इकाई विधि :-
शिक्षा के क्षेत्र में सामान्य रूप से इस पद का प्रयोग 1920 ईस्वी में हुआ ।
जेम्स एमली ने इसे विषय वस्तु के क्षेत्र में संगठन का ढांचा माना है परंतु बाद में उसको शिक्षण विधि के रूप में भी ग्रहण किया गया।
थॉमस एम रिस्क के अनुसार :- इकाई किसी समस्या या योजना या संबंधित सीखने वाली क्रियाओं की समग्रता या एकता को प्रकट करती है।
मॉरीसन के अनुसार :- इकाई वातावरण संगठित विज्ञान कला या आचरण का एक व्यापक एवं महत्वपूर्ण अंग होती है जिसे सीखने के फलस्वरूप व्यक्तित्व मे सामंजस्य जाता है।
एनसीईआरटी के अनुसार :- इकाई एक निर्देशात्मक युक्ति है जो छात्रों को समवेत रूप में ज्ञान प्रदान करती है ।
इकाई विधि की कुछ प्रमुख विशेषताएं :-
हेनरी हैरेप (1930) ने प्रस्तुत की है।
1 इकाई किसी रूचि पर आधारित कार्य का एक बड़ा भाग होता है।
2 इकाई ज्ञान की किसी शाखा का तार्किक विभाजन है ।
3 इकाई कार्य पूर्ण अनुभव है जिसमें छात्र एक निश्चित एवं उपयोगी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संलग्न रहते हैं ।
4 इकाई रुचि के विशेष केंद्रों पर आधारित कक्षा के संपूर्ण कार्यों का खंडों में विभाजन है ।
5 इकाई किसी विषय का एक बड़ा विभाग होता है जिसका कोई मूलभूत सिद्धांत या प्रकरण होता है ।
थॉमस के अनुसार:-
इकाई के शिक्षण के लिए 3 पद दिए हैं।
इकाई की प्रस्तावना :-
A) छात्रों के ज्ञान को पाठ्यपुस्तक की ओर आकर्षित करना।
B) छात्रों को सीखने के लिए प्रेरित करना।
C) छात्रों को इकाई से संबंधित क्रियाओं में सलग्न करना।
इकाई का विकास :- इस पद से आशय इकाई के निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करना है। इसके लिए निम्न युक्तियों का प्रयोग किया जाता है।
- व्याख्यान
- निर्देशित परीक्षण
- सारांश लेखन
- विचार-विमर्श
- अभ्यास
इकाई की पूर्ति :- इस पद पर पहुंचकर इकाई को पराकाष्ठा तक पहुँचाया जाता है।
- छात्रों द्वारा अपने कार्य का मूल्यांकन ।
- इकाई के कार्य का एकीकरण।
- शिक्षक द्वारा छात्रों के ज्ञान का मूल्यांकन।
- अर्जित ज्ञान की अभिव्यक्ति ।
- इकाई का मूल्यांकन
- उपचारात्मक कार्य।
मॉरीसन द्वारा प्रतिपादित शिक्षण पद:-
पूर्व ज्ञान की खोज :- इस पद में शिक्षक इस बात का पता लगाता है कि नवीन इकाई के संबंध में छात्रों को कितना पूर्व ज्ञान है।
इसके लिए वह निम्नलिखित युक्तियां उपयोग में लेता है :-
- मौखिक प्रश्न द्वारा
- विचार विमर्श द्वारा
- लिखित परीक्षा द्वारा
प्रस्तुतीकरण :- इस पद में शिक्षक इकाई की विषय वस्तु को छात्रों के समक्ष व्याख्यान द्वारा प्रस्तुत करता है । इसके बाद वह प्रश्नों के माध्यम से यह जानने का प्रयास करता है कि छात्र विषय वस्तु को समझ गए हैं या नहीं यदि छात्र नहीं समझे हैं तो वह पुनः प्रस्तुत करेगा
आत्मीकरण:- इस पद में छात्रों को इकाई की विषय वस्तु को आत्मसात करने का अवसर प्रदान किया जाता है।
इस सोपान पर छात्र निम्नलिखित युक्तियों के माध्यम से विषय वस्तु को आत्मसात करते हैं।
- अध्ययन द्वारा
- लिख कर
- एक दूसरे से बातचीत करके
- शिक्षक से परामर्श द्वारा
संगठन :- इस पद पर छात्र इकाई की विषय वस्तु को व्यवस्थित रूप में लिखकर ज्ञान को संगठित करते हैं । यदि वे ऐसा करने में सफल होते हैं तो शिक्षक ये समझ लेता है कि वे इकाई की विषय वस्तु को भलीभांति समझ गए ।
वाचन:- इस पद पर निम्नलिखित दो विधियों को प्राप्त किया जा सकता है ।
आदर्श विधि :- इसके अनुसार प्रत्येक छात्र को इकाई की विषय वस्तु को कक्षा के समक्ष उसी प्रकार प्रस्तुत करना पड़ता है जिस प्रकार शिक्षक ने उनके समक्ष प्रस्तुत किया था ।
वास्तविक विधि:- इसके अनुसार कुछ छात्र इकाई का वाचन करते हैं कुछ ऐसे लिखते हैं और कुछ उस पर विचार विमर्श करते हैं शिक्षक उनकी इन विभिन्न क्रियाओं के आधार पर यह निर्णय करता है कि उन्होंने इकाई की विषय वस्तु को किस सीमा तक ग्रहण किया है ।
वायनिंग वायनिंग के अनुसार :- इस विधि में अधिक समय लगता है साथ ही बार-बार की पुनरावृति से कक्षा का वातावरण भी निरस्त हो जाता है ।
इकाई विधि के लाभ :-
- छात्रों में सहयोग विनम्रता नेतृत्व सहकारिता धैर्य सहनशीलता आदि गुणों का विकास किया जा सकता है ।
- छात्रों में उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य करने की भावना उत्पन्न की जा सकती है ।
- इसके द्वारा छात्रों में स्वाध्याय की आदत का निर्माण किया जा सकता है ।
- इस विधि के द्वारा छात्रों को वातावरण से सामंजस्य स्थापित करने की क्षमता प्रदान की जाती है।
- यह विधि करके सीखने के सिद्धांत पर बल देती है।
- इसके द्वारा छात्रों में योजना बनाने का उत्पन्न किया जा सकता है ।
- यह कार्य को सक्रिय बनाती है ।
- प्राकृतिक परिस्थितियों द्वारा कौशल विकास
इकाई विधि के दोष :-
- यह विधि अन्य विधियों की भांति सभी प्रकार के ज्ञान उपार्जन के लिए उपयुक्त नहीं है।
- इसके द्वारा हम छात्रों को अनुभूति का पाठ नहीं दे सकते अर्थात इसके द्वारा छात्रों में सौंदर्य भावना का विकास नहीं किया जा सकता है।
- इसके ना तो शिक्षण पद ही निश्चित है ना ही उनके लिए समय की सीमा ही निर्धारित है ।
- शिक्षक की जरा सी असावधानी से छात्रों का बहुमूल्य समय बर्बाद हो सकता है ।
- इन शिक्षण पदों का सभी विषयों के शिक्षण में प्रयोग नहीं किया जा सकता है ।
- क्रमिकता का अभाव रहता है।
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