहरण
प्रस्तुत करना चाहिए फिर उन्हीं की सहायता से सिद्धान्त व नियम 
स्पष्ट करना चाहिए। स्वयं उदाहरण प्रस्तुत करके उन्हें निष्कर्ष
की ओर' ले जाना भी कहते हैं।
निकालने के लिए प्रेरित करना चाहिए। यह सूत्र बालकों को
निरीक्षण, परीक्षण, विचार, चिन्तन आदि के अवसर प्रदान करता
हैं। अतः इसमें बच्चे रुचिपूर्वक सीखते हैं जिससे प्राप्त ज्ञानस्थायी होता है । विज्ञान, गणित तथा व्याकरण शिक्षण में यह सूत्रविशेष उपयोगी है।
आगमन विधि में भी इसी सूत्र का
प्रयोग किया जाता है अर्थात्, पहले
उदाहरण प्रस्तुत करके फिर निष्कर्ष
पर पहुंचते हैं।
इस सूत्र को 'दृष्टान्त से सिद्धान्त'  कहते हैं 

उदाहरणार्थ 

संज्ञा, सर्वनान, क्रिया, विशेषण पढाते समय पहले इनके एक से अधिक उदाहरण प्रस्तुत करना
चाहिए फिर उन्हीं उदाहरणों को समेकित करते हुए इनकी परिभाषा को स्पष्ट करना चाहिए।


संस्कृत/हिन्दी में सूक्ति एक विशिष्ट विचार से सम्बन्धित होती है परतु उसकी व्याख्या सामान्य
सन्दर्भों में की जाती है।


प्रशिक्षुओं हेतु- विज्ञान, गणित व व्याकरण में विशिष्ट से सामान्य की ओर' शिक्षण सूत्र को उदाहरण के
माध्यम से अपने प्रशिक्षण कक्ष में प्रस्तुत करें।


8. विश्लेषण से संश्लेषण की ओर (From Analysis to synthesis)


विश्लेषण बालक को किसी बात को भली प्रकार समझने में सहायक होता है तो संश्लेषण उस बात के ज्ञान को निश्चित रूप प्रदान करता है। इस सूत्र के अनुसार पहले समग्र रूप में कराकर
समस्या के ऐसे जीवित टुकड़े करना
फिर उसके विविध भागों को व्याख्या व विश्लेषण द्वारा स्पष्ट किया
जाना चाहिए तत्पश्चात उन भागों या खण्डों को आपस में जोड़कर
और खण्डों में प्राप्त ज्ञान को जब
पूरी जानकारी कराकर निष्कर्ष तक पहुंचना चाहिए। शिक्षण में
जोड़कर समझाया जाता है तो उसे
विश्लेषण व संश्लेषण दोनों आवश्यक हैं।

उदाहरणार्थ
छात्रों को यदि उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों की जानकारी देना है तो सर्वप्रथम उत्तर प्रदेश फिर
उसके सभी जिलों की स्थिति व विशेषताओं की जानकारी करायी जा सकती है और अन्त में सभी को
पुनः समेकित करते हुए उत्तर प्रदेश की जानकारी की जा सकती है।


9. मनोवैज्ञानिक क्रम से तर्कसंगत की ओर (From Psyehological to Logical)

शिक्षा में बाल मनोविज्ञान के महत्व के कारण यह माना जाता है कि बालक की शिक्षा उसकी रुचियों, रूझानों, क्षमताओं व जिज्ञासाओं के अनुसार
प्रदान करनी चाहिए और जैसे-जैसे उसके ज्ञान
"छोटी कक्षाओं के लिए हमें मनोवैज्ञानिक क्रम का प्रयोग
का विकास होता जाये, उसे विषय का तार्किक व
करना चाहिए और ज्यों-ज्यों बालक ऊँची कक्षाओं में
क्रमबद्ध ज्ञान प्रदान किया जाये जिससे उनकी पहुँचते जायें त्यों-त्यों हमें तर्कात्मक क्रम का प्रयोग करते
रुचि व ध्यान पाठ व विषय में बना रहे।
जाना चाहिए।

उदाहरणार्थ
भाषा में शिक्षण का तार्किक क्रम वर्ण एवं ध्वनि के पश्चात् वाक्य सिखाने का है जबकि मनोवैज्ञानिक
क्रम के अनुसार पहले वाक्य फिर वर्ण व ध्वनि के बारे में जानकारी करानी चाहिए।
बच्चों को इतिहास में मुगलकालीन स्थापत्य की जानकारी देना है तो मनोवैज्ञानिक विधि के अनुसार बच्चों
को पहले स्थापत्य कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थलों के चित्रों को दिखाकर चर्चा करें जिससे वे पाठ में
रुचि लें फिर तार्किक ढंग से उनकी स्थापत्य सम्बन्धी विशेषताओं को बताएं।
10 अनुभव से युक्तियुक्त की ओर (From Empirical to Rational )
अनुभूत ज्ञान वह होता है जिसे बालक अपने निरीक्षण व अनुभव द्वारा प्राप्त करता है। उसके इस अपूर्ण व अनिश्चित ज्ञान को वास्तविक व स्थायी बनाने के लिए उसे तर्कयुक्त बनाना चाहिए। अल्पायु के बालकों में तर्क व विचार के प्रयोग की क्षमता बड़ों की अपेक्षा कम होती है। उनकी जानकारियों का आधार
उनका अपना अवलोकन व स्वानुभव होता है परन्तु इन अनुभवों के कारणों को खोजने में बाल मस्तिष्क
असफल रहता है। अतः शिक्षक को बच्चों के अनुभव द्वारा प्राप्त ज्ञान को विविध विधियों/ सामग्रियों के
प्रयोग द्वारा तर्क संगत व युक्तियुक्त बनाने की कोशिश करनी चाहिए ।
उदाहरणार्थ-
सूर्योदय व सूर्यास्त को वह प्रतिदिन देखता है गर्मी के बाद बरसात फिर जाड़ा आता है, सर्दियों में
कोहरा भी वह देखता है, बरसात में जोरदार बारिश वह प्रतिवर्ष देखता है परन्तु ऐसा क्यों होता है और
इसके क्या कारण हैं ? इसे वह नहीं समझ पाता। अतः शिक्षक को कारण सहित व उदाहरण,
टी0एलoएम0 के माध्यम से उनकी जिज्ञासाओं का समाधान करना चाहिए जिससे उसका अनुभवजन्य
ज्ञान युक्तियुक्त बन सके।


