सर्वप्रथम इंग्लैंड के गणित शिक्षक हेनरी कोल्ड वेल्ड कुक ने कहा था खेल एकमात्र ऐसा कार्य है जिसको बालक पूरे मन से करता है ।
इनके इसी विचार के कारण विभिन्न प्रकार की खेल विधियों का जन्म हुआ।
खेल विधि के वास्तविक जनक एचसी कुक ।
वर्तमान समय में कई खेल विद्या प्रचलित है ।
किंडर गार्डन विधि/ बालवाड़ी विद्यालय विधि:-
फ्राबैल महोदय जर्मनी 1837 -
किंडर गार्डन एक जर्मन शब्द है जिसका अर्थ होता है बाल उद्यान ।
1839 में स्कूल का नाम रखा गया ।
इसमें शिक्षण दो पारियों में कराया जाता है।
पहली पारी में शिक्षण कराया जाता है तथा दूसरी पारी में गीत-संगीत खेल की शिक्षा दी जाती है।
इस विधि में तीन सिद्धांत हैं :-
1स्वागति का सिद्धांत
2 खेल खेल में सीखने का सिद्धांत
3 एकता का सिद्धांत
पेस्टालोजी के शिष्य फ्राबैल ने 19वीं सदी के मध्य में किंडर गार्डन प्रणाली का विकास किया जो एक प्रकार से विद्यालय प्रणाली है ।
इनके अनुसार जो बालक विद्यालय में पढ़ने आता है वह एक पौधे के एवं पढ़ाने वाला शिक्षक माली के समान होता है तथा विद्यालय एक बगीचा है ।
जिस प्रकार से एक माली बगीचे में पौधे की परवरिश करता है ठीक उसी प्रकार से शिक्षक को बालकों की परवरिश करनी चाहिए।
यह विधि 4 से 8 वर्ष के बालकों के लिए उपयोगी है।
इस विधि में 20 उपहारों का प्रयोग किया गया था।
पद्धतियाँ:-
अ) प्रथम क्रिया:- इसमे विविध उपहारों का उपयोग होता है इसमें साधनों के दो प्रकार होते हैं 1 भौमितिक आकृतियां तथा दूसरा चित्र, रेखा, रंग भरना ,सिलाई इत्यादि क्रियाओं के लिए आवश्यक वस्तु समूह ।
पहले प्रकार के साधनों को उपहार तथा दूसरे प्रकार के साधनों को व्यवसाय कहा जाता है।
पहले उपहार में छह रंगीन मृदु केंद्र होती हैं तथा दूसरों को बाहर में एक घन आकृति एक लंबे गोल सा एक घनघोर रहता है ।
ब) दूसरी क्रिया प्रणाली :- इसमें गीतों का गायन किया जाता है।
C) तीसरी क्रिया:- इसमें क्रीडा व्रत में खेलने के अनेक खेल रहते हैं।
किंडर गार्डन की विशेषताएं:-
उपहार
व्यवसाय
क्रीडा व्रत के खेल
खेल संगीत
महिला शिक्षिकाएं
पाठ्यक्रम :- पूर्ण बुनियादी शालाओं का पाठ्यक्रम व्यक्तिगत तथा सामाजिक स्वच्छता आहार एवं पानी आदि विषयों पर आधारित होता है ।
इसके अतिरिक्त जीवन से संबंधित अंकगणित तथा जीवन व्यवहार से संबंधित भाषा शिक्षण होता है
सहायक सामग्री का सर्वप्रथम प्रयोग इसी विधि में किया गया था ।
दृश्य श्रव्य साधनों का प्रयोग शिक्षण में पावलाव के अधिगम सिद्धांत पर आधारित है।
इस विधि में बालकों को छोटे-छोटे बाल गीतों का खेल खेल में शिक्षा दी जाती है।
प्राथमिक स्तर पर उपयुक्त है।
किंडर - पौधे - बालक ।
गार्टन - बगीचा- विद्यालय ।
माली - शिक्षक ।
इसमें शिक्षक पथ प्रदर्शक का कार्य करता है।
डाल्टन विधि
प्रवर्तक हेलन पार्कहर्स्ट निवासी डोल्टन नगर अमेरिका(1913)
कक्षा के स्थान पर प्रयोगशाला।
माध्यमिक तथा उच्च माध्यमिक स्तर पर उपयोगी ।एकमात्र विधि जिसका नाम किसी नगर के ऊपर रखा गया हो ।
इस विधि में एक विशेष प्रकार के विद्यालय की स्थापना की जाती है जिसमें बिना किसी समय सारणी के तथा बिना निर्धारित नियमों के बालकों को उनकी स्वतंत्रता के अनुसार खेल खेल में पढ़ाया जाता है।
बालक पूर्ण स्वतंत्रता के साथ अध्ययन करता है ।
पाठ को कई इकाइयों में विभक्त किया जाता है ।
बच्चे इस कार्य को 1 दिन में पूरा करें या महीने में करें यह उनके ऊपर निर्भर करता है ।
सप्ताह के कार्य को असाइनमेंट कहते हैं इस विधि में गृह कार्य नहीं दिया जाता
ड्रेकाली विधि:- प्रवर्तक ड्रेकाली ।
मानसिक रोग से ग्रसित बालकों के लिए उपयोगी।
उम्र 4 से 19 वर्ष के बालकों के लिए ।
भाषा की शिक्षा सुबह तथा गीत व संगीत की शिक्षा शाम को दी जाती है। इस विधि में पाठशाला का वातावरण प्राकृतिक होता है बालक स्वयं भाषा पाठ्यक्रम का केंद्र होता है
खेल विधि के गुण :-
- मनोवैज्ञानिक विधि ।
- प्राथमिक स्तर के लिए रुचिकर विधि ।
- स्थाई ज्ञान पैदा करती है ।
- सहयोग की भावना का विकास करती है
- तर्क में चिंतन का विकास करती है
- प्रतिस्पर्धा का विकास करती है
खेल विधि के दोष :-
- समय व धन अधिक खर्च होता है।
- संसाधनों की कमी होती है।
- दुर्घटना होने का भय होता है।
- बालकों में शीघ्रता से थकान आ जाती है।
- सामान्यतः विद्यालय वातावरण में उपयोग संभव नहीं है
No comments:
Post a Comment