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Saturday, August 5, 2023

गणित आगमन निगमन विधि

 आगमन विधि


आगमन विधि में अनुभवों, प्रयोगों तथा उदाहरणों का विस्तृत अध्ययन करके नियम बनाए जाते हैं इस विधि द्वारा शिक्षण करते समय शिक्षक बालकों के समक्ष कुछ विशेष परिस्थितियाँ एवं उदाहरण प्रस्तुत करता है। 

इन उदाहरणों के आधार पर बालक तार्किक ढंग से विचार-विमर्श करते हुए किसी विशेष सिद्धांत, नियम अथवा सूत्र पर पहुँचते हैं। 

नियमों, सूत्रों आदि का प्रतिपादन करते समय इस विधि में बालक अपने अनुभवों, मानसिक शक्तियों तथा पूर्व ज्ञान का प्रयोग करता है। यह एक सामान्य अनुमान है कि कोई बालक कुछ विशेष परिस्थितियों या उदाहरणों को देखकर या अनुभव करके उनमें पाई जाने वाली एकरूपता को निष्कर्ष के रूप में अपना लेता है। 

उदाहरण के लिए जलने वाली विभिन्न वस्तुओं के पास गर्मी का अनुभव करके बालक यह धारणा बना लेता है कि जलने वाली वस्तुएँ गर्मी उत्पन्न करती है। 

आगमन विधि इसी प्रकार की अवधारणाओं पर आधारित है। इसलिए इस विधि को आगमन या सामान्यानुमान विधि कहते हैं।

परिभाषा


यंग के अनुसार इस विधि में बालक विभिन्न स्थूल तथ्यों के आधार पर अपनी मानसिक शक्ति का प्रयोग करते हुए स्वयं किसी विशेष सिद्धांत, नियम अथवा सूत्र पर पहुँचता है।


लैण्डल के अनुसार जब बालकों के समक्ष अनेक तथ्यों, उदाहरणों एवं वस्तुओं को प्रस्तुत किया जाता है, तत्पश्चात् बालक स्वयं ही निष्कर्ष पर पहुँचने का प्रयास करते हैं, तब वह विधि आगमन विधि कहलाती है। 

कार्य विधि

आगमन विधि द्वारा शिक्षण करते समय उदाहरणों से नियमों की ओर, विशेष से सामान्य की ओर तथा स्थूल से सूक्ष्म की ओर अग्रसर रहते हैं। अत: छात्र स्वयं भिन्न-भिन्न स्थूल तथ्यों के आधार पर अपनी मानसिक शक्ति का प्रयोग करते हुए उदाहरणों के आधार पर किसी निष्कर्ष अथवा सामान्यीकरण पर पहुँचता है। इस प्रक्रिया को ही आगमन की प्रक्रिया कहते हैं।


आगमन विधि के पद / सोपान (Steps in Inductive Method) - इस विधि द्वारा शिक्षण करते समय मुख्यरूप से निम्नलिखित पदों सोपानों का प्रयोग किया जाता है

 i) विशिष्ट उदाहरणों का प्रस्तुतीकरण


ii) निरीक्षण करना


iii) नियमीकरण या सामान्यीकरण करना


iv) परीक्षण एवं सत्यापन करना

ट्रिक - उ नि नि परी 

i) विशिष्ट उदाहरणों का प्रस्तुतीकरण (Presentation of Specific Examples)- इस सोपान में अध्यापक द्वारा बालकों के समक्ष एक ही प्रकार के कई उदाहरण प्रस्तुत किए जाते हैं तथा बालकों की सहायता से उन उदाहरणों का हल (Solution) प्राप्त कर लिया जाता है।


ii) निरीक्षण करना (Observation)- प्रस्तुत किए गए उदाहरणों का हल ज्ञात करने के बाद बालक उनका निरीक्षण करते हैं तथा अध्यापक के सहयोग से किसी परिणाम या निष्कर्ष पर पहुँचने की चेष्टा करते हैं।


