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Thursday, April 4, 2024

पाठ्यपुस्तक

Book शब्द जर्मन भाषा के Beak शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है वृक्ष। 

अध्ययन अध्यपान की प्रक्रिया मे पाठ्य पुस्तक का महत्व पूर्ण स्थान है। पाठ्य पुस्तक कक्षा कक्ष की प्रक्रिया मे छात्रों के लिए अधिगम का महत्व पूर्ण साधन होती है। 

अतः पाठ्य पुस्तकों को छात्रों के लिए मित्रवत माना गया है। 


प्रस्तावनाः-

राष्ट्रीय पाठ्यचर्चा की रूपरेखा 2005 के अनुसार पाठ्यपुस्तकों में इस प्रकार की सामग्री संकलित की जाए जो बच्चों के ज्ञान, समझ, दृष्टिकोण और कौशलों को बनाने संवारने में मददगार हो सके। 

बच्चों के स्थानीय परिवेश व उसके अनुभवों को भी सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में महत्व देते हुए आगे बढ़नें के अवसर पाठ्यपुस्तक में होने चाहिए। 

पाठ्यपुस्तकें ऐसी हों जो अपने विषय की प्रकृति से संबंध रखे और बच्चे उसको पढ़ते हुए अपना सोचना विचारना जारी रख सकें न कि ज्ञान को मात्र प्रदत्त के रूप में ग्राहय करें। 


पाठ्य पुस्तक का अर्थः


पाठ्य पुस्तकें वे पुस्तकें हैं जो किसी स्तर के बच्चों की पाठ्‌यचर्यानुसार तैयार की जाती है। इनमें वे तथ्य एवं सूचानाएं संकलित होती हैं, जिनका ज्ञान उस स्तर के बच्चों को देना चाहते हैं। आज की सम्पूर्ण शिक्षा ही पाठ्य-पुस्तकों पर ही आधारित हैं। आज ये पाठ्यपुस्तकें शिक्षा के मुख्य साधन के रूप में प्रयोग की जाती हैं। अतः वर्तमान में पाठ्‌यपुस्तकों का अत्याधिक महत्व है। सभी कक्षाओं के लिए पाठ्यपुस्तकें का होना अनिवार्य है। पाठ्य-पुरातकें शिक्षक के कार्य की परिपूरक होती हैं। पाठ्‌य पुस्तके अध्यापकों के लिए पुस्तकें शिक्षित करने का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्रोत है। । शैक्षिक विकास एवं पाठ्यचर्या विकास में पाठ्यपुस्तक चयन एवं लेखन शामिल रहता है। पाठ्यपुस्तक अथवा पुस्तक अनेक प्रकार के कार्य करती है।


पाठ्य पुस्तक की परिभाषाः

हैरोलिकर के अनुसारः पाठ्यपुस्तक ज्ञान, अनुभवों, भावनाओं, विचारों तथा प्रवृत्तियों व मूल संचय का साधन है।


हॉलक्वेस्ट के अनुसारः पाठ्य-पुस्तक शिक्षण क्रियाओं एवं अभिप्रायों के लिए सुव्यवस्थित चिन्तन एवं ज्ञान का लिखित रूप है।

हर्ल आर डगलस के अनुसार-अध्यापकों के अनुभवों एवं विश्लेषण के अनुसार पाठ्यपुस्तक पढने का महत्वपूर्ण आधार है।


पाठ्य पुस्तक की आवश्यकता एवं महत्वः


  • पाठ्यपुस्तके विद्यालय या कक्षा में छात्रों तथा शिक्षकों के लिए विशेष रूप से तैयार की जाती हैं जो विषय से संबंधित पाठ्यवस्तु का प्रस्तुतीकरण करती है। 
  • वास्तव में पाठ्य-पुस्तक की आवश्यकता मार्गदर्शन के लिए पडती है।
  • वर्तमान शिक्षा में बदलते शैक्षिक अंतदृष्टि, विचारों एवं शोध करने व उससे प्राप्त नतीजों के आधारों पर पाठ्‌यपुस्तकों को समय-समय पर बदलने की आवश्यकता है। 
  • पाठ्यपुस्तकें मात्र सूचना आधारित न होकर बच्चों को चिंतन व खुद से करके सीखने अर्थात् ज्ञान का सृजन करने के अवसर देने वाले दृष्टिकोण पर आधारित होनी चाहिए।
  • शासकीय शालाओं में बच्चों की पहुँच में पाठ्यपुस्तकें ही एकमात्र सीखने-सिखाने का प्रमुख संसाधन होती हैं इसलिए बच्चों के लिए गुणवत्ता पूर्ण पाठ्यपुस्तकों का होना आवश्यक है।

