Wednesday, August 19, 2020

पढ़ना कौशल पठन कौशल

 पठन कौशल/वाचन कौशल/ पढ़ना कौशल:- 

वचन शब्द वाक्  धातु से बना है।

वाचन :- वाचन का अर्थ होता है पढ़ना।

इसमें बालकों को किसी भी लिखे हुए अंश को पढ़ने योग्य बनाया जाता है।

विषय वस्तु को अर्थ ग्रहण करते हुए मनोयोग पूर्वक पढ़ना पठन कौशल कहलाता है।

यह कौशल सुनना बोलना कौशल की तुलना में कठिन होता है।

मनोवैज्ञानिक क्रम में यह तीसरा कौशल है।

इस कौशल द्वारा प्राप्त ज्ञान ज्यादा समय तक स्थाई रहता है

वाचन के दो भेद हैं।

व्यक्तियों की संख्या के आधार पर:- व्यक्तिगत पठन और सामूहिक पठन।

ध्वनि के आधार पर :- सस्वर वाचन और मौन वाचन ।

वाचन के उद्देश्य तथा महत्व :- 

बालकों को शुद्ध पढ़ना सिखाना 

बालकों में किसी भी लिखे हुए लेख को पढ़ने की क्षमता उत्पन्न करना 

वाचन का ज्ञान हमें सामाजिक सम्मान देता है 

वाचन ही साक्षरता का प्रमाण पत्र प्रदान करता है 

भाषा की विविधता का ज्ञान वाचन द्वारा ही होता है

वाचन ही हमें विविध शैलियों से परिचित करवाता है 

वाचन मनुष्य को पूर्ण बनाता है

नि:संकोच बोलने की प्रवृति का विकास ।

A) सस्वर वाचन :- 

जब बच्चा स्वर सहित पठन करता है तो उसे सस्वर वाचन कहते हैं। वाचन की यह प्रथम अवस्था है ।

सस्वर वाचन से उच्चारण शुद्ध होता है ।

सस्वर वाचन वाचन शक्ति का विकास करता है ।

सस्वर वाचन दो प्रकार का होता है ।

1) व्यक्तिगत वाचन।

2) सामूहिक वचन:- 

 व्यक्तिगत वाचन :- 

एक व्यक्ति द्वारा किया गया सस्वर वाचन व्यक्तिगत वाचन  कहलाता है ।

यह वाचन अध्यापक तथा विद्यार्थी दोनों द्वारा किया जा सकता है ।

अध्यापक सस्वर वाचन उस समय करता है जब उसे विद्यार्थी के समक्ष परिच्छेद को पढ़ाता है ।

जब अध्यापक विद्यार्थी को पढ़ने के लिए कहता है तब विद्यार्थी भी सस्वर वाचन करता है।

 सामूहिक या समवेत वाचन :- 

जब एक से अधिक विद्यार्थी मिलकर ऊंचे स्वर में पढ़ते हैं तो उसे समवेत या सामूहिक वचन कहते हैं । यह प्राय: छोटी कक्षाओं में होता है ।

इसके अंतर्गत एक विद्यार्थी पाठ पड़ता है और शेष विद्यार्थी उसका अनुकरण करते हैं।

सस्वर वाचन के गुण :- 

1 शुद्ध उच्चारण :-  सस्वर वाचन में वर्णों तथा शब्दों के शुद्ध उच्चारण पर बल दिया जाता  है यदि उच्चारण की तनिक भी अशुद्धि हो जाए तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है जैसे ग्रह और गृह, सामान और समान।

2 उचित ध्वनि निर्माण:-  जिस वर्ण का जहां से उच्चारण होता है उसे वहीं से करना चाहिए जैसे 'क' वर्ण का कंठ से 'च' का तालू से ।

3 उचित बल तथा विराम का प्रयोग :- सस्वर वाचन करते समय विद्यार्थी को यह पता होना चाहिए कि विराम कहां लगाना है,कहां अधिक रुकना है ,कहां कम रुकना है। जैसे- रोको, मत जाने दो। :- रोकने के लिये आदेश 

 रोको मत,जाने दो :-  ना रोकने के लिये आदेश  ।

उचित हाव भाव:-  सस्वर पाठ करते समय पाठ्य सामग्री के अनुसार हवाओं का प्रदर्शन करना चाहिए श्रृंगार का भाव अलग होता है क्रोध का भाव अलग होता है और वीरता का भाव अलग होता है।


वाचन के अन्य भेद :- 

1 आदर्श वाचन :- अध्यापक द्वारा विषय वस्तु को उचित आरोह अवरोह प्रभाव और स्पष्ट उच्चारण के साथ पढ़ना आदर्श वाचन कहलाता है ।

यह व्यक्तिगत होता है ।

2 अनुकरण वाचन :-  अध्यापक द्वारा प्रस्तुत आदर्श वाचन का विद्यार्थियों द्वारा ठीक वैसा ही दौरान अनुकरण वाचन कहलाता है।

 यह व्यक्तिगत व सामूहिक दोनों प्रकार का होता है ।

मौन वाचन :-  विषय वस्तु को बिना आवाज या ध्वनि के पढ़ना मौन वाचन कहलाता है ।

इसके तीन प्रकार होते हैं ।

1 गहन मौन वाचन :-  किसी भी सारगर्भित विषय वस्तु का गहन अर्थ करते हुए बालक द्वारा किया जाने वाला बिना ध्वनि का वाचन गहन मौन वाचन कहलाता है ।

