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Friday, August 4, 2023

गणित का अर्थ और प्रकृति Meaning and Nature Of Mathematics

गणित की शुरुआत ऋग्वेद से हुई है।

गणित एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है. इसलिए इसकी शिक्षाओं का आदान-प्रदान या हस्तांतरण करने से पहले यह जानना आवश्यक और महत्वपूर्ण है कि गणित क्या है? इसे क्यों सिखाया जाना चाहिए?और इसकी प्रकृति क्या है? 

 गणित शब्द की उत्पत्ति 'गण' धातु से हुई है जिसका अर्थ है 'गिनना'। 

 'गणित' शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द ' मैथेमेटा' से हुई है, जिसका अर्थ है 'चीजें' (विषय) जिनका अध्ययन किया जाता है। 

 गणित का शाब्दिक अर्थ :-  वह शास्त्र जिसमें गणनाओं की प्रधानता होती है !

 गणित अंक ,संख्याओं , अक्षरों, प्रतीकों आदि संक्षिप्त संकेतों का वह विज्ञान है जिसकी सहायता से परिमाण, दिशा एवं स्थान का बोध होता है।


 परिभाषा :-

  • लिंडसे:- गणित भौतिक विज्ञानों की भाषा है और निश्चय ही मानव मस्तिष्क में उत्पन्न इससे उत्तम अन्य कोई भाषा नही है। ( प्रशंसात्मक मूल्य) 
  • कोरेंट तथा रॉबिंस:- गणित मानव मस्तिष्क द्वारा वर्णित इच्छाओं का क्रियात्मक पक्ष है। 
  • रोजर बेकन:-  गणित सभी विज्ञानों का प्रवेश द्वार ( सिंह द्वार) और कुंजी है। 
  • हॉगवेन - गणित सभ्यता एवं संस्कृति का दर्पण है।( सांस्कृतिक मूल्य) 
  • बेंजामिन पीयर्स :- गणित एक विज्ञान है जो आवश्यक निष्कर्ष निकालता है।( बौद्धिक मूल्य)
  • गैलीलियो :- गणित वह भाषा है जिसमें ईश्वर ने संपूर्ण विश्व या ब्रह्मांड को लिखा है।
  • बर्थलॉट :- गणित भौतिक अनुसंधान का एक आवश्यक उपकरण है। 
  • आइंस्टीन :- गणित क्या है, यह उस मानवीय सोच का परिणाम है जो अनुभवों से स्वतंत्र और सत्य के अनुरूप है। 
  • हार्वर्ड समिति :- गणित को अमूर्त प्रकृति के विज्ञान के रूप में परिभाषित किया जा सकता।
  • कांट :- विज्ञान केवल उसी सीमा तक सत्य है, जहाँ तक उसमें गणित का प्रयोग किया गया है।
  • लीबनिज़ :- संगीत अंकगणितीय संख्याओं के संबंध में मानव अवचेतन मन का एक आधुनिक गुप्त अभ्यास है।(सौंदर्यात्मक तथा कलात्मक मूल्य)
  • हर्बर्ट स्पेंसर:- मनोविज्ञान में गणित का उपयोग न केवल संभव है बल्कि आवश्यक भी है।
  • लॉक:- गणित वह तरीका है जिसके द्वारा बच्चों का मन या मस्तिष्क विकसित होता है तर्क करने की आदत स्थापित हो जाती है।
  • डेविड व्हीलर:- अधिक गणित जानने की अपेक्षा यह जानना अधिक उपयोगी है कि गणितीयकरण कैसे किया  जाए।
  • वेदांग ज्योतिष:- मोरों के सिर पर मुकुट और साँपों के सिर पर रत्नों की भाँति, वेदांग नामक विज्ञानों में गणित का स्थान सर्वोच्च है।
  • कॉम्टे :- गणित के बिना शुरू होने वाला सभी वैज्ञानिक ज्ञान झूठा है - यह त्रुटिपूर्ण है।
  • डटन:- गणित तार्किक विचार, सटीक कथन और सत्य कथन शक्ति प्रदान करता है.( नैतिक मूल्य)
  • नेपोलियन- देश की प्रगति का गणित की प्रगति से गहरा संबंध है।( सामाजिक मूल्य) 
  • युंग:- यदि विज्ञान की रीढ़ की हड्डी गणित को हटा दिया जाए तो संपूर्ण भौतिक सभ्यता निस्संदेह नष्ट हो जायेगी।  लोहे, गैस और बिजली के इस युग में आप चाहे जिस भी दृष्टि से देखें,गणित सर्वोपरि है. 
  • प्लेटो :- जो छात्र ज्यामिति नहीं समझ सकते वे इस विद्यालय में नहीं आ सकते।
  • बार्टेड रसैल :- गणित एक ऐसा विषय है , जिसमें हम यह भी जानते हैं कि हम किसके बारे में बात कर रहे हैं और न ही यह जान पाते हैं कि हम जो कह रहे हैं वह सत्य है। 
  • मार्शल एच स्टोन :- गणित ऐसा अमूर्त व्यवस्था का अध्ययन है जो अमूर्त तत्त्वों से मिलकर बनी है। इन तत्त्वों को मूर्त रूप में परिभाषित किया गया है। 
  • हब्श :- गणित मस्तिष्क को तीक्ष्ण एवं तीव्र बनाने का वही काम करती है जो किसी औजार को तेज करने में काम आने वाला पत्थर।
  • गॉस :- गणित, विज्ञान की रानी है।
  • बेल :- गणित को विज्ञान का नौकर माना जाता है। -
  • गिब्स:- गणित एक भाषा है।
  • कॉमटे :- वह सभी वैज्ञानिक शिक्षा जो गणित को साथ लेकर नहीं चलती, अनिवार्यत: अपने मूल रूप में दोषपूर्ण है। 
  • व्हाइटहैड - व्यापक महत्त्व की दृष्टि से गणित सभी प्रकार की औपचारिक निगमनात्मक तार्किक योग्यता का विकास है। 

