लेखन कौशल या लेखन शिक्षण की विधियां:-
लेखन कौशल की पांच विधियां हैं।
1 रूपरेखा अनुकरण विधि :-
इस विधि में अध्यापक बालकों की अभ्यास पुस्तिका में बिंदुओं की सहायता से या अपने हलके हाथ से आकृति बनाता है और फिर बालकों से उन्हीं बिंदुओं पर या रेखाओं पर कलम घुमाने के लिए कहा जाता है ।
बालक इन हल्की रेखाओं को गहरा कर के शब्दों को लिखना सीखना है। वर्तमान में इस विधि के लिए कई अभ्यास पुस्तिकाएं भी उपलब्ध है, जैसे छोटे बच्चों की किताब में डॉट डॉट वाली अंग्रेजी या हिंदी के अक्षर आते हैं जिन पर पेंसिल पेन घुमा कर उनको गहरा किया जाता है।
2 स्वतंत्र अनुकरण विधि :- इस विधि में अध्यापक बालकों की अभ्यास पुस्तिका में शब्दों को लिखता है और फिर बालकों से उन्हीं शब्दों का अनुकरण करने के लिए कहा जाता है।
जैसे राम आम खाता है । - इसी के नीचे 10 लाइन लिखवाने के लिए देता है।
3 मांटेसरी विधि / खेल खिलौना विधि :-
प्रवर्तक:- मैडम मारिया मांटेसरी 1907 । विद्यालय की स्थापना की नाम दिया बाल घर ।
इस विधि मे इन्द्रियों के प्रशिक्षण पर बल दिया जाता है।
कलम पकड़ने का अभ्यास कराना।
रेखायें खींचना सिखाना
ज्ञानेंद्रियां ज्ञान ग्रहण का सर्वोत्तम साधन है।
बालक की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर मैडम मांटेसरी ने इस विधि का निर्माण किया ।
इसमें कागज के मोटे गद्दे ,लकड़ी व प्लास्टिक के टुकड़ों पर शब्दों की उभरी हुई आकृति होती है बालकों को इन आकृतियों पर उंगली घुमाने के लिए कहा जाता है।
फिर उन्हें शब्दों का ज्ञान कराया जाता है ।
इस विधि में बालकों के हाथ ,आंख और कान तीनों सक्रिय रहते हैं अतः यह मनोवैज्ञानिक विधि है ।
3 से 6 वर्ष के बालकों के लिये उपयोगी है।
प्राथमिक स्तर पर एक शिक्षिका का होना इन्ही की देन है।
दोष :- खर्चीली विधि है।
समय साध्य विधि है।
इस विधि द्वारा बालक सर्वप्रथम म् वर्ण बोलता है ।
मारिया के अनुसार 45 दिन में लिखना तथा 15 दिन में पढना सिखा दिया जाता है ।
इनके अनुसार भाषायी कौशलों का क्रम = सुनना➡️ बोलना➡️ लिखना➡️ पढ़ना है।
4 पेस्टालौज़ी विधि :-
इस विधि में अध्यापक वर्णों के टुकड़े करके फिर उन टुकड़ों को मिलाकर अक्षरों का ज्ञान कराता है । क= 0 ,।
वर्ण लेखन की सबसे सरल विधि है।
इस विधि मे अंश से पूर्ण शिक्षण सूत्र का पालन किया जाता है।
5 जैकेटौट विधि:- जैकेटौट महोदय के नाम पर इस विधि का नाम रखा गया है।
इस विधि का दूसरा नाम स्वयं संशोधन विधि है।
इस विधि में अध्यापक द्वारा श्यामपट्ट पर लिखे हुए मूल शब्द को देखकर बालक अपने लिखे हुए शब्द में संशोधन करता है यह विधि बालक को स्वयं संशोधन करने का मौका देती है।
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