पाठ्य पुस्तक का महत्व:-

  • पुस्तकों की सहायता से शिक्षा की प्रक्रिया बहुत ही व्यवस्थित ढंग से चलती है और अध्यापक पूरे समय हेतु योजना बना सकते है।
  • पाठ्यपुस्तकें पाठ्यक्रम में निर्धारित उददेश्यों को पूर्ण करने में सहायक है
  • पाठ्यक्रम के अनुसार विषय का संगठित ज्ञान एक स्थात पर मिल जाता है।
  • जब कक्षा छात्र कक्षा ज्ञान में अधूरे रहते हैं। तब पुस्तकों का सहारा लेकर उस अधूरे ज्ञान को स्पष्ट एवं निश्चित करते हैं। 
  • शिक्षक केवल पथ प्रदर्षक के रूप में कार्य करता है।
  • छात्रों एवं शिक्षकों को यह जानकारी मिलती है कि किस कक्षा स्तर के लिये कितनी विषय-वस्तु का अध्ययन-अध्यापन करना है।
  • छात्रों का मानसिक स्तर इतना नहीं होता कि वे विद्यालय में पढ़ायी हुई विषय-वस्तु को एक ही बार में सीख सकें। उन्हें विषय-वस्तु को कई बार दोहराना भी पड़ता है। इस कार्य में पाठ्यपुस्तकें सहायक है।
  • पाठ्य-पुस्तकें अध्यापक की पूरक होती हैं। अध्यापक के उपस्थित न रहने पर यदि छात्र चाहे तो स्वअध्ययन से पाठ को आगे पढ़ा सकते हैं।
  • छात्रों एवं शिक्षकों के समय की बचत होती है।
  • स्वाध्याय द्वारा ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
  • पाठ को दोहराने अथवा गृहकार्य कराना बच्चों को अत्यन्त सहायक सिद्ध होता है।
  • बच्चों में स्वध्याय की आदत का विकास होता है।
  • कक्षा-कार्य तथा मूल्यांकन संभव होता है।
  • बच्चों की स्मरण शक्ति एवं तर्क शक्ति का विकास होता है। मंद बुद्धि तथा प्रतिभाशाली दोनों प्रकार के बच्चों के लिये उपयोगी होती हैं।
  • विषय-वस्तु को तार्किक ढंग से प्रस्तुत किया जाता है जिससे बच्चों के लिए विषय-वस्तु सरल एवं सुगम हो जाती है।
  • पाठ्य-पुस्तकें समस्याओं को हल करने में सहायता करती है तथा कुछ पहेली टाइप समस्याओं से छात्रों का मनोरंजन भी हो सकता है।
  • ज्ञान को व्यवस्थित करने में पाठ्यपुस्तकें सहायक होती हैं।
  • अध्ययन में एकरूपता आ जाती है।
  • शिक्षकों एवं छात्रों को विद्वानों के विचारों से परिचित कराती है।
  • कक्षा शिक्षण की कमियों को दूर करती हैं।
  • परीक्षा लेने में भी पाठ्य-पुस्तकें शिक्षकों की सहायता करती हैं क्योंकि प्रश्न पाठ्य पुस्तकों में से रखकर प्रश्न-पत्रों को पाठ्यक्रम के अनुसार सीमित तैयारी के साथ परीक्षा में अथवा मूल्यांकन में सफल हो जाते हैं।
  • कक्षा-शिक्षण के प्रकरणों को अध्ययन करने तथा अभ्यास के लिए अवसर मिलता है। पुस्तकें परिपाक का साधन है।
  • पाठ्य-पुस्तकें अध्यापक को कक्षा में जानें से पूर्व पाठ की तैयारी करने का अवसर प्रदान करती है।
  • पाठ्य-पुस्तके अध्यापक तथा छात्रों दोनों का समय बचाती है। मितव्ययी होती है। इनसे अध्ययन की आदतों का विकास होता है।
  • छात्रों को कम मूल्य पर समस्त आवश्यक तथा महत्वपूर्ण तथा तथ्य सूचनाएँ एक पुस्तक में ही एकत्रित मिल जाती हैं। जिससे उन्हें इधर-उधर भटकने की आवश्यकता नहीं होती। 
  • पाठ्य-पुस्तकों के माध्यम से छात्र भी अध्ययन कर सकते हैं. तथा गृहकार्य करने में भी वे सहायता प्राप्त कर सकते हैं। अध्यापक को गृहकार्य प्रदान करने में पुस्तकें पर्याप्त सहायक हो सकती है।
  • पाठ्य-पुस्तकों की सहायता से एक साथ सभी छात्रों को पढ़ाया जा सकता है।
  • छात्रों को निर्धारित पाठ्यक्रम का ज्ञान पाठ्य-पुस्तकों से ही होता है। वे ज्ञात कर सकते हैं कि वर्ष भर में उन्हें कितना पढ़ना है तथा कितना वे पढ़ चुके हैं।
  • मौन अध्ययन का अभ्यास पाठ्य-पुस्तकों के द्वारा ही कराया जा सकता है। मौन अध्ययन छात्रों को स्वाध्याय की प्रेरणा देता है। 
  • प्रत्येक अध्यापक मौखिक शिक्षण में निपुण नहीं हो सकता। सामान्य बुद्धि के अध्यापक के लिए पाठ्य-पुस्तकों का सहयोग आवश्यक हो जाता है।