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर गणित के संबंध में सारांश के रूप में हम कह सकते हैं कि-

1. गणित स्थान तथा संख्याओं का विज्ञान है।


2. गणित गणनाओं का विज्ञान है।

3. गणित माप-तौल (मापन), मात्रा (परिमाण) तथा दिशा का विज्ञान है। 

4. गणित विज्ञान की क्रमबद्ध, संगठित तथा यथार्थ शाखा है। 

5. इसमें मात्रात्मक तथ्यों तथा संबंधों का अध्ययन किया जाता है।

6. यह विज्ञान का अमूर्त रूप है। 

7. यह तार्किक विचारों का विज्ञान है।

8. गणित के अध्ययन से मस्तिष्क में तर्क करने की आदत स्थापित होती है। 

9. यह आगमनात्मक तथा प्रायोगिक विज्ञान है।

10. गणित वह विज्ञान है जिसमें आवश्यक निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

गणित की प्रकृति (Nature of Mathematics) :-

विद्यालय पाठ्यक्रम में सम्मिलित किए जाने वाले प्रत्येक विषय के कुछ उद्देश्य तथा उसकी संरचना होती है जिसके आधार पर उस विषय की प्रकृति निश्चित होती है। गणित की प्रकृति को निम्न बिन्दुओं द्वारा भली-भाँति समझा जा सकता है-

1. गणित में संख्याएँ, स्थान, दिशा तथा मापन या माप-तौल का ज्ञान प्राप्त किया जाता है।

2. गणित की अपनी भाषा है। भाषा का तात्पर्य- गणितीय पद, गणितीय प्रत्यय, सूत्र, सिद्धान्त तथा संकेतों से है जो विशेष प्रकार के होते हैं तथा गणित की भाषा को जन्म देते हैं।

3. गणित के ज्ञान का आधार हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ हैं। 