इसमें विषय वस्तु कठिन हो सकती है ।

2 द्रुत मौन वाचन :-  किसी विषय वस्तु का दौहरान सरल विषय वस्तु का पठन व पृष्ठ में शब्द को ढूंढना इन क्रियाओं को करने में जो वाचन होता है वह द्रुत मौन वाचन कहलाता है।

3  सामान्य मौन वाचन :- यह एक प्रकार का औपचारिक मौन वाचन है जिसका उद्देश्य मनोरंजन अवकाश के समय का सदुपयोग करना भी हो सकता है ।

विशेष :- मौन वाचन का उद्देश्य विद्यार्थियों में स्वाध्याय की प्रवृत्ति विकसित करना । 

कक्षा कक्ष में अनुशासन स्थापित करना । 

अवकाश के समय का सदुपयोग करना ।

गहन वाचन से बालकों में एकाग्रता का विकास होता है। 

तीव्र वाचन से बालकों मे पठन गति का विकास होता है।

मौन वाचन बालकों में चिंतनशीलता का विकास करता है।

संकोची प्रवृति के बालकों के लिये समवेत या सामूहिक वाचन उपयोगी है ।

वाचन कौशल की विधियाँ :- 

1 देखो और कहो विधि:- इस विधि में अक्षरों का ज्ञान ना कराकर शब्दों का ज्ञान कराया जाता है । पूरे शब्द को श्यामपट्ट पर लिख दिया जाता है और अक्षरों की पहचान के  स्थान पर शब्द के स्वरूप की पहचान कराई जाती है। यह प्राथमिक ,उच्च प्राथमिक स्तर पर उपयोगी है । इस विधि में छात्रों में कल्पना शक्ति व रचनात्मक शक्ति का विकास होता है , अर्थात यह विधि सृजनशील छात्रों के लिए ही उपयोगी है ।जैसे :- कमल, नयन ,पावक ।

2 ध्वनि साम्य विधि :- मनोवैज्ञानिक विधि है। प्राथमिक स्तर के लिए उपयोगी है। इसमें एक समान ध्वनि वाले शब्द सिखाए जाते हैं जैसे :- आम काम धाम नाम चाम आदि । इस विधि में छात्र अनावश्यक व निरर्थक शब्द सीख लेता है ।

जैसे :- धर्म कर्म मर्म ।

3 अक्षर बोध विधि :- यह पुरानी विधि है इसमें बालकों को अक्षरों का ज्ञान कराया जाता है बालकों का अधिकांश समय वर्णमाला को रखने में चला जाता है  ।

क, म, ल = कमल 

4 भाषा शिक्षण की यंत्र विधि :- यह एक आधुनिक विधि है इसमें ग्रामोफोन में पाठ भरा जाता है जिसे सुनकर बालक उसका अनुकरण करके पढ़ने का अभ्यास करते हैं यह व्यय साध्य विधि है।

टेप रिकॉर्डर , कैसट, सहायक चित्र, सहायक पुस्तक।

 5 समवेत पाठ विधि :- इस विधि में छोटे पद्य या गीत सुविधा पूर्वक सिखाया जा सकते हैं। इसमें अध्यापक पाठ के अंश को स्वयं भाव पूर्ण रीति से पढाता है तथा छात्रों से उसकी आवृत्ति करने के लिए कहता है ।

6 संगत विधि/ साहचर्य विधि :-  मोंटेसरी द्वारा प्रयुक्त इस विधि में बहुत सी वस्तु चित्र खिलौनों आदि के आगे उनके नाम कारणों पर लिख दिए जाते हैं और उन सभी कारणों को मिला दिया जाता है फिर वही नाम उस वस्तु के आगे रखना होता है । यह विधि मनोवैज्ञानिक विधि है।

सभी शब्दों का ज्ञान नहीं कराया जा सकता है जैसे प्रेम ,घृणा , ईश्वर , आत्मा इत्यादि।

यह विधि कमजोर छात्रों के लिये उपयोगी है।

नोट:- इस विधि मे भाषा की इकाई शब्द को माना जाता है।

7 समग्र भाषा विधि:-  इस विधि में अक्षर ,ध्वनि, वाक्य आदि को क्रम से एक साथ ही बनाना सिखाया जाता है ।यह विधि व्यवहारिक विधि नहीं है ।

8 संप्रेषण या वाचन विधि :- इस विधि में ध्वनियों को उच्चारण आरंभ से ही कराया जाता है शिक्षक वर्णमाला सिखाते समय ध्वनियों के शुद्ध उच्चारण का स्थान छात्र को बता देता है।


पठन कौशल में आने वाली कठिनाई  :- 

1 शिक्षक का अपूर्ण होना  

2 वर्ण पहचान में कठिनाई 

3 बालक को वर्णों के उच्चारण स्थान का ज्ञान ना होना 

4 तुतलाना

5 कठिन शब्दों के पठन में परेशानी 

6 पूर्वाग्रह से ग्रसित 

7 प्रयत्न लाघव 

8 क्षेत्रीयता का प्रभाव 

9 नाक में पठन ।

 उपाय :- 

1 बालकों को वर्णों के  उच्चारण स्थानों का परिचय करना चाहिए।

2 व्याकरण का ज्ञान प्रदान करना चाहिए ।

3 ध्वनि संकेत और विराम चिन्हों का ज्ञान भी कराना चाहिए ।

4 अध्यापक द्वारा आदर्श रूप में स्पष्ट रूप से पढ़ना चाहिए।

5  बालकों को स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अवसर देना चाहिए




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