iii)नियमीकरण या सामान्यीकरण करना(Generalization) - प्रस्तुत किए गए उदाहरणों का निरीक्षण - करने के बाद अध्यापक तथा बालक तर्कपूर्ण ढंग से विचार-विमर्श करके किसी सामान्य सूत्रों, सिद्धान्त या नियम को निर्धारित करते हैं।

iv) परीक्षण एवं सत्यापन (Testing and Verification) - किसी सामान्य सूत्रों, सिद्धान्त या नियम का निर्धारण करने के पश्चात् बालक अन्य उदाहरणों अथवा समस्यात्मक प्रश्नों की सहायता से निर्धारित नियमों का परीक्षण एवं सत्यापन करते हैं। 

इस प्रकार उपर्युक्त सोपानों का अनुसरण करते हुए बालक आगमन विधि द्वारा ज्ञान अर्जित करते हैं तथा उनकी विभिन्न मानसिक शक्तियों का भी विकास होता है।

आगमन विधि के गुण एवं विशेषताएँ [Merits of Inductive Method ] 

1. यह एक वैज्ञानिक विधि है क्योंकि इस विधि द्वारा अर्जित ज्ञान प्रत्यक्षतथ्यों पर आधारित होता है। 

2. इस विधि के द्वारा बालक को नियम, सूत्रों का निर्धारण एवं सामान्यीकरण की प्रक्रिया का ज्ञान हो जाता है।

3. इस विधि में बालक स्वयं उदाहरण, निरीक्षण और परीक्षण के द्वारा ज्ञान अर्जित करते हैं, इसलिए इस विधि द्वारा प्राप्त ज्ञान अधिक स्थायी होता है।

4.आगमन विधि द्वारा बालकों की आलोचनात्मक, निरीक्षण एवं तर्कशक्ति का विकास होता है।

 5. यह विधि मनोवैज्ञानिक है क्योंकि इसमें मनोविज्ञान के विभिन्न महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों का अनुकरण किया जाता है।

6. इस विधि द्वारा बालकों को स्वयं कार्य करने की प्रेरणा मिलती है जिससे उनमें आत्म-निरीक्षण तथा आत्म-विश्वास की वृद्धि होती है। 

7. इस विधि की सहायता से गणित के विभिन्न नियमों, सम्बन्धों तथा नवीन सिद्धान्तों आदि का प्रतिपादन करने में सहायता मिलती है 

8. यह छोटी कक्षाओं के लिए अति उपयोगी एवं उपयुक्त विधि है ।

9.इसके द्वारा बालकों में गणित के प्रति उत्सुकता एवं रुचि बनी रहती है 

10. इस विधि में बालक उदाहरणों की सहायता से स्वयं ज्ञान प्राप्त करते है जिसके कारण वे थकान का अनुभव नहीं करते तथा नवीन ज्ञान की प्राप्ति में सक्रिय बने रहते हैं।

11. सभी प्रकार के बालकों के लिए उपयुक्त विधि है 

12. इसके द्वारा प्राप्त ज्ञान स्थाई होता है।

13. यह बाल केंद्रित विधि है।

आगमन विधि की सीमाएँ या दोष (Limitations or Demerits of Inductive Method)

यह बात बिल्कुल सच है कि आगमन विधि गणित शिक्षण की एक महत्त्वपूर्ण विधि है। बहुत सी विशेषताएँ लाभ होते हुए भी इस विधि की अपनी कुछ सीमाएँ (दोष) भी हैं जो निम्नलिखित हैं-


1. इस विधि की गति अत्यन्त धीमी है जिससे इसके द्वारा ज्ञान प्राप्ति में समय और परिश्रम अधिक लगता है। 

2. इस विधि का प्रयोग करने के लिए पर्याप्त बुद्धि, सूझ-बूझ एवं परिश्रम की आवश्यकता होती है। अतः सभी स्तरों के बालकों के लिए इसके द्वारा ज्ञान प्राप्त करना आसान नहीं है।