4. इसके ज्ञान का आधार निश्चित होता है जिससे उस पर विश्वास किया जा सकता है।

5. गणित का ज्ञान यथार्थ, क्रमबद्ध, तार्किक तथा अधिक स्पष्ट होता है,जिससे उसे एक बार ग्रहण करके आसानी से भुलाया नहीं जा सकता।

6. गणित में अमूर्त प्रत्ययों को मूर्त रूप में परिवर्तित किया जाता है, साथ ही उनकी व्याख्या भी की जाती है। 

7. गणित के नियम, सिद्धांत, सूत्र सभी स्थानों पर एक समान होते हैं जिसमें उनकी सत्यता की जाँच किसी भी समय तथा स्थान पर की जा सकती है।

8. इसमें सम्पूर्ण वातावरण में पाई जाने वाली वस्तुओं के परस्पर सम्बन्ध तथा संख्यात्मक निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

9. इसके अध्ययन से प्रत्येक ज्ञान तथा सूचना स्पष्ट है तथा उसका सम्भावित उत्तर निश्चित होता है।

10.इसके विभिन्न नियमों, सिद्धांतों, सूत्रों आदि में संदेह की संभावना नहीं रहती है। 

11. गणित के अध्ययन से आगमन, निगमन तथा सामान्यीकरण की योग्यता विकसित होती है।

12. गणित के अध्ययन से बालकों में आत्म-विश्वास और आत्म-निर्भरता का विकास होता है।

13. गणित की भाषा सुपरिभाषित, उपयुक्त तथा स्पष्ट होती है।

14. गणित के ज्ञान से बालकों में प्रशंसात्मक दृष्टिकोण तथा भावना का विकास होता है। 

15. इससे बालकों में स्वस्थ तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित होता है।

16. इसमें प्रदत्तों अथवा सूचनाओं को आधार मानकर संख्यात्मक निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

17. गणित के ज्ञान का उपयोग विज्ञान की विभिन्न शाखाओं यथा- भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान तथा अन्य विषयों के अध्ययन में किया जाता है। 

18. गणित विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के अध्ययन में सहायक ही नहीं,बल्कि उनकी प्रगति तथा संगठन की आधारशिला है। 

19. इसकी प्रकृति अमूर्त से मूर्त की ओर होती है 

20. गणित का सभी विषयों के साथ सहसंबंध होता है ।


Sunday, July 17, 2022

निगमन विधि NIGMAN VIDHI

  निगमन विधि

प्रवर्तक -- प्लेटो


इस विधि मे बालकों को पहले नियम बता दिया जाता है और फिर बालकों को उदाहरण द्वारा उसी नियम का प्रयोग करना सिखाया जाता है।


परम्परागत विधि है।

शिक्षककेंद्रित विधि है।


#चार सोपान -- trick नि ऊ नि परी 

नियम➡️ उदाहरण➡️ निरीक्षण ➡️परीक्षण ।


1 प्राप्त ज्ञान अस्थाई ।

2 छात्र निष्क्रिय रहते हैं।

3 बड़ी कक्षाओं के लिये उपयोगी।

4 सबसे प्राचीन विधि।


  • शिक्षण सूत्र --( trick नि सा सू नि)
  • नियम से उदहारण की ओर।
  • अमर्त से मूर्त की ओर।
  • सामान्य से विशिष्ट की ओर।
  • सूक्ष्म से स्थूल की ओर।
  • अज्ञात से ज्ञात की ओर।



