Sunday, August 23, 2020

हर्बर्टीय पंचपदीय प्रणाली

हर्बर्टीय विधि / हर्बर्ट की पंचपदीय प्रणाली :- trick - प्र प्र तु सा प्र 

  1. हरबर्ट की पाठ योजना प्राचीनतम पाठ योजनाओं में से एक है ।
  2. इस पाठ योजना के जन्मदाता प्रसिद्ध  शिक्षा शास्त्री हरबर्ट है।
  3. प्रोफेसर हरबर्ट की अधिगम के संबंध में यह धारणा है कि प्रत्येक छात्र बाहर से मिलने वाले ज्ञान को संचित करता रहता है।
  4.  यदि नवीन ज्ञान को छोटे-छोटे सोपानों में बांटकर उसे पूर्व संचित ज्ञान से संबंधित करके पढ़ाया जाए तो छात्र उसे अधिक शीघ्रता व सुगमता से ग्रहण करता है।
  5.  हरबर्ट पाठ योजना में स्मृति स्तर पर सीखने को अधिक प्रभावशाली माना जाता है।
  6. यह पाठ योजना विषय वस्तु केंद्रित है इसमें पाठ को छात्रों के सम्मुख प्रस्तुतीकरण को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है और उस पर अधिक बल दिया जाता है।
  7. छात्रों की आवश्यकता और रुचियों, मूल्यों आदि को इसमें अधिक स्थान नहीं दिया जाता।
  8. हरबर्ट ने कक्षा शिक्षण के लिए सर्वप्रथम नियमों का प्रतिपादन किया।


  • स्पष्टता :-  विद्यार्थी के समक्ष प्रस्तुत करना ।
  • संबंध:-  प्रस्तुत किए गए जाने वाले तथ्यों या नवीन ज्ञान को बालक के पूर्व ज्ञान से संबंध करना।
  •  व्यवस्था :- बालक के समक्ष प्रस्तुत किए जाने वाले तथ्यों का नवीन ज्ञान को व्यवस्थित रूप देना 
  • विधि  :- 

हरबर्ट ने उपयुक्त चार सोपानों की विवेचना की  जिसे उसके अनुयायियों ने अधिक स्पष्ट व महत्वपूर्ण बनाने का प्रयास किया है।

उसके शिष्य जिलर ने सर्वप्रथम स्पष्टता को दो भागों में विभक्त किया 

1 - प्रस्तावना और 2 - प्रस्तुतीकरण ।

हरबर्ट के एक अन्य शिष्य राइन ने इनमें एक उप कथन और जोड़ा वह था - उद्देश्य ।

इस परिवर्तन के बाद प्रथम दो पद इस प्रकार हो गए

 1 प्रस्तावना और उद्देश्य कथन ।

2 प्रस्तुतीकरण ।

इसके बाद हर्बर्ट के अनुयायियों ने हर्बर्ट के शेष तीन पदों के नामों में भी इस प्रकार परिवर्तन  कर दिए।

संबंध= तुलना।

व्यवस्था = सामान्यीकरण ।

 विधि = प्रयोग।

 इस प्रकार हरवर्ट के शिक्षण पद अंतिम रूप से इस प्रकार हैं।

(प्र प्र तु सा प्र  शॉर्ट trick )

1 (अ)प्रस्तावना (ब)उद्देश्य कथन ।

2 प्रस्तुतीकरण।

3 तुलना ।

4 सामान्यीकरण।

5 प्रयोग ।

प्रस्तावना :- वर्तमान पाठ को पढ़ाने के लिए छात्र को मानसिक तैयार करना इस चरण के अंतर्गत है।

प्रस्तावना में अध्यापक दो या तीन प्रश्नों के द्वारा छात्रों से उत्तर लेकर यह निकलवाने का प्रयास करता है कि आज कक्षा में उसे क्या पढ़ाया जाने वाला है।

 प्रसंग का ज्ञान कराकर वस्तुतः छात्र के पूर्व ज्ञान को नवीन ज्ञान से संबंध करने का प्रयास प्रस्तावना में किया जाता है। पाठ की सफलता बहुत हद तक एक अच्छी प्रस्तावना पर निर्भर करती है ।




प्रस्तुतीकरण :- संपूर्ण पाठ को दो या तीन खंडों में विभक्त कर छात्रों के सम्मुख इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है जिससे समग्र पाठ्य सामग्री उनकी समझ में आ जाए इसे पाठ का प्रस्तुतीकरण भी कह सकते हैं ।

इसके अन्तर्गत शिक्षक  द्वारा किया गया आदर्श वाचन छात्रों का अनुकरण वाचन काठिन्य निवारण एवं केंद्रीय बोध के प्रश्न प्रस्तुत किए जाते हैं ।


तुलना :- छात्रों के पूर्व संचित ज्ञान एवं वर्तमान नवीन ज्ञान की तुलना की जाती है तथा अन्य विषयों के ज्ञान का स्थानांतरण भी किया जाता है ।

भाषा शिक्षण में आने वाली कठिनाइयों का निवारण व्याख्या शंका समाधान आदि की अपेक्षा छात्रों को शिक्षक से रहती है योग्य शिक्षक उपयुक्त उदाहरणों दृष्टांतों से विषय को सरल सुबोध बनाकर प्रस्तुत करता है।








सामान्यीकरण  :-   विद्यार्थी संचित ज्ञान के आधार पर सामान्य बातों को समझ कर उसका सामान्यीकरण करते हैं।

 गद्य शिक्षण में इस स्तर पर पुनरावृति के प्रश्न जबकि कविता शिक्षण में भाव साम्य की कविता देकर सामान्यीकरण किया जाता है । 

अपने पूर्व संचित ज्ञान की प्रस्तुत पाठ से तुलना कर विद्यार्थी सर्वमान्य सिद्धांतों का पता लगाते हैं ।

व्याकरण के पाठों  में सामान्यीकरण विशेष लाभदाई होता है।




 प्रयोग :-  सीखे हुए नवीन ज्ञान से निर्मित सामान्य नियम बनाकर विद्यार्थियों से उनका प्रयोग भी कराया जाता है ।

इसके लिए विद्यार्थियों को कक्षा कार्य या गृह कार्य लिखित रूप में करके लाने को कहा जाता है । पढ़ाई गए विषय को विद्यार्थियों ने किस सीमा तक समझा है इसका मूल्यांकन भी सोपान में किया जाता है ।

हर गतिविधि मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है इससे शिक्षण में क्रमबद्ध रहती है ।

यह सोपान अत्यंत लाभप्रद होते हैं विज्ञान शिक्षण के लिए उपयोगी नहीं है ।

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