शिक्षा की डाल्टन पद्धति एवं योजना प्रणाली में पाठ्य-पुस्तकों की परम आवश्यकता होती है। बालक अपनी रूचि के अनुसार करते हैं। पाठ को मानसिक विकार्य पाठ्य-पुस्तकों के बिना सम्भव नहीं है। अध्यापक द्वारा बताई गई अनेक बातें छात्र कक्षा में भूल बार बात सुनकर याद कर लें। अतः यह आवश्यक हो जाता है जाते हैं; उनकी स्मरण शक्ति इतनी तीव्र नहीं होती कि वे एक. पुनः दोराह लें।


Credits for image Peakpx 


पाठ्य पुस्तक के दो तत्व होते हैं। 
अ) आंतरिक तत्व          ब) बाह्य तत्व

आंतरिक तत्व :-

(ⅰ) पुस्तक की विषय सामग्री कक्षा स्तर के अनुकूल हो

(ⅱ) पाठ्यपुस्तक का निर्माण छात्रो की रुचि को केन्द्रित करके किया जाना चाहिए

(iii) पाठ्‌यपुस्तकें छात्रो की भावात्मक व मानसिक आवश्यकताओं को पूर्ण करने वाली होनी चाहिए जैसे - प्राथमिक स्तर पर दैनिक व्यवहार, घर, विद्यालय, माता-पिता, परिवार, जानवर इत्यादि विषयो का सचित्र वर्णन होना चाहिए।

(iv) उच्च प्राथमिक स्तर पर कहानी, एकांकी, कविताएँ इत्यादि का वर्णन होना चाहिए । 

(V) रोचकता, उद्देश्यता, व्यवहारिकता होनी चाहिए

(Vi) मौलिकता एवं नैतिकता से युक्त

(vii) शीर्षक का उचित समावेश शीर्षक के अनुसार पाठ का निरुपण

(viii) समाज व राष्ट्र की आवश्यकता के अनुकूल
(ix) मनोवैज्ञानिक आवश्यकता के अनुकूल

(x ) पाठ्‌य‌पुस्तक की सामग्री बच्चों के परिवेश से जुड़ी हो

(Xi) भाषा बच्चों के परिवेश से मिलती जुलती तथा प्रभाव पूर्ण होनी चाहिए

(Xii) व्याख्या, अभ्यास व गृहकार्य के प्रश्न दिए हो। 


बाह्य तत्व :-

(i) नामकरण अच्छा होना चाहिए

(ii) सजिल्द

(iii) कवर रंगीन एवं सचित्र

(iv) स्पष्ट मुद्रण

(V) आकार मध्यम

(vi) कागज - उचित स्तर ( जल्दी फटे नहीं, जल्दी गले नहीं)