3.यह विधि निम्न कक्षाओं के लिए ही उपयोगी है क्योंकि उच्च कक्षाओं में पाठ्यक्रम इतना विस्तृत होता है कि इस विधि द्वारा सम्पूर्ण ज्ञान सीमित समय में प्राप्त करना संभव नहीं है।

4.अनुभवी एवं योग्य अध्यापक ही इस विधि का सफलतापूर्वक प्रयोग कर सकते हैं। 

5. इस विधि द्वारा बालकों में समस्या समाधान की योग्यता एवं क्षमता में विकास सम्भव नहीं है।

6. नियमीकरण अथवा सामान्यीकरण के लिए प्रत्यक्ष उदाहरणों का चयन एवं प्रस्तुतीकरण शिक्षक एवं शिक्षार्थी के लिए आसान काम नहीं है।

7. इस विधि द्वारा प्राप्त परिणाम पूर्णतया सत्य नहीं होते, उनकी सत्यता इस बात पर निर्भर करती है कि वह परिणाम कितने उदाहरणों पर आधारित है, क्योंकि कोई भी परिणाम नियम आदि) जितने अधिक विशिष्ट उदाहरणों पर आधारित होता है, उसकी विश्वसनीयता एवं सत्यता उतनी ही अधिक होती है।


आगमन विधि के सूत्र :- ट्रिक ( आ वि स् ज्ञात) = आगमन विधि, विशिष्ट ,स्थूल ,ज्ञात 

  • ज्ञात से अज्ञात की ओर 
  • प्रत्यक्ष से प्रमाण की ओर 
  • स्थूल से सूक्ष्म की ओर 
  • विशिष्ट से सामान्य की ओर 
  • उदाहरण से नियम की ओर 




प्राथमिक स्तर पर रेखागणित पढ़ाने के लिए सबसे उपयुक्त विधि है 

( रेखागणित पढ़ाने के लिए सबसे उपयुक्त विधि विश्लेषण विधि है ) सभी स्तरों पर 


अगर प्राथमिक स्तर पूछा जाए तो आगमन विधि ।



निगमन विधि (Deductive Method):-  

निगमन विधि आगमन विधि के बिल्कुल विपरीत है। इस विधि में निगमन तर्क (Deductive Logic) का प्रयोग किया जाता है। निगमन विधि का प्रयोग मुख्यतः बीजगणित, रेखागणित तथा त्रिकोणमिति में किया जाता है क्योंकि गणित के इन उपविषयों में विभिन्न सम्बन्धों, नियमों और सूत्रों का प्रयोग होता है। व्यावहारिक रूप में प्रत्येक नियम अथवा सूत्रों को सत्यापित करना असम्भव ही होता है। निगमन विधि में अभिधारणाओं (Assumptions ), आधारभूत तत्त्वों (Postulates ) तथा स्वयंसिद्धियों (axioms) की सहायता ली जाती है। इस विधि का प्रयोग उच्च कक्षाओं के शिक्षण में अधिक किया जाता है।

कार्य विधि (Procedure):- 

  •  निगमन विधि में सूक्ष्म से स्थूल की ओर (Proceed from abstract to concrete ), 
  • सामान्य से विशिष्ठ की ओर (Proceed from general to particular) 
  •  प्रमाण से प्रत्यक्ष की ओर  
  • नियम से उदाहरण की ओर (Proceed from general rule to example) अग्रसर होते हैं।

इस विधि में बालकों के सम्मुख सूत्रों, नियमों, निष्कर्षो तथा सम्बन्धों आदि को प्रत्यक्ष रूप में प्रस्तुत किया जाता है। बताए गए नियमों, सिद्धान्तों एवं सूत्रों को बालक याद करके कण्ठस्थ कर लेते है। सामान्यतः अध्यापक बालकों को निम्न प्रकार की बातें बताते हैं-

(i) (a + b)(c+d)= ac+ad+ bc+nd आदि सूत्रों का ज्ञान

(ii) किसी त्रिभुज के तीनों कोणों का योग दो समकोण या 180° होता है।

(iii)किसी वृत्त की परिधि  = 2πr आदि ज्यामितीय सूत्