11. प्रकृति का अनुसरण (Follow to Nature)
इस सूत्र का आशय है कि बालक की शिक्षा दीक्षा उसकी प्रकृति के अनुसार होनी चाहिए । शिक्षक
को उन्हें सिखाते समय उनकी आयु, मानसिक स्तर, क्षमताओं, रुचियों को सदैव ध्यान में रखना चाहिए।
पाठ्यक्रम, पाठ्यवस्तु, पाठ्यपुस्तक, शिक्षण विधि, शिक्षण अधिगम सामग्री व गतिविधियाँ सभी कुछ बच्चों के
शारीरिक व मानसिक विकास व आवश्यकताओं के अनुरूप होने चाहिए। यदि हमारी शिक्षा व शिक्षण बाल
विकास में बाधक बनते हैं तो वह अनुचित, अप्रासंगिक व अमनोवैज्ञानिक हैं । अतः शिक्षक के रूप में हमें इस
सूत्र का अनुसरण करके छात्रों के स्वाभाविक विकास में सहायता करने को तत्पर रहना चाहिए।


शिक्षण सूत्रों की शिक्षण में उपयोगिता (Utility of Teaching Maxims in Teaching)
  1. शिक्षण के द्वारा ही शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती है । शिक्षा का महत्वपूर्ण और अन्तिम लक्ष्य छात्रों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना है। इस दृष्टि से शिक्षण का मुख्य उद्देश्य अधिगम है। 
  2. छात्रों में अधिगम प्राप्ति को सुनिश्चित करना शिक्षक का प्रमुख दायित्व है।  अपने दायित्व के कुशलतापूर्वक निर्वहन हेतु शिक्षक के लिए यह आवश्यक है कि वह शिक्षण की कला में दक्ष व निपुण हो ।
  3. शिक्षण सूत्र इस कार्य में उसके लिए मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हैं इनके प्रयोग द्वारा वह अपने शिक्षण को सरल, रुचिकर बोधगम्य व बालोपयोगी बना सकता है । साथ ही इनके प्रयोग द्वारा वह बच्चों की सम्प्राप्ति को अपेक्षित स्तर तक पहुंचा सकता है।
  4. अध्यापन की सफलता हेतु प्रत्येक शिक्षक को इनकी जानकारी व प्रयोग में दक्षता अनिवार्य है ।
  5. इससे कम समय व श्रम में वह बच्चों को सीखने हेतु प्रेरित करके अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
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निगमन विधि NIGMAN VIDHI

  निगमन विधि

प्रवर्तक -- प्लेटो


इस विधि मे बालकों को पहले नियम बता दिया जाता है और फिर बालकों को उदाहरण द्वारा उसी नियम का प्रयोग करना सिखाया जाता है।


परम्परागत विधि है।

शिक्षककेंद्रित विधि है।


#चार सोपान -- trick नि ऊ नि परी 

नियम➡️ उदाहरण➡️ निरीक्षण ➡️परीक्षण ।


1 प्राप्त ज्ञान अस्थाई ।

2 छात्र निष्क्रिय रहते हैं।

3 बड़ी कक्षाओं के लिये उपयोगी।

4 सबसे प्राचीन विधि।


  • शिक्षण सूत्र --( trick नि सा सू नि)
  • नियम से उदहारण की ओर।
  • अमर्त से मूर्त की ओर।
  • सामान्य से विशिष्ट की ओर।
  • सूक्ष्म से स्थूल की ओर।
  • अज्ञात से ज्ञात की ओर।



इसे सूत्र विधि /सिध्दांत प्रणाली/ पाठ्यपुस्तक प्रणाली भी कहते हैं।


निगमन विधि के गुण:-

1 इस विधि से साधारण शिक्षक भी सफलतापूर्वक पढ़ा सकता है।

2 समय तथा श्रम की बचत होती है।

3 इस विधि से ज्ञानार्जन तीव्र गति से होता है।

4 बालकों की स्मृति का विकास होता है।

5 इस विधि से ज्ञान देना सरल होता है।

6 यह एक व्यवहारिक विधि है।


दोष:-

1 अमनोवैज्ञानिक विधि है।

2 रटने पर आधारित विधि है।

3 प्राप्त ज्ञान अस्थाई होता है।

4 प्राथमिक स्तर पर उपयोगी नहीं है।

5 यह कक्षा कक्ष के वातावरण को नीरस बनाती है।

6 बालको मे तर्क वितर्क चिन्तन शक्ति का विकास नहीं हो पाता।



निगमन विधि के रूप --

1 सूत्र विधि:-

  • संस्कृत से आयी है।
  • व्याकरण की शिक्षा सूत्रों द्वारा दी जाती है।
  • हिन्दी मे इसका उपयोग न के बराबर है।
  • पाणिनी के अष्टाध्यायी पर आधारित है ।


2 पाठ्यपुस्तक विधि :-

अंग्रेजी से हिन्दी मे आयी है।

पाठ्यपुस्तक द्वारा व्याकरण की शिक्षा दी जाती है।




Monday, January 3, 2022

पुर्तगाली भाषा के शब्द






 एक पुर्तगाली

  तौलिया बाल्टी साबुन परात पतलून बोतल कनस्तर 

लेकर नहाने गया नहाने के बाद 

इस्पात के पीपा से अचार गोभी संतरा बिसकिट आलू अन्नानास पपीता काजू 

लेकर नास्ता किया फिर 

कमीज की बटन लगाकर आलपीन से फीता 

लगा कर मेज पर रखे गमले में

 पानी देकर नीलाम हो रहे कमरे की

 तरफ जाता है वहाँ से 

गोदाम जाकर कप्तान की अलमारी से 

मिस्त्री को चाबी  देता है। 


बोल्ड शब्द 2 3 बार ध्यान से पढ़े

फारसी भाषा के शब्द







एक 

ईरानी ईसाई उम्मेद दरगाह 

के पास 

पनाह 

लेकर 

अनार अमरूद गुलकंद जलेबी 

बेचता था

सुबह पैगम्बर को आईने  

में देखकर खुले 

आसमान 

के नीचे 

आसमानी करास्तानी 

की हुई 

खाकी

रंग की

 दर्जी से सिलवाई

हुई जेब में चाकू 

लेकर सीना 

तान कर नीम के नीचे ठेला लगाता था


बाजार में नाचीज नामर्द नाजायज बेहया बीमार 

लोग भी दर्जी के पास

 रफू कराने आते थे। 

एक दिन 

कमीना खुदगर्ज कल्ला गुलजार तमन्चा

लेकर बस में सवार होकर खून करने के 

बाबत खानदान को मिटाने आ गया

 उसकी मैयत पर राहगीर  और हिन्दी भाषी

लोग भी आये

 Bold शब्द 2 3 बार ध्यान से पढ़े। 

अरबी भाषा के शब्द

 