(vii) अक्षरों का आकार मध्यम

(viii) अनुक्रमणिका एवं सम्पादक का पूर्ण विवरण

(ix) मूल्य अंकित होना चाहिए (कम लागत होनी चाहिए)


विशेषताएँ:- पाठ्‌यपुस्तक साधन व साध्य दोनों है।

पाठ्‌यपुस्तक की सर्वप्रथम रचना- कौमेनियस 1657

केन्द्रीय शिक्षा बोर्ड की पाठ्‌यपुस्तक सलाहकार समिति का मानना है कि -" बिना पाठ्‌यपुस्तक के शिक्षा की व्यवस्था ठीक वैसी ही होगी जैसे बिना डेनमार्क के राजकुमार के हेमलेट की कल्पना" । 

पाठ्यपुस्तकों का महत्व -

  1. *आत्मविश्वास में वृद्धि
  2. *अध्ययन - अध्यापन का सेतु उचित मार्गदर्शन
  3. *ज्ञान के स्थायीकरण का कार्य
  4. *स्वाध्याय के विकास में सहायक
  5. *ज्ञान के साथ मनोरंजन का कार्य
  6. *भाषा तत्वों का ज्ञान
  7. *भाषायी कौशलों के विकास में सहायक
  8. *शब्द भण्डार में वृद्धि।


हिन्दी शिक्षण विधि अभ्यास प्रश्न


अभ्यास प्रश्न


1 अनुकरण विधि में 'भाषा' और 'शैली' से संबंधित सही उत्तर है-

(अ) दोनों  छात्र की  (स) शिक्षक, छात्र की

(बु) छात्र, शिक्षक की (द) दोनों शिक्षक की

Ans ब) 

 2. अनुकरण विधि किस कक्षा स्तर के लिए उपयुक्त है? 

(अ) उच्च स्तर

(ब) प्राथमिक स्तर

(स) सभी स्तर

(द) माध्यमिक स्तर

Ans द) 

3 . अनुकरण विधि का प्रयोग किया जाता है-

(अ) रचना शिक्षण में

(ब) द्वितीय भाषा शिक्षण में

(स) अभिव्यक्ति की शिक्षा में

(द) उपर्युक्त सभी में

Ans द) 

4. अनुकरण विधि का उच्च स्तर पर परिष्कृत रूप है-

(अ) आगमन विधि

(ब) उ‌द्बोधन विधि

(स) आदर्श विधि

(द) रूपरेखा विधि

Ans स) 

5. बच्चों को लेखन (अक्षर) का अभ्यास कराने में उपयुक्त विधि है-

अ) अनुकरण विधि

ब) आगमन विधि

स) अर्थबोध विधि

द) रूपरेखा विधि

Ans अ) 

6. छात्रों को नवीन परिस्थितियों से उचित सामना करने में समर्थ बनाने वाली विधि है-

(अ) निरीक्षण विधि (स) निगमन विधि

(ब) इकाई विधि (द) सूत्र विधि

Ans ब) 

7. इकाई विधि का दोष है-

(अ) कौशल अविकसित करना

(ब) क्रमिकता का अभाव 

(स) प्रशिक्षण की विधि होना

(द) शिक्षण सामग्री का बंटवारा

Ans ब) 

8. इकाई विधि का सबसे बड़ा गुण है-

अ) प्राकृतिक परिस्थितियों द्वारा कौशल विकास

ब) एक इकाई को समग्र शिक्षण करना

स) शिक्षण सामग्री को क्रमिकता से प्रस्तुत करना

द) इनमें से कोई नहीं

Ans अ) 

9. प्रत्यक्ष विधि का द्वितीय भाषा सिखाने का मुख्य सिद्धांत नहीं है

अ) बातचीत द्वारा

ब) व्याकरण द्वारा

स) मौखिक अभ्यास द्वारा

द) व्यावहारिक रूप में

Ans ब) 

10. प्रत्यक्ष विधि से किस प्रणाली विधि के दोष स्वयं दूर हो जाते है

(अ) व्याकरण-अनुवाद (ब) भाषा-वैज्ञानिक

(स) सैनिक-विधि       द) गठन-पद्धति

Ans अ) 

11. निम्न में से प्रत्यक्ष विधि के संबंध में सत्य है- 

(अ) सभी संज्ञा शब्दों का ज्ञान कराती है।

(ब) सभी वाक्यों रचनाओं का ज्ञान कराती है। 

(स) उपर्युक्त दोनो

(द) इनमें से कोई नहीँ। 

Ans द)