इसे सूत्र विधि /सिध्दांत प्रणाली/ पाठ्यपुस्तक प्रणाली भी कहते हैं।


निगमन विधि के गुण:-

1 इस विधि से साधारण शिक्षक भी सफलतापूर्वक पढ़ा सकता है।

2 समय तथा श्रम की बचत होती है।

3 इस विधि से ज्ञानार्जन तीव्र गति से होता है।

4 बालकों की स्मृति का विकास होता है।

5 इस विधि से ज्ञान देना सरल होता है।

6 यह एक व्यवहारिक विधि है।


दोष:-

1 अमनोवैज्ञानिक विधि है।

2 रटने पर आधारित विधि है।

3 प्राप्त ज्ञान अस्थाई होता है।

4 प्राथमिक स्तर पर उपयोगी नहीं है।

5 यह कक्षा कक्ष के वातावरण को नीरस बनाती है।

6 बालको मे तर्क वितर्क चिन्तन शक्ति का विकास नहीं हो पाता।



निगमन विधि के रूप --

1 सूत्र विधि:-

  • संस्कृत से आयी है।
  • व्याकरण की शिक्षा सूत्रों द्वारा दी जाती है।
  • हिन्दी मे इसका उपयोग न के बराबर है।
  • पाणिनी के अष्टाध्यायी पर आधारित है ।


2 पाठ्यपुस्तक विधि :-

अंग्रेजी से हिन्दी मे आयी है।

पाठ्यपुस्तक द्वारा व्याकरण की शिक्षा दी जाती है।




Saturday, August 29, 2020

वाद विवाद विधि तथा प्रश्नोत्तर विधि

वाद विवाद विधि :- 
बिना पूर्व तैयारी के कुछ कहना भाषण अर्थात व्याख्या करना, सम्यक अबबोध अर्थात ज्ञान प्रदर्शन, विमति अथवा विप्रलाप आदि क्रिया उस समय प्रचलित थी।

यह सभी क्रियाएं वाद विवाद  की प्रतीक हैं 

शास्त्रार्थ एवं संवाद इसी के उदाहरण हैं ।
जैसे गार्गी द्वारा किए गए प्रश्न ।
गुण:-  इससे छात्र में भाव प्रकाशन की शक्ति बढ़ती थी ।



प्रश्नोत्तर विधि:- 
प्राचीन काल में ओंकार शब्द के उच्चारण के बाद पाठ पढ़ाना आरंभ किया जाता था ।
व्याख्यान को प्रश्नोत्तर विधि से पढ़ाया करते थे।
प्रत्येक प्रश्न के पश्चात छात्र उनकी आवृत्ति करते थे ।
इस प्रकार संपूर्ण व्याख्यान समाप्त होता था ।
छात्र सक्रिय थे ।
स्व चिंतन तर्क एवं निरीक्षण शक्ति के विकास पर बल दिया जाता था।
इस विधि के प्रवर्तक सुकरात हैं।

Sunday, August 2, 2020

आगमन विधि

व्याकरण:- व्याकरण शब्द वि + आ + कृ धातु + ल्युट प्रत्यय के योग से बना है ।


जिस शास्त्र के द्वारा शब्द की व्युत्पत्ति या रचना का ज्ञान करवाया जाता है उसे व्याकरण शास्त्र कहते हैं।


परिभाषा
  • स्वीट महोदय-" व्याकरण भाषा का व्यवहारिक विश्लेषण है "
  • - व्याकरण भाषा का मेरुदंड है।
  • पतंजलि ने *महाभाष्य* में व्याकरण को शब्दानुशासन कहा है।
  • किशोरीदास बाजपेयी ने व्याकरण को "भाषा का भूगोल " कहा है।
  • व्याकरण को भाषा शिक्षण का सर्वश्रेष्ट राजमार्ग भी कहा है।

व्याकरण वेद रूपी पुरुष का मुख मना जाता है।

  1. व्याकरण- मुख
  2. ज्योतिष- आँख
  3. निरुक्त- कान
  4. कल्प - हाथ
  5. शिक्षा- नाक
  6. छ्न्द- पैर ।

व्याकरण शिक्षण के उद्देश्य
1 छात्रों को विभिन्न ध्वनियों का ज्ञान देना।
2 शुद्ध भाषा का प्रयोग करने की क्षमता का विकास करना।
3 वाक्यों मे शब्दों का स्थान उनका अर्थ इत्यादि की कुशलता का विकास करना।
4 बच्चों को इस योग्य बनाना की वे कम से कम शब्दों मे अपने भाव प्रकट कर सकें।