एक असली आशिक कमीज और ऐनक पहन कर फातिमा नामक एक इंसान से मुहब्बत करता था। 

उसके इश्क का अहसास अल्लाह और मीर को था

उसकी नजर और नीयत में ईबादत का इजहार था 

उसकी उल्फत मे करीब करीब खयाल रहता था। 

आशिक ने फ़ैसला किया कि महफ़िल में इजहार किया जाए। 

इस दौरान फातिहा जो फातिमा की बहन थी को उसकी खबर लग गयी

 उसने जिलेदार गरीब गालिब को गलत तरीके से खबर दी फातिमा को कुल्फी पसंद थी

यह मसला तहसील अदालत पहुचा और सियासी मसला बन गया इसमे सियासत होने लगी। 

मुकदमे में हलवाई इकबाल उमराव कबीर कसाई खलासी मुनीम मुमताज मुसलमान आदि हाजिर हुए। 

अदालत में कुरान रूपी किताब की कसम खा कर उसने अपना एलान कुबूल किया फातिमा के रमजान होने पर मना करने पर उसने औजार निकाल कर गुस्से में उसका क़त्ल कर दिया और उसका जनाजा जाहिल तरीके से बिगुल बजा कर तासीर कर दिया अब उसका जनाजा मुहर्रम की तरह मनाया जाता है। 




बोल्ड शब्द अरबी भाषा के शब्द है इन्हे 2 3 बार कहानी की तरह पढ़े। 



Monday, April 26, 2021

आशा है तो जीवन है

 motivate your self 🙆‍♀️🙆‍♀️🙆‍♀️🙆‍♀️ :- 


चार बुढ़िया थीं

उनमें विवाद का विषय था

कि हम में बड़ी कौन है


जब वे बहस करते-करते

थक गयीं तो उन्होंने तय

किया कि पड़ौस में जो

नयी बहू आयी है

उसके पास चल कर

फैसला करवायें


वह चारों बहू के पास गयीं

बहू-बहू ! हमारा फैसला कर दो

कि हम में से कौन बड़ी है 


बहू ने कहा कि आप

अपना-अपना परिचय दो 


पहली बुढ़िया ने कहा 

मैं भूख मैय्या हूं।मैं बडी हूं न


बहू ने कहा कि 

भूख में विकल्प है 

56 व्यंजन से भी भूख मिट सकती

है और बासी रोटी से भी


दूसरी बुढ़िया ने कहा 

मैं प्यास मैया हूं

मैं बड़ी हूं न 


बहू ने कहा कि 

प्यास में भी विकल्प है

प्यास गंगाजल और मधुर- रस

से भी शान्त हो जाती है और

वक्त पर तालाब का गन्दा पानी

पीने से भी प्यास बुझ जाती है


तीसरी बुढ़िया ने कहा

मैं नींद मैय्या हूं,मैं बड़ी हूं न 


बहू ने कहा कि 

नींद में भी विकल्प है

नींद सुकोमल-सेज पर आती है

किन्तु वक्त पर लोग कंकड़ पत्थर 

पर भी सो जाते हैं


अन्त में चौथी बुढ़िया ने कहा

मैं आस (आशा) मैय्या हूं,मैं बड़ी हूं न


बहू ने उसके पैर छूकर कहा कि

मैय्या,आशा का कोई विकल्प नहीं है


आशा से मनुष्य सौ बरस भी जीवित

रह सकता है,किन्तु यदि आशा टूट

जाये तो वह जीवित नहीं रह सकता

भले ही उसके घर में करोड़ों की

धन -दौलत भरी हो


यह आशा और विश्वास जीवन

की शक्ति है, इसके आगे

वह वायरस (कोरोना) क्या चीज है


संकट जरूर है, वैश्विक भी है

लेकिन इसी विष में से अमृत निकलेगा


*निश्चित ही मनुष्य विजयी होगा

*मनुष्यता जीतेगी |


तूफान तो आना है ..

आकर चले जाना है .

बादल है ये कुछ पल का ..

छा कर चले जाना है !!


*रुके रहिए घरों में ..*

*अपने लिए,

*अपने अपनों के लिए !

*

Saturday, August 29, 2020

वाद विवाद विधि तथा प्रश्नोत्तर विधि

वाद विवाद विधि :- 
बिना पूर्व तैयारी के कुछ कहना भाषण अर्थात व्याख्या करना, सम्यक अबबोध अर्थात ज्ञान प्रदर्शन, विमति अथवा विप्रलाप आदि क्रिया उस समय प्रचलित थी।

यह सभी क्रियाएं वाद विवाद  की प्रतीक हैं 

शास्त्रार्थ एवं संवाद इसी के उदाहरण हैं ।
जैसे गार्गी द्वारा किए गए प्रश्न ।
गुण:-  इससे छात्र में भाव प्रकाशन की शक्ति बढ़ती थी ।



प्रश्नोत्तर विधि:- 
प्राचीन काल में ओंकार शब्द के उच्चारण के बाद पाठ पढ़ाना आरंभ किया जाता था ।
व्याख्यान को प्रश्नोत्तर विधि से पढ़ाया करते थे।
प्रत्येक प्रश्न के पश्चात छात्र उनकी आवृत्ति करते थे ।
इस प्रकार संपूर्ण व्याख्यान समाप्त होता था ।
छात्र सक्रिय थे ।
स्व चिंतन तर्क एवं निरीक्षण शक्ति के विकास पर बल दिया जाता था।
इस विधि के प्रवर्तक सुकरात हैं।

व्याकरण शिक्षण विधियां

व्याकरण शिक्षण विधियां :-

व्याकरण शिक्षण को रोचक तथा आकर्षक बनाने के लिए विभिन्न विधियों का प्रयोग प्राचीन काल से ही किया जा रहा है।

इन विधियों की चर्चा दो प्रकार से की जाती है 

1 प्राचीन विधियां 2 नवीन विधियां।

 प्राचीन विधियां 

 1 सूत्र विधि :- इस विधि को पांडित्य विधि भी कहा जाता है ।

  • सूत्र विधि संस्कृत व्याकरण शिक्षण की प्राचीनतम विधि है । इसमें व्याकरण के नियमों को सूत्र के रूप में कंठस्थ कराया जाता है। 
  • कंठस्थ सूत्रों के आधार पर छात्र उस सूत्र के प्रयोग का ज्ञान प्राप्त करते थे।
  • सूत्रों का मुख्य उद्देश्य गागर में सागर था ।
  • इस विधि में संपूर्ण व्याकरण ज्ञान को छोटे-छोटे नियमों में बांध दिया जाता था।
  • इन छोटे-छोटे नियमों को ही सूत्र के नाम से पुकारा जाता है । इस विधि में छात्र सूत्रों को रट कर ही व्याकरण का सैद्धांतिक ज्ञान प्राप्त करता है।
  • रटने की प्रवृत्ति अधिक होने के कारण यह अमनोवैज्ञानिक विधि मानी जाती है 
  • यह विधि सामान्य से विशिष्ट की ओर शिक्षण सूत्र पर आधारित है।
  • संस्कृत व्याकरण शिक्षण की सर्वाधिक प्रयोग में आने वाली विधि है।
  • संस्कृत व्याकरण शिक्षण की यह सबसे प्राचीन विधि मानी जाती है।  इस विधि के प्रयोगकर्ता महर्षि पाणिनि है।

