Saturday, August 29, 2020

व्याकरण शिक्षण विधियां

व्याकरण शिक्षण विधियां :-

व्याकरण शिक्षण को रोचक तथा आकर्षक बनाने के लिए विभिन्न विधियों का प्रयोग प्राचीन काल से ही किया जा रहा है।

इन विधियों की चर्चा दो प्रकार से की जाती है 

1 प्राचीन विधियां 2 नवीन विधियां।

 प्राचीन विधियां 

 1 सूत्र विधि :- इस विधि को पांडित्य विधि भी कहा जाता है ।

  • सूत्र विधि संस्कृत व्याकरण शिक्षण की प्राचीनतम विधि है । इसमें व्याकरण के नियमों को सूत्र के रूप में कंठस्थ कराया जाता है। 
  • कंठस्थ सूत्रों के आधार पर छात्र उस सूत्र के प्रयोग का ज्ञान प्राप्त करते थे।
  • सूत्रों का मुख्य उद्देश्य गागर में सागर था ।
  • इस विधि में संपूर्ण व्याकरण ज्ञान को छोटे-छोटे नियमों में बांध दिया जाता था।
  • इन छोटे-छोटे नियमों को ही सूत्र के नाम से पुकारा जाता है । इस विधि में छात्र सूत्रों को रट कर ही व्याकरण का सैद्धांतिक ज्ञान प्राप्त करता है।
  • रटने की प्रवृत्ति अधिक होने के कारण यह अमनोवैज्ञानिक विधि मानी जाती है 
  • यह विधि सामान्य से विशिष्ट की ओर शिक्षण सूत्र पर आधारित है।
  • संस्कृत व्याकरण शिक्षण की सर्वाधिक प्रयोग में आने वाली विधि है।
  • संस्कृत व्याकरण शिक्षण की यह सबसे प्राचीन विधि मानी जाती है।  इस विधि के प्रयोगकर्ता महर्षि पाणिनि है।

 सूत्र की परिभाषा :-  विद्वानों के अनुसार सूत्र के 6 लक्षण होते हैं ।

अल्पाक्षरं  - छोटे-छोटे अक्षरों का समूह ।

असंदिग्धं :-  संदेह से रहित ।

सारवद :- सारांश पूर्ण ।

विश्वतोमुखम :-  सदा सदा से चला आने वाला ।

अस्तोभं :-  अवरोध से रहित ।

अनुवद्यम :- निंदा से रहित ।

सूत्र के भेद :-  संस्कृत व्याकरण में प्रयुक्त होने वाले सूत्र छह प्रकार के माने जाते हैं ।

1 संज्ञा सूत्र 

2परिभाषा सूत्र 

3विधि सूत्र 

4नियम सूत्र 

5अतिदेश सूत्र तथा 

6 अधिकार सूत्र।


पारायण विधि :- 

  • बिना अर्थ समझे वैदिक मंत्रों का सस्वर पाठ पारायण कहलाता है ।
  • पारायण करते समय ब्रह्मचारी पूर्व दिशा की तरफ मुख करता है।
  • आचार्य पाणिनि के समय में पारायण विधि प्रचलित थी । यह विधि कण्ठस्थीकरण के ऊपर बल देती है।
  • पारायण करते समय बीच में कोई बातचीत नहीं होती ।
  • इस विधि में नियमों की आवृत्ति की जाती है ।
  • पारायण करने वाले छात्र पारायणिक कहलाते हैं।
  • यह पारायण अनेक प्रकार का होता है।
  • जैसे पंचक अध्ययन:- पाठ को 5 बार पढ़ना।
  • पंचवार अध्ययन:-  शब्दों को 5 बार पढ़ना।
  •  पंच रूप अध्ययन :- सभी को 5 बार पढ़ना या पांच तरीके से पढ़ना 
  • परीक्षा में एक अशुद्धि करने वाला छात्र :- एकनयिक ।
  • दो अशुद्धि  करने वाला छात्र द्वनयिक।
  • तीन अशुद्धि करने वाला छात्र त्रनयिक कहलाता है।
  • इस विधि से बालकों में रटने की प्रवृत्ति का विकास होता है । 
  • अतः यह विधि वर्तमान में व्याकरण शिक्षण के लिए उपयोगी नहीं मानी जाती है।

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