12. प्रत्यक्ष विधि से संबंधित असत्य कथन है-

अ) व्याकरण सहायता का अभाव

ब) व्यावहारिकता पर बल

स) अनुवाद का अभाव

द) सैद्धान्तिकता पर भी बल

Ans  द) 

13. द्वितीय भाषा शिक्षण की सर्वाधिक प्रचलित एवं प्राचीनतम पद्धति है

अ) प्रत्यक्ष विधि

ब) व्याकरण-अनुवाद

स) भाषा वैज्ञानिक विधि

द) आगमन विधि

Ans  ब) 

14. किस विधि पर द्वितीय भाषाओं की 'स्वयं शिक्षण मालाएँ' आधारित है-

(अ) व्याख्यान

(ब) प्रत्यक्ष विधि

(स) व्याकरण-अनुवाद

(द) आगमन विधि

Ans स) 

15. कौनसा अनुवाद व्याकरण विधि का दोष है?

(क) अवैज्ञानिक पद्धति

(ख) भाषा गठन की समस्या

(ग) अनुवाद पर अधिक बल

(घ) समानार्थी शब्दों की समस्या

(अ) क, ग, घ

(ब) ख, ग, घ

(स) क, ख

(द) क, ख, ग, घ

Ans द) 

16. बोलने की अपेक्षा लिखने-पढ़ने पर तथा भाषा की अपेक्षा भाषा तत्वों पर अधिक बल देती है-

(अ) व्याकरण-अनुवाद विधि

(ब) भाषा-वैज्ञानिक विधि

(स) श्रव्य-भाष्य विधि

(द) आगमन-निगमन विधि

Ans अ) 

17.द्विभाषी विधि का प्रयोग उपयोगी है-

(अ) नर्सरी कक्षा

(ब) प्राथमिक कक्षा

(स) माध्यमिक कक्षा

(द) उच्च कक्षा

Ans द) 

18.द्विभाषी पद्धति है

(अ) मातृभाषा की

(ब) अन्यभाषा की

(स) दोनों की

(द) इनमें से कोई नहीं

Ans ब) 

19. निम्न में से द्विभाषी पद्धति से संबंधित सही कथन नहीं है-

(अ) अनुवाद शिक्षण द्वारा

(ब) सम्मेलनों व गोष्ठियों में प्रयोग

(स) छोटी कक्षाओं में असंभव

(द) मातृभाषा शिक्षण में उपयोगी '

Ans  द

20 किस विधि में भाषा संघटना पर बल दिया जाता है?

(अ) सैनिक विधि

(ब) प्रत्यक्ष विधि

(स) अनुवाद विधि

(द) सूत्र विधि

Ans अ) 

21. सेना विधि किस विधि के दोषों को दूर करती है?

(अ) सूत्र विधि

(ब) दूरस्थ शिक्षण 

(स) वाचन विधि 

(द) प्रत्यक्ष विधि

Ans द) 

22. कौनसी विधि 'आर्मी मैथड़' से संबंधित नहीं है?

(अ) श्रव्य-भाष्य

(ब) भाषा वैज्ञानिक

(स) अनुकरण-परिष्करण

(द) अन्तर्बोध

Ans द) 

23.निम्न में से कौनसा कथन सैनिक विधि के संबंध में गलत है

(अ) यह द्वितीय भाषा शिक्षण विधि है।

(ब) इसमें सिद्धान्तों की जगह कौशलों का अभ्यास कराया जाता है।

(स) यह मौखिक कथनों पर बल देती है।

(द) यह संवाद का अर्थ बताना, उसे याद कराती है।

Ans द) 

24. माइकिल सेमर (1535) द्वारा प्रतिपादित विधि है-

(अ) प्रत्यक्ष विधि

(ब) सैनिक विधि

(स) अभिक्रमित अधिगम

(द) ध्वन्यात्मक विधि

Ans द) 

25. ध्वन्यात्मक विधि में सर्वप्रथम सिखाएँ जाते है?

(अ) व्यंजन

(ब) वाक्य

(स) स्वर

(द) शब्द

Ans  स) 

26. ध्वन्यात्म विधि किस के आधार पर विकसित की गई है?