नोट ---नियम बताकर भाषा सिखाना कक्षा 6 से पहले प्रारंभ नहीं किया जाना चाहिए।


भाषा शिक्षण मे व्याकरण का निम्न स्वरूप होना चाहिए--
1 प्रारंभिक कक्षाओं में ज्ञान।
2 निम्न कक्षाओं मे पहले उदाहरण दे।
3 उच्च कक्षाओं में सामान्य नियम के साथ उसकी आलोचना आवश्यक है।
4 व्याकरण शिक्षण का आरंभ वाक्य से।



A आगमन विधि
प्रवर्तक -- अरस्तु महोदय।


# व्याकरण शिक्षण की श्रेष्ट विधि है।

इस विधि मे नियमों को प्रत्यक्ष नही बताया जाता उदाहरण द्वारा बच्चों से निकलवाया जाता है।

  • #शिक्षण सूत्र -- trick आ वि स् ज्ञान
  • यह विधि उदाहरण से नियम की ओर बढ़ती है
  • विशिष्ट से सामान्य की ओर
  • मूर्त से अमूर्त की ओर
  • ज्ञात से अज्ञात की ओर

इसके चार चरण होते हैं।
( Trick - उ नि नि परी)
उदाहरण प्रस्तुत करना ➡️ निरीक्षण(तुलना या विश्लेषण) करना ➡️ नियमीकरण (निष्कर्ष निकलना)➡️ परीक्षण(प्रयोग एवं अभ्यास की पुष्टि करना) ।


इसे प्रयोग प्रणाली / सहयोग प्रणाली / सहसंबंध प्रणाली भी कहते हैं।

गद्य शिक्षण करते समय की व्याकरण के नियम बता दिये जाते हैं।
उदाहरण-- भारत मेरा देश है।
इस वाक्य मे भारत ,देश आदि शब्दों द्वारा संज्ञा को परिभाषित किया जाता है।

#आगमन विधि के गुण --
1 प्राप्त ज्ञान स्थायी होता है।
2 छात्र सक्रिय रहते हैं।
3 छोटी कक्षाओं के लिए उपयोगी है।
4 सरस विधि ,रुचिकर विधि।
5 मनोवैज्ञानिक विधि।
6 खोज सिध्दांत पर आधारित है।
7 बालकेंद्रित विधि
8 अध्यापक और छात्र दोनो सक्रिय रहते हैं।
9 इस विधि के द्वारा बालकों मे आत्मविश्वास बढ़ता है।

दोष
1 प्रशिक्षित तथा अनुभवी शिक्षकों की कमी।
2 समय तथा श्रम साध्य विधि ।
3 उच्च स्तर पर अनुपयोगी विधि।
4 लम्बी विधि है।
5 पाठ्यक्रम को कारवाने मे असमर्थ है।


आगमन विधि के रूप---
1 भाषा संसर्ग विधि
मनोवैज्ञानिक है परंतु अपूर्ण विधि है
इस विधि मे बिना व्याकरण की शिक्षा दिये शुद्ध लिखना पढ़ना बोलना सिखाया जाता है।

इस विधि में विद्यार्थीयों को अच्छे लेखकों की पुस्तकें पढ़ने के लिये दी जाती हैं।
तथा ऐसे लोगों के साथ रखा जाता है जिनकी भाषा पर अच्छी पकड होती है।

इस विधि मे व्यवहारिक ज्ञान पर बल दिया जाता है।




2 समवाय विधि ---
अन्य नाम- सहयोग विधि
इस विधि में शिक्षक गद्य- पद्य के साथ साथ व्याकरण की शिक्षा देता है।

यह विधि गांधीजी की बुनियादी सिद्घांत पर आधारित है।

आगमन विधि का रूप है।





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