लिखना कौशल / लेखन कौशल :-
बालक द्वारा सीखी गई विषय वस्तु के ध्वनि रूप को लिखकर अभिव्यक्त करना लेखन कौशल कहलाता है ।
कौशलों के क्रम में यह अंतिम कौशल माना जाता है लेकिन मैडम मारिया के अनुसार यह तीसरा कौशल होता है ।
कठिनाई के स्तर में यह सबसे कठिन कौशल है , इसका संबंध मूर्त, लिखित व भावाभिव्यक्ति से होता है।
यह पठन कौशल पर निर्भर करता है ।
पठन कौशल में बालक शब्द से अर्थ की ओर बढ़ता है तथा लेखन कौशल में बालक अर्थ से शब्द की ओर बढ़ता है
लेखन कौशल के उद्देश्य तथा महत्व :-
1 बालकों को शब्दों को शुद्ध लिखने की योग्यता प्रदान करना।
2 इसमें बालकों की ज्ञानेंद्रियां सक्रिय रहती हैं ।
3 बालक शब्दों को सही सही उचित प्रकार से लिखना सीखता है।
4 दूरस्थ व्यक्ति को लिखित संदेश भेजने के लिए लिखित भाषा का ही सहारा लिया जाता है ।
5 व्यापारिक गतिविधियों में भी लिखित भाषा का प्रयोग होता है ।
6 विद्यालय तथा महाविद्यालयों में पाठ्य पुस्तक लिखित रूप में होती हैं ।
7 परीक्षाओं में भी जिसका सुंदर लेखन होता है उसे अच्छे अंक मिलते हैं इसलिए लेखन कौशल अनिवार्य है।
8 पूर्वजों की धरोहर को सम्भाले रखने के लिए लिखित भाषा का उपयोग किया जाता है।
लेखन के प्रकार :-
लेखन के तीन प्रकार होते हैं ।
1 प्रतिलेख :- प्रतिलेख में छात्र स्वतंत्र रूप से किसी पुस्तक या पत्र-पत्रिका के किसी भाग का अनुकरण करके अपनी कॉपी में लिखता है। लेखन सामग्री बालकों की रूचि के अनुसार होनी चाहिए । कक्षा 4 ,5 ,6 में प्रतिलेख का अभ्यास कराया जा सकता है ।
2 अनुलेख :- अनुलेख का अर्थ है किसी लिखावट के पीछे या बाद में लिखना अर्थात सुलेख का पर्यायवाची अनुलेख है । कक्षा 3 तक अनुलेख का अभ्यास कराया जा सकता है। प्राथमिक कक्षाओं में अनुलेख का विशेष महत्व है।
3 श्रुतिलेख :- श्रुतलेख सुना हुआ लेख है । इसमें अध्यापक बोलता है और छात्र सुनकर बोली हुई सामग्री लिखता है। सुनने समझने की योग्यता के शिक्षण और परीक्षण का श्रुतलेख अच्छा साधन है।
इसका उद्देश्य छात्रों की श्रवण इंद्रियों को प्रशिक्षित करना है ।
➡️श्रुतलेख में अध्यापक अधिक से अधिक तीन बार बोलता है।
सुलेख :- माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के सेवानिवृत्त सचिव श्री तेज कर डांडिया ने बालकों के सुलेख को सुधारने के लिए एक योजना चलाई है इस योजना का नाम "सुलेख लेखन की प्यास जगाओ है।"
"महात्मा गांधी के शब्दों में सुलेख व्यक्ति की शिक्षा का एक आवश्यक पहलू है" ।
हिन्दी मे अनुवर्तन कार्य:-
लिखित कार्य में संशोधन के पश्चात जो त्रुटियां अशुद्धियां शुद्ध की जाती हैं उनका पुनरावलोकन छात्र फिर से करना चाहिए ।
अनुवर्तन हेतु शब्दाभ्यास,वर्तनी का अभ्यास इत्यादि करके अनुवर्तन कार्य संपन्न कराया जाता है।
जिन अशुद्धियों को बालक अधिकतर करते हो उन्हें कक्षा में सभी छात्रों के सामने शुद्ध रूप से स्पष्ट किया जाना चाहिए
छात्र द्वारा अशुद्ध शब्दों को 5 से 10 बार लिखकर शुद्ध लेखन का अभ्यास करना चाहिए
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