(अ) प्रत्यक्ष विधि

(ब) रोमन विधि

(स) सूत्र विधि

(द) व्याख्यान विधि

Ans  ब) 

27. कौनसा ध्वन्यात्मक विधि का दोष है?

(अ) वाचन शिक्षण में उपयोगी होना 

(ब) वर्ण-ध्वनि को अलग-अलग मानना

(स) केवल हिंदी शिक्षण में उपयोगी होना

(द) वर्ण पर अधिक बल देना

Ans  ब) 

28. दूरस्थ शिक्षण विधि किस शिक्षा से अधिक निकट है?

(अ) अनौपचारिक

(ब) निरोपचारिक

(स) औपचारिक

(द) पारम्परिक

Ans ब) 

29. किस शिक्षण बिधि में तकनीकी साधनों का प्रयोग किया जाता है

(अ) सूत्र विधि

(ब) व्याख्यान विधि

(स) दूरस्थ विधि

(द) श्रुत लेखन विधि

Ans  स) 

30. दूरस्थ विधि से संबंधित नहीं है-

(अ) स्वाध्ययन

(ब) तकनीकी सहायता

(स) व्यवस्थित सामग्री 

(द) नियन्त्रण

Ans द) 

31. दूरस्थ विधि से संबंधित कथन है-

(अ) प्रत्यक्ष शिक्षण कार्य

(ब) शिक्षण का भार बढ़ना

(स) व्यक्तिगत रूचि

(द) अनियमित योजना

Ans स) 

(37) निम्न में से मौन वाचन का प्रकार नहीं है-

(अ) अनुकरण वाचन 

(ब) वैयक्तिक वाचन

(स) द्रुतवाचन

(द) समवेत वाचन

Ans स) 

33. प्राथमिक कक्षाओं में 'उच्चारण शुद्धि' में उपयोगी शिक्षण विधि है। 

(अ) श्रुत लेखन विधि (ब) प्रत्यक्ष विधि

(स) वैयक्तिक मौन वाचन (द) वाचन विधि

Ans द) 

34.वाचन की कौनसी विधि संकोची छात्रों के लिए उपयोगी है?

(अ) वैयक्तिक वाचन

(ब) मौन वाचन

(स) समवेत वाचन

(द) आदर्श वाचन

Ans स

35. वाचन विधि से संबंधित लाभ नहीं है-

(अ) लिखित अभिव्यक्ति

(ब) स्वाध्याय में रूचि

(स) अर्थबोध में प्रभावी

(द) प्रवाहशीलता व स्पष्टता

Ans अ

36 . पर्यवेक्षित अध्ययन विधि में शिक्षक का कार्य नहीं है-

(अ) निरीक्षण

(ब) निर्देशन

(स) समस्या समाधान

(द) स्वाध्याय अध्ययन

Ans द 

37. पर्यवेक्षित अध्ययन विधि का अन्य या दूसरा नाम है-

(अ) निर्देशित स्वाध्याय प्रणाली

(ब) विश्लेषणात्मक प्रणाली

(स) अभिक्रमित अध्ययन प्रणाली

(द) साहचर्य प्रणाली

Ans अ

38. कौनसा सोपान पर्यवेक्षित अध्ययन विधि का नहीं है?

(अ) मूल्यांकन

(ब) क्रियान्वयन

(स) सामान्यीकरण

(द) नियोजन

Ans स

39. निम्न में से पर्यवेक्षित अध्ययन विधि का लाभ नहीं है-

(अ) स्वाध्याय की प्रेरणा

(ब) अर्थग्रहण में सहायक

(स) गद्य के विकास में अनुपयोगी

(द) अन्तःक्रिया में वृद्धि

Ans स

40. कहानी शिक्षण के कौशलात्मक उ‌द्देश्य हैं

(अ) घ्यानपूर्वक सुनने की दक्षता का विकास

(ब) मौखिक व लिखित आदि कौशलों को विकसित करना

(स) कहानी लेखन में निपुणता विकसित करना

(द) उक्त सभी

Ans द

41. आगमन व निगमन विधियों का मिश्रित रूप कहलाता है-

(अ) भाषा संसर्ग

(ब) विश्लेषणात्मक

(स) अभिक्रमित अनुकरण

(द) पर्यवेक्षितः अध्ययन

Ans ब

42 . आगमन-निगमन (विश्लेषणात्मक) विधि में प्रथम कार्य किया जाता है। 

(अ) विश्लेषण

(ब) सामान्यीकरण

(स) नियम बताना

( द) उदाहरण देना

Ans द

43.