 सूत्र की परिभाषा :-  विद्वानों के अनुसार सूत्र के 6 लक्षण होते हैं ।

अल्पाक्षरं  - छोटे-छोटे अक्षरों का समूह ।

असंदिग्धं :-  संदेह से रहित ।

सारवद :- सारांश पूर्ण ।

विश्वतोमुखम :-  सदा सदा से चला आने वाला ।

अस्तोभं :-  अवरोध से रहित ।

अनुवद्यम :- निंदा से रहित ।

सूत्र के भेद :-  संस्कृत व्याकरण में प्रयुक्त होने वाले सूत्र छह प्रकार के माने जाते हैं ।

1 संज्ञा सूत्र 

2परिभाषा सूत्र 

3विधि सूत्र 

4नियम सूत्र 

5अतिदेश सूत्र तथा 

6 अधिकार सूत्र।


पारायण विधि :- 

  • बिना अर्थ समझे वैदिक मंत्रों का सस्वर पाठ पारायण कहलाता है ।
  • पारायण करते समय ब्रह्मचारी पूर्व दिशा की तरफ मुख करता है।
  • आचार्य पाणिनि के समय में पारायण विधि प्रचलित थी । यह विधि कण्ठस्थीकरण के ऊपर बल देती है।
  • पारायण करते समय बीच में कोई बातचीत नहीं होती ।
  • इस विधि में नियमों की आवृत्ति की जाती है ।
  • पारायण करने वाले छात्र पारायणिक कहलाते हैं।
  • यह पारायण अनेक प्रकार का होता है।
  • जैसे पंचक अध्ययन:- पाठ को 5 बार पढ़ना।
  • पंचवार अध्ययन:-  शब्दों को 5 बार पढ़ना।
  •  पंच रूप अध्ययन :- सभी को 5 बार पढ़ना या पांच तरीके से पढ़ना 
  • परीक्षा में एक अशुद्धि करने वाला छात्र :- एकनयिक ।
  • दो अशुद्धि  करने वाला छात्र द्वनयिक।
  • तीन अशुद्धि करने वाला छात्र त्रनयिक कहलाता है।
  • इस विधि से बालकों में रटने की प्रवृत्ति का विकास होता है । 
  • अतः यह विधि वर्तमान में व्याकरण शिक्षण के लिए उपयोगी नहीं मानी जाती है।

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Friday, August 28, 2020

NCF 2005 PART 2

NCF 2005- महत्वपूर्ण बातें:- 
आरंभिक स्तर पर अधिगम को कार्य तथा अनुभव से जोड़ना।
कला शिक्षा हर स्तर पर एक विषय के रूप में लागू हो जिसमें कला के चारों पहलू नृत्य नाटक संगीत दृश्य कला में शामिल हो ।
शांति के लिए शिक्षा को शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में शामिल करना।
 शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम की अवधि बढ़ाना ताकि इंटरशिप के माध्यम से शिक्षा शास्त्र के सिद्धांतों को व्यवहारिक रूप दिया जा सके ।
स्थानीय स्तर पर विद्यालय के कैलेंडर को लचीला बनाना।
मानचित्रकरण द्वारा उन इलाकों की पहचान करना जहां पर छात्र स्थानीय दक्ष कारीगरों से प्रशिक्षण प्राप्त कर सके।
ncf-2005 निर्मित वाद की अवधारणा को मान्यता देता है जिसके अनुसार बालक सक्रिय होकर स्वयं ज्ञान का निर्माण करता है तथा शिक्षक सुविधाप्रदाता सहजकर्ता  की भूमिका निभाता है।
ncf-2005 की मान्यता है कि परीक्षा एच्छिक हो तथा प्रश्न पत्र में कम से कम 25% से 40% तक प्रश्न वस्तुनिष्ठ हों। 
ncf-2005 का उद्देश आरंभिक पीढ़ी  को धर्म,जाति,भाषा,लिंग,क्षेत्र अथवा शारीरिक क्षमताओं की चुनौतियों से रखते हुए शारीरिक व मानसिक प्रदान करते हुए शिक्षा उपलब्ध कराना है।
प्रोफेसर यशपाल सिंह के अनुसार विद्यालय स्तर पर विद्यार्थियों से प्रोजेक्ट वर्क करवाने पर बल दिया गया।

ncf-2005 करके सीखने से संबंधित है ।
ncf-2005 दो विशिष्ट सूत्रों का पालन करता है - ज्ञात से अज्ञात,  मूर्त से अमूर्त।
 ncf-2005 त्रिभाषा सूत्र का पालन करता है- हिंदी ,अंग्रेजी ,मातृभाषा ।
ncf-2005  शिक्षा के क्षेत्र में क्रियात्मक अनुसंधान पर बल देता है ।
ncf-2005 आत्मनिर्भर बनाने वाली जीवन उपयोगी शिक्षा पर बल देता है ।
ncf-2005 के अनुसार पाठ्यक्रम लचीला होना चाहिए जिसमें आवश्यकता अनुसार परिवर्तन किया जा सके ।
ncf-2005 कल्पनाशीलता तथा  मौलिक लेखन कार्य को महत्वपूर्ण मानता है ।
ncf-2005 के द्वारा समावेशी शिक्षा की अवधारणा प्रस्तुत की गई ।
नवीन शिक्षण विधियों के प्रयोग पर बल 
नवीन तकनीक के प्रयोग को मान्यता
पाठ्य सहगामी क्रियाओं की अनिवार्यता 
बाल केंद्रितता को महत्वपूर्ण स्थान
छात्रों के सर्वांगीण विकास पर बल
शिक्षा को व्यवसायोन्मुखी  बनाने का प्रयास 
मानसिक स्तर एवं योग्यता के अनुसार पाठ्यक्रम का निर्धारण 
परीक्षा प्रणाली में सुधार का आयोजन
निरंतर व व्यापक मूल्यांकन (CCE) की व्यवस्था 
पाठ्यचर्या में पर्यावरण शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान 
स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा को विद्यालय शिक्षा का अनिवार्य भाग बनाया जाए 
ncf-2005 के अनुसार पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धांत :- बाल केंद्रित पाठ्यक्रम 
उपयोगिता का सिद्धांत
लचीलापन का सिद्धांत 
क्रियाशीलता का सिद्धांत
क्रमबद्धता का सिद्धांत
व्यापक एवं संतुलन का सिद्धांत
विभिन्न विषयों से सहसंबंध का सिद्धांत 
विभिन्न स्तरों के अनुसार पाठ्यक्रम 
मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुरूप पाठ्यक्रम।

NCF 2005 Part 1



Credit NCERT DELHI 


National Curriculum Framework 2005 (NCF 2005)

राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 की रूपरेखा

शिक्षण अधिगम प्रक्रिया मुख्य रूप से पाठ्यक्रम पर ही निर्भर करती है वास्तविक रूप से पाठ्यक्रम ही वह साधन है जो कि अध्यापक तथा विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करता है ।

