Saturday, August 22, 2020

द्विभाषी विधि और सैनिक विधि

 द्विभाषी विधि और सैनिक विधि :-

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JAMES LANE





द्विभाषी विधि:-  प्रवर्तक डोडसन ।

H.N. शास्त्री के अनुसार :- "द्विभाषी विधि को व्याकरण अनुवाद विधि व प्रत्यक्ष विधि के मध्य का सेतु कहा जाता है।"

द्विभाषी विधि अंग्रेजी फ्रेंच रूसी आदि विदेशी भाषाएं पढ़ाने के काम में ली जाती है।

बालक मातृभाषा प्रत्यक्षीकरण के साथ सीखता है।

इसमें प्रत्येक शब्द को अनुदित नहीं किया जाता ।

हिंदी में इसी के समान एक दूसरी विधि अनुवाद विधि है।

द्विभाषी विधि में केवल मातृ भाषा के शब्दों का तथा अनुवाद विधि में पूरा का पूरा अनुवाद करके शिक्षण किया जाता है।

यह एक ऐसी प्रकार की विधि है जिसमें 2 भाषाओं के शब्दों को एक साथ जोड़ कर वाक्य बनाए जाते हैं और दो तीन बार इस व्यवहार को अपनाने से बालक नवीन भाषा में पूरा वाक्य बोल लेता है ।

जैसे :- लो आम -  लो मैंगो -  टेक आम- टेक मैंगो।

वर्तमान समय में इस विधि का वास्तविक रूप में प्रयोग उस स्थान पर होता है जहां अलग-अलग भाषाओं के जानकार लोगों के बीच संवाद को बनाए रखने के लिए कोई एक व्यक्ति उनके बीच में द्विभाषीये  का काम करता है।

जैसे:- राहुल गांधी का South  में भाषण।



सैनिक विधि :-  दूसरे विश्व युद्ध के समय जब अमेरिका में सैनिकों की कमी आ गई थी तब अमेरिकी सरकार ने क्रियात्मक अनुसंधान के आधार पर सेना में अनपढ़ लोगों की भर्ती की तथा उन लोगों को भाषा सिखाने के लिए एएसटीपी-- (आर्मी स्पेशलाइज्ड ट्रेनिंग प्रोग्राम )शुरू किया और 15 से 20 लोगों का समूह बनाते हुए सिर्फ भाषा के आधार पर अनपढ़ सैनिकों को भाषा का ज्ञान करवाया , इसलिए इसे श्रव्य भाष्य सैनिक विधि या आर्मी मेथोड भी कहते हैं ।

भारतीय परिवेश में जब बालकों को मौखिक रूप से भाषा का ज्ञान दिया जाना होता है उस समय इस विधि का उपयोग किया जाता है।

 इस विधि में शिक्षक स्वयं अथवा टेप द्वारा पूरा पाठ सुनाता है , विद्यार्थी द्वारा उच्चारण एवं अनुकरण करने के कारण इसे अनुकरण परिस्मरण विधि भी कहते हैं ।

प्रत्यक्ष विधि के दोषों का निवारण बहुत कुछ इस विधि द्वारा किया गया है ।

भाषा क्षमता विकसित होती है ।

इसका उद्देश्य बालकों को वास्तविक परिस्थिति में भाषा प्रयोग कर सकने की योग्यता प्रदान करना है ।

इस विधि में भाषा के कौशलों का अभ्यास कराया जाता है

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