विश्लेषणात्मक विधि सर्वाधिक उपयोगी है-

अ) रचना शिक्षण,

ब) व्याकरण शिक्षण

स) गद्य शिक्षण

द) पद्य शिक्षण

Ans ब

44. विश्लेषणात्मक विधि में कार्य करने व अनुसरण का सही क्रम है-

(अ) उदाहरण-विश्लेषण-सामान्यीकरण परीक्षण

(ब) उदाहरण-परीक्षण सामान्यीकरण-विश्लेषण

(स) उदाहरण-सामान्यीकरेण-परीक्षण-विश्लेषण

(द) उदाहरण-विश्लेषण-परीक्षण-सामान्यीकरण..

Ans अ

45. 'सक्रिय अनुबंध अनुक्रिया' सिद्धांत पर आधारित शिक्षण विधि है

(अ) अभिक्रमित अनुदेशन

(ब) भाषा प्रयोगशाला

(स) यन्त्र विधि

(द) दूरस्थ विधि

Ans अ

46. 'अभिक्रमित अनुदेशन' विधि से संबंधित नहीं है-

(अ) स्वगति

(ब) पुनर्बलन

(स) स्वयं परीक्षण

द) वृहद पद 

Ans द

47. 'अभिक्रमित अनुदेशन विधि' का लाभ नहीं है-

(अ) रूचिनुसार विषयवस्तु चयन

(ब) रचना शिक्षण में

(स) विदेशी भाषा में सुगम

(द) तर्कक्षमता में अनुपयोगी

Ans द

48. निम्न में से अभिक्रमित अनुदेशन का आधार नहीं है-

(अ) छोटे-छोटे पदों का

(ब) सक्रिय अनुबंध अनुक्रिया का पुनर्वलन

(स) व्यक्तिगत विभिन्नता पर

(द) एक विकल्प परीक्षण का

Ans द

49. किस विधि द्वारा कवि के हृदयस्थ भावों को समग्र रूप में प्रस्तुत किया जाता है?

(अ) अभिनय विधि

(ब) कविता पाठ

(स) रसास्वादन

(द) सूत्र विधि

Ans स

50. रसास्वादन विधि का प्रयोग सर्वाधिक उपयोगी है-

(अ) प्राथमिक स्तर

(ब) माध्यमिक स्तर

(स) उच्च स्तर

(द) सभी स्तरों पर

Ans अ

51. रसास्वादन विधि आधारित है-

(अ) भाव

(ब) रस

(स) अर्थ

(द) कला

Ans ब

52. रसास्वादन विधि में निम्न में से किस पर बल नहीं दिया जाता-

(अ) भाव सौंदर्य

(ब) अर्थ बोध

(स) कला सौंदर्य

(द) भावानुभाव

Ans ब

53 प्राचीन व अमनोवैज्ञानिक विधि का उदाहरण है- 

(अ) चित्र रचना विधि

(ब) आदर्श विधि

(स) सूत्र विधि

(द) आगमन विधिना

Ans स

54 . व्याकरण की सूत्र विधि हिंदी में किस भाषा से आई है-

(अ) अंग्रेजी

(ब) अरबी

(स) संस्कृत

(द) बंगला

Ans स

55. पाणिनी के 'अष्टाध्यायी' पढ़ाने हेतु किस विधि का प्रयोग उत्तम है?

(अ) सूत्र विधि

(ब) आगमन विधि

(स) व्याख्या विधि

(द) इनमें से कोई नहीं

Ans अ

56. सूत्र प्रणाली किस सिद्धान्त पर आधारित नहीं है

(अ) सामान्य से विशिष्ट की ओर

(ब) सूक्ष्म से स्थूल की ओर

(स) सिद्धान्त से उदाहरण की ओर

(द) पूर्ण से अंश की ओर 

Ans द

शिक्षण अधिगम सामग्री

शिक्षण अधिगम सामग्री :- शिक्षण सामग्री वे साधन है जिन्हें हम आंखों से देख सकते हैं कानों से उनसे संबंधित ध्वनि सुन सकते हैं वे प्रक्रियाएं ज...