पाठ्यक्रम का अर्थ :- करिकुलम शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के कोरियर(CURRERE) से हुई है जिसका अर्थ है दौड़ का मैदान।

पाठ्यक्रम दौड़ का मैदान है जिस पर बालक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दौड़ता है ।

कनिंघम के अनुसार :- कलाकार(शिक्षक) के हाथ में यह(पाठ्यक्रम)  एक साधन है जिससे वह पदार्थ(छात्र)  को अपने आदर्श(ऊद्देश्य) के अनुसार अपने स्टूडियो(विद्यालय) में चित्रित कर सके।

मुनरो के अनुसार :- पाठ्यचर्या में वे समस्त अनुभव निहित होते हैं जिनको विद्यालय द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उपयोग में लाया जाता है ।

पाठ्यक्रम छात्र एवं अध्यापक को जोड़ने वाली कड़ी है ।

माध्यमिक शिक्षा आयोग 1952-53 के अनुसार :- पाठ्यक्रम का अभिप्राय उन सैद्धांतिक विषयों से नहीं है जो विद्यालय में परंपरागत तरीके से पढ़ाए जाते हैं बल्कि इनमें अनुभवों का एक समूह है तो जिनको बालक कक्षा, पुस्तकालय ,प्रयोगशाला ,प्रार्थना सभा ,कार्यशाला ,खेल मैदान एवं छात्र अध्यापक के अनौपचारिक मेल मिलाप से प्राप्त करता है ।

राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 की आवश्यकता क्यों ....?

  1. नैतिक एवं मानवीय मूल्यों में वृद्धि करना ।
  2. कक्षा कक्ष शिक्षण को प्रभावशाली बनाने हेतु नवीन पाठ्यक्रम की आवश्यकता पर बल ।
  3. विद्यार्थियों की जरूरतों एवं रुचि को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम के निर्माण की आवश्यकता ।
  4. अध्यापकों की संतुष्टि के लिए पाठ्यक्रम निर्माण उनकी सहायता करना ।
  5. शैक्षिक लक्ष्यों की प्राप्ति ,शिक्षण विधियों में सुधार एवं विकास हेतु राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की आवश्यकता का होना।
  6. भाषा समस्या के निदान हेतु नवीन पाठ्यक्रम संरचना की आवश्यकता ।

  • प्रथम NCF 1975
  • द्वितीय NCF 1988 
  • तृतीय NCFSE  2000 
  • चतुर्थ NCF -2005।

 NCF 2005  रविंद्र नाथ टैगोर के निबंध सभ्यता और प्रगति के एक उद्धरण से प्रारंभ होता है :-

"  उदार आनंद एवं सृजनात्मकता बचपन की कुंजी है किंतु नासमझ वयस्क संसार द्वारा इनकी विकृति का खतरा है"

NPE 1986 (राष्ट्रीय शिक्षा नीति) :-  NPE1986 में इस बात पर बल दिया गया कि पाठ्यचर्या को भारतीय संविधान में वर्णित राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण की पृष्ठभूमि तैयार करनी चाहिए।

POA 1992( प्रोग्राम ऑफ एक्शन 1992)  में प्रासंगिकता,गुणवत्ता, लचीलापन के तत्व पर बल देते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रावधानों का क्रियान्वयन किया गया।

 यशपाल समिति 1993 में "बिना बोझ के शिक्षा " LEARNING WITHOUT BURDEN " की सिफारिश की 

बिना बोझ की शिक्षा  - तनाव रहित शिक्षा।

निदेशक - प्रोफेसर कृष्ण कुमार ।

अध्यक्ष -  प्रोफेसर यशपाल ।

यह विद्यालय शिक्षा का अब तक का नवीनतम राष्ट्रीय दस्तावेज है।

Ncf-2005 के अंश/ भाग / अध्याय :- 

  • परिप्रेक्ष्य 
  • सीखने का ज्ञान 
  • पाठ्यचर्या के क्षेत्र स्कूल की अवस्थाएं एवं आकलन 
  • विद्यालय का कक्षा का वातावरण 
  • व्यवस्थागत सुधार

NCFSE  2000 की समीक्षा के लिए गठित यशपाल सिंह समिति के अलावा 21 फोकस समूहों का गठन किया गया 

NCERT  के 5 और क्षेत्रीय कार्यालय ,विभिन्न राज्यों की परीक्षा बोर्ड, शिक्षा सचिव ,शिक्षाविदों  तथा आम जनता के विस्तृत विचार विमर्श के बाद ncf-2005 को मंजूरी दी।

NCERT  1961 नई दिल्ली ।

SIERT  1978 उदयपुर ।

 DIET - NPE  1986 के प्रावधानों के तहत ।

NCERT  के 5 क्षेत्रीय कार्यालय ।

  1. अजमेर -राजस्थान 
  2. भोपाल- म प्र
  3. मैसूर -कर्णाटक
  4. भुवनेश्वर -उड़ीसा
  5. शिलांग -मेघालय 

ncf-2005 का 22 भाषा में अनुवाद किया गया है तथा वर्तमान में यह 17 राज्यों में लागू है ।

ncf-2005 की संचालन समिति में 35 सदस्य हैं जिनमें राजस्थान की एकमात्र सदस्य रोहित धनखड़ हैं ।

ncf-2005 के तहत यह प्रावधान है कि बालक की प्राथमिक स्तर की शिक्षा स्थानीय भाषा अर्थात घरेलू भाषा में होनी चाहिए यदि प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा या स्थानीय भाषा के शिक्षक उपलब्ध ना हो तो संविधान के अनुच्छेद 350 का के तहत स्थानीय शिक्षा अधिकारियों को बालक की भाषा विकास के लिए सुविधा उपलब्ध करवाना अनिवार्य है । राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में 5वी तक मातृभाषा में पढ़ाने के आदेश दिये हैं।

  • ncf-2005 के निदेशक तत्व विद्यालय का माहौल पाठ्यचर्या का हिस्सा हो।
  • पढ़ाई को रटंत प्रणाली से मुक्त किया जाए
  • छात्रों को चहुंमुखी विकास के अवसर दें ।
  • परीक्षा को कक्षा की गतिविधि से जोड़ दें ।(खुली किताब परीक्षा) 
  • प्रजातांत्रिक ढांचे को मजबूत बनाना ।
  • ncf-2005 चार महत्वपूर्ण विषयों के बारे में सुझाव देता है 

भाषा ,गणित ,सामान्य विज्ञान, सामाजिक विज्ञान ।

भाषा:-  त्रिभाषा सूत्र की संस्तुति (NPE 2020 में

  1. प्रथम भाषा :- राज्य/ राष्ट्रीय भाषा -हिंदी 
  2. द्वितीय भाषा :- अंतर्राष्ट्रीय भाषा -अंग्रेजी 
  3. तृतीय भाषा :- स्थानीय भाषा -संस्कृत, पंजाबी ,गुजराती, मारवाड़ी इत्यादि।

 सर्वप्रथम कोठारी आयोग 1964-66 ने सुझाव दिया शिक्षा का माध्यम मातृभाषा हो ।

  • अंग्रेजी पहली कक्षा से ही अनिवार्य हो।
  • बहुभाषिक प्रवीणता का विकास हो ।
  • भाषाई कौशलों का विकास हो ।
  • आरंभिक स्तर पर पढ़ने (READING) विशेष बल।
  •  गणित:- बालकों को अनुभव से गुथी हुई गणित पढ़ाना।
  • उनकी वैचारिक प्रक्रिया का गणितीकरण करना ।
  • बालकों में अमूर्तनों  की संकल्पना तथा तार्किक चिंतन का विकास।
  •  प्रत्येक विद्यालय में कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, इंटरनेट आदि कनेक्टिविटी की ढांचागत सुविधा उपलब्ध कराना।
  • सामान्य विज्ञान:- बालकों को दैनिक जीवन के अनुभवों का विश्लेषण करने तथा उनकी सत्यता की जांच करने में सक्षम बनाना।
  • बाल विज्ञान कांग्रेस की तर्ज पर देश में एक सामाजिक आंदोलन चलाना ताकि अन्वेषण का माहौल पैदा हो सके।
  • बालकों को ज्ञान परियोजनाओं के माध्यम से देना चाहिए।

सामाजिक विज्ञान :-  जेंडर के संबंध में न्याय।

 एससी एसटी के मामलों में जागरूकता तथा अल्पसंख्यकों के प्रति संवेदनशीलता ।

ज्ञान के विशिष्ट क्षेत्रों की खोज उदाहरण के लिए पानी जैसे मुद्दों का समाकलन ।

स्थानीय निकायों को मजबूत बनाना ।



Wednesday, August 26, 2020

संस्कृत शिक्षण विधियां

शिक्षण विधि :- किसी भी कक्षा में पढ़ाते समय एक शिक्षक का पढ़ाने का जो तरीका होता है उसे शिक्षण विधि कहते हैं । शिक्षण विधि का क्षेत्र सीमित होता है यह केवल एक शिक्षक एवं एक कक्षा को ही प्रभावित करती है ।

शिक्षण प्रणाली :- एक विद्यालय सुबह से लेकर शाम तक जिस तरीके से संचालित होता है उसे शिक्षण प्रणाली कहते हैं, शिक्षण प्रणाली का क्षेत्र व्यापक होता है यह संपूर्ण विद्यालय को प्रभावित करता है ।

व्याकरण शिक्षण:- 

ऊद्देश्य:- भाषाज्ञानम्ं ।


सामान्य जानकारियां - 

व्याकरण शब्द वि + आँड् + कृ धातु + ल्युट प्रत्यय  के योग से बना है ।

व्याकृयंंते व्युत्पाद्य्ंते शब्दा: अनेन इति व्याकरणम।

अर्थात जिस शास्त्र के द्वारा शब्द की उत्पत्ति या रचना का ज्ञान करवाया जाता है उसे व्याकरण शास्त्र कहते हैं ।

प्रधानम् च षडअन्गेषु  व्याकरणम्।

वेद के 6 अंगों में व्याकरण को सबसे प्रधान अंग माना जाता है ।

मुखम् व्याकरणम् स्मृतम् ।

वेद के 6 अंगों में व्याकरण को वेद पुरुष के मुख अंग के रूप में स्वीकार किया जाता है ।

व्याकरण = मुखम।

ज्योतिष = चक्षु ।

निरुक्त = श्रोतुम (कान)।

कल्प:- हस्तौ (हाथ) 

शिक्षा :-  घ्राणम ( नाक)

छन्द :-  पादौ(पैर)।

महर्षि पतंजलि ने एवं किशोर दास बाजपेई ने व्याकरण को शब्दानुशासन कहकर पुकारा है ।

किशोरी दास बाजपेई ने व्याकरण को भाषा का भूगोल भी कह कर पुकारा है।

 डॉक्टर स्वीट महोदय के अनुसार भाषा का व्यवहारिक विश्लेषण व्याकरण है ।

व्याकरण को भाषा शिक्षण का सर्वश्रेष्ठ मार्ग भी कहा जाता है।

व्याकरण को भाषा का मेरुदंड भी कहा जाता है।

संस्कृत व्याकरण के अंतर्गत पाणिनी, वररुचि एवं पतंजलि व्याकरण शास्त्र के सर्वश्रेष्ठ विद्वान हुए माने जाते हैं।

इन तीनों को मुनित्रय के नाम से भी पुकारा जाता है।

इन तीनों में भी महर्षी पाणिनी सर्वश्रेष्ठ वैयाकरण हुए हैं , उन्होंने व्याकरण के नियमों को अपनी अष्टाध्याई रचना में सूत्रों के नाम से प्रतिपादित किया है । पाणिनी ने वाक्य को ही भाषा की इकाई माना है।

महर्षि वररुचि ने पाणिनी द्वारा बनाए गए सूत्रों में संशोधन करते हुए लगभग 1500 वार्तिक लिखे हैं ।

पतंजलि ने पाणिनि के सूत्रों की सरल शब्दों में व्याख्या की इनके द्वारा बनाए गए नियम इष्ठि के नाम से एवं उनकी रचना महाभाष्य के नाम से प्रसिद्ध है।

व्याकरण शास्त्र का उच्चारण में बहुत अधिक महत्व माना जाता है।

व्याकरण की प्रशंसा करते हुए एक पिता अपने पुत्र से कहता है  यद्यपि बहूनाधीषे  तथापि पठ पुत्र व्याकरणम्  स्वजन: श्वजनो मा भूत सकलम् शकलं सकृच्छ्कृत ( सकृत + शकृत )।

बहुत से शास्त्रों का अध्ययन किए हुए पुत्र से पिता कह रहा है कि हे पुत्र तुमनेेेे बहुत शास्त्रों का अध्ययन कर लिया है फिर भी तुम व्याकरण को अवश्य पढो।

स्वजन = परिजन।

श्वजन = कुत्ता।

सकलम = संपूर्ण ।

शकलम = टुकड़ा ।

सक्रत= एक बार ।

शकृत =  गोबर।

व्याकरण शिक्षण की विशिष्टता:- 

बालकों को भाषा के नियमोंं का ज्ञान करवाना ।

बालकों को शब्दों एवं वाक्य रचना का ज्ञान करवाना ।

बालकों को शब्द रूप व धातु रूप का ज्ञान करवाना ।

बालकों में तर्क एवं चिंतन शक्ति का विकास करना ।

बालकों में भाषा के चारों मूलभूत कौशलों का क्रमबद्ध विकास करना ।

महर्षि पतंजलि ने व्याकरण के निम्नलिखित 5 प्रयोजन माने हैं ।

 रक्षोहगमल्घ्वसन्देहा:  

 रक्षा = वैदिक ज्ञान की रक्षा करना।

ऊह =  नवीन शब्दों की रचना।

आगम = पठन में निरंतरता।

लघु=  संक्षिप्तता ।

असन्देह =  शंका या संदेह का समाधान ।

व्याकरण शिक्षण की विधियां :-

व्याकरण शिक्षण के लिए अनेक प्रकार की विधियों का प्रयोग किया जाता है ।

प्राचीन विधियां :- आगमन विधि ,

निगमन विधि ,

सूत्र विधि ,

पारायण विधि ,

भाषा संसर्ग विधि,

 वाद विवाद विधि ,

व्याख्या विधि ,

अर्वाचीन या नवीन विधियां :- आगमन निगमन विधि ।

समवाय या सहयोग विधि ।

पाठ्यपुस्तक विधि।

 अन्य विधि :- अनौपचारिक विधि या सैनिक विधि।


Tuesday, August 25, 2020

RTE 2009

" उड़ान वालों उड़ानों पर वक़्त भारी है,

परो की नहीं अब हौसलों की बारी है।

मैं कतरा होके तूफानों से जंग लड़ता हूं ,

मुझे  बचाना समंदर की जिम्मेदारी है।

कोई बताए उसके गुरुर- ए-बेजा को 

वह जंग हमने लड़ी ही नहीं जो हारी है।

दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत,

यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है।" 


RTE 2009


देश की आजादी के समय जब संविधान का निर्माण हुआ तो तीन प्रकार की कार्यसूची आधारित की गई थी।

 संघ सूची ,राज्य सूची ,समवर्ती सूची।

शिक्षा को राज्य सूची में विषय बनाया गया परंतु राज्यों के माध्यम से शिक्षा का प्रचार प्रसार ठीक से नहीं हो पाया तब 1976 ,42 वें संविधान संशोधन द्वारा शिक्षा को समवर्ती सूची में जोड़ा गया ।

12 दिसंबर 2002 में 86 वा संविधान संशोधन करवाया और शिक्षा को बालक का मौलिक अधिकार( स्वतंत्रता का अधिकार 19 से 22)  बना दिया।

 [अनु.18(क)] राज्य के 6 से 14 वर्ष के बच्चों को निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराना (*86 वाँ संविधान संशोधन 2002)।

 इसके लिए संविधान में अनुच्छेद 21a सृजित हुआ ।अभिभावक एवं सरकार के लिए अनुच्छेद 51A के उपबंध में इसे कर्तव्य घोषित किया गया।

वर्तमान आरटीई 2009 के लिए राज्यसभा में 20 जुलाई 2009 को तथा लोकसभा में 4 अगस्त 2009 में विधेयक पारित किया गया ।

उसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने 26 अगस्त 2009 को हस्ताक्षर किए।

 27 अगस्त 2009 को गजट नोटिफिकेशन जारी हुआ और 1 अप्रैल 2010 को आरटीई संपूर्ण देश में लागू हो गया (जम्मू कश्मीर को छोड़कर)।

 इसके लागू होने के साथ भारत विश्व के 135 उन देशों में शामिल हो गया जहां शिक्षा का अधिकार लागू है ।

1 अप्रैल 2010 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसे जम्मू कश्मीर के अलावा संपूर्ण देश में लागू कर दिया।

आरटीई 2009 की धारा 38 का लाभ लेते हुए तत्कालीन राजस्थान सरकार ने 29 मार्च 2011 को सीएम गहलोत के नेतृत्व में उसमें संशोधन किया और 1 अप्रैल 2011 से राजस्थान में संशोधित आरटीई " निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम 2011 "के नाम से लागू हुआ।

 महत्वपूर्ण बातें :- 

अनुच्छेद 21a मूल अधिकार ।

अनुच्छेद 51A k/11/ट  मूल कर्तव्य।

अनुच्छेद45 3 से 6 वर्ष के बालकों की शिक्षा आंगनवाड़ी शब्द फ्राबैल के किन्डर गार्डन से लिया गया है जिसका अर्थ है बच्चों की फुलवारी ।

आरटीई के अंतर्गत विकलांग बालकों हेतु आयु वर्ग 6 से 18 वर्ष माना गया है ।

20 जुलाई 2009 आरटीई राज्यसभा द्वारा पारित।

4 अगस्त 2009 लोकसभा द्वारा पारित ।

26 अगस्त 2009 राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने हस्ताक्षर किए ।

27 अगस्त 2009 गजट नोटिफिकेशन जारी ।

1 अप्रैल 2010 आरटीई संपूर्ण देश में लागू (जम्मू कश्मीर को छोड़कर )।

आरटीई 2009:-  कुल धारा 38, अध्याय 7 ,अनुसूची 1

RTE 2009  

अध्याय 07 

अध्याय 1  प्रारंभिक परिचय(धारा 1और 2) ।

 अध्याय 2 निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के प्रावधान (धारा 3 और 4 )।

अध्याय 3 समुचित सरकार स्थानीय निकाय तथा अभिभावकों के कर्तव्य वर्णित हैं(धारा 5 से 11) ।

अध्याय 4 विद्यालय तथा शिक्षकों के कर्तव्य वर्णित हैं (धारा 12 से 28 )। सबसे बड़ा अध्याय ।

अध्याय 5 प्रारंभिक शिक्षा का पाठ्यक्रम तथा उसको पूरा किए जाने से संबंधित प्रावधान (धारा29-30)।

अध्याय 6 बालकों के अधिकारों के संरक्षण से संबंधित प्रावधान( धारा 31-34) ।

अध्याय 7 अन्य मुद्दे(धारा 35 से 38) ।




RTE 2009 धाराएँ 

धारा 1 संक्षिप्त नाम एवं विस्तार :- निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा।

 धारा 2 आरटीई के अंतर्गत प्रयुक्त शब्दावली:- 

 प्रारंभिक शिक्षा

 बालक

 अन्वेषण प्रक्रिया 

वंचित वर्ग 

स्थानीय निकाय 

समुचित सरकार 

दुर्बल वर्ग ।

धारा 3 प्रारंभिक शिक्षा ।

धारा 4 ड्रॉपआउट ।

धारा 5 स्थानांतरण प्रमाण पत्र ।

धारा 6 विद्यालय स्थापना /दूरी ।( धारा (6)six school Fix)

धारा 7 वित्तीय अनुपात ( धारा 7 केंद्र राज्य साथ साथ)

धारा 8 समुचित सरकार के कर्तव्य ।

धारा 9 स्थानीय निकायों के कर्तव्य वर्णित है ।

धारा 10 अभिभावकों के कर्तव्य ।

धारा 11 आंगनवाड़ी केंद्र ।

धारा 12 25% आरक्षण ।(12×2=24+1=25)

धारा 13 अनुवीक्षण प्रक्रिया ।

धारा 14 प्रवेश के समय जन्म प्रमाण पत्र । {धारा 14 कब 14}

धारा 15 30 सितंबर तक प्रवेश ।{15×2=30}

धारा 16 कोई भी फेल नहीं होगा ।

17 बालक को शारीरिक और मानसिक रूप से दंडित नहीं किया जाएगा। (धारा 17 बच्चा मस्त रह )

धारा 16 व 17 को बालकों का स्वर्ग कहा गया है।

 धारा 18 बिना मान्यता विद्यालय चलाना प्रतिबंधित है उल्लंघन करने पर एक लाख का जुर्माना और निरंतर उल्लंघन करने पर प्रतिदिन 10000 ।

धारा 19 विद्यालय के जो मानक स्थापित हैं उन्हें 3 वर्ष पूरे करने होंगे ।

धारा 20 केंद्र सरकार अधिसूचना द्वारा किसी भी मानक में परिवर्तन कर सकेगी ।

धारा 21 एसएमसी  प्रत्येक विद्यालय में कम से कम 15 सदस्य विद्यालय प्रबंधन समिति का गठन अनिवार्य है 50% महिलाएं कम से कम ,75% अभिभावक , एससी एसटी के सदस्य छात्रों की संख्या के अनुपात में , 

बैठक:-  एसएमसी की साधारण सभा की बैठक हर 3 महीने में एक बार तथा कार्यकारिणी सभा की बैठक हर माह अमावस्या के दिन बैठक अनिवार्य है , गणपूर्ति 33.33% तथा एसएमसी का कार्यकाल 2 वर्ष का होता है । 

वर्तमान में एसएमसी में 16 सदस्य होते हैं ।

प्रधानाध्यापक सचिव होता है तथा अभिभावकों में से अध्यक्ष बनाया जाता है ।

धारा 22 एसडीपी कार्यालय अवधि 3 वर्ष  ।

धारा23 टेट ।

धारा 24 शिक्षकों के कर्तव्य :- 

  1. नियमित रूप से विद्यालय जाना ।
  2. तय सीमा में बालक को पाठ्यक्रम पूरा करना।
  3. बच्चों के लर्निंग रिकॉर्ड्स रखना ।
  4. अभिभावकों से संपर्क में रहना ।
  5. बाल केंद्रित विधि से पठन करवाना।
  6. अध्यापन की सफलता का निरीक्षण करना ।
  7. छात्र की सर्वोत्कृष्ट उन्नति के लिए उचित मार्ग निश्चित करना।

 धारा 25 विद्यार्थी शिक्षक अनुपात:-  निर्धारित समय में पूरा करना होगा ।(अनुसूची 1 में वर्णित ) 

धारा 26 आरटीई के तहत किसी विद्यालय में शिक्षकों के 10% से अधिक पद रिक्त नहीं रखे जाएंगे

 धारा 27 (30 में 3 कम इसलिए 3 काम )

 1. शिक्षकों को जनगणना कार्यक्रम 

2.आपदा राहत कार्य

3. स्थानीय निकायों के चुनाव कार्य में अतिरिक्त किसी भी अन्य कार्यों में सम्मिलित हेतु बाध्य नहीं किया जाएगा।

धारा 28 प्राइवेट ट्यूशन। (30 no आते ट्यूशन नहीं गया 2 no काट लिए )

धारा 29 प्रत्येक विद्यालय में CCE , पाठ्यक्रम का विकेंद्रीकरण किया जाए। यदि प्रारंभिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में कोई परिवर्तन किया गया है तो इसकी लिखित अधिसूचना समाचार पत्रों में प्रकाशित करवाई जाएगी तथा इन्हें प्रत्येक विद्यालय में पहुंचाया जाएगा ।

धारा 30 किसी विद्यार्थी को कक्षा 8 में बोर्ड एग्जाम में बैठने हेतु बाध्य नहीं किया जा सकता ।

धारा 31 बालकों के अधिकारों के संरक्षण हेतु एक बाल अधिकार संरक्षण आयोग का गठन किया जाएगा ।

धारा 32 इस आयोग के अंतर्गत अभिभावक संरक्षक विद्यालय प्रबंध के व्यक्ति समाज के कोई भी व्यक्ति लिखित शिकायत दर्ज करवा सकता है।

धारा 33 केंद्र सरकार को शिक्षा सलाहकार परिषद का गठन करता है 15 सदस्य अध्यक्षता प्रधानमंत्री यह प्रक्रिया 3 वर्ष में एक बार की जाती है।

धारा 34 राज्य सरकार से संबंधित राज्य सलाहकार परिषद का गठन 15 सदस्य  अध्यक्षता मुख्यमंत्री द्वारा की जाएगी ।

धारा 35 सरकार मार्गदर्शन सिद्धांत जारी करेगी।

धारा 36 धारा 13 ,18, 19 के दंडनीय अपराध के लिए अभियोजन मंजूरी।

धारा 37 SMC के खिलाप कोई वाद- विवाद  कार्यवाही सम्बन्धी प्रक्रिया।

धारा 38 सरकार चाहे तो अपने निजी हितों को ध्यान में रखते हुए कुछ संशोधन करवा सकती है (राजस्थान ने किया था) 

अनुसूची 1 

छात्र अनुपात शिक्षक :- 

कक्षा 1 से 5 तक छात्र    :      शिक्षक 

                    60 तक    :    2 ( दो शिक्षक अनिवार्य ) 

                    61 -90    :   3 

                   91 - 120  :   4

                   121 - 200  : 5

नोट :- छात्रों की संख्या 150 से अधिक होने पर एक प्रधानाध्यापक होगा , 200 से अधिक होने पर छात्र शिक्षक अनुपात 40 : 1 से अधिक नहीं हो सकता ।

प्रश्न:-  183 बच्चे हो तो छात्र अनुपात शिक्षक क्या होगा।

A.4       B.5        C.6         D.5+1 

प्रधानाध्यापक को शिक्षकों में शामिल नहीं किया जाता है

  कक्षा 6 से 8 

                  छात्र   :  शिक्षक 

                   35    :  1

छात्रों की संख्या 100 से अधिक होने पर एक प्रधानाध्यापक होगा तथा कम से कम शिक्षक निम्न में से प्रत्येक विषय का या प्रतिकक्षा होगा ।

1 भाषा  2  गणित व विज्ञान 3 सामाजिक विज्ञान।


 एक शैक्षणिक सत्र में न्यूनतम

                        कार्य दिवस               कार्य घन्टे

कक्षा 1 से 5        200                        800

कक्षा 6 से 8        220                       1000

प्रति सप्ताह 1 शिक्षक के न्यूनतम कार्य घंटे 45 होंगे जिनमें तैयारी के घंटे शामिल होंगे ।


शिक्षण अधिगम सामग्री

शिक्षण अधिगम सामग्री :- शिक्षण सामग्री वे साधन है जिन्हें हम आंखों से देख सकते हैं कानों से उनसे संबंधित ध्वनि सुन सकते हैं वे प्रक्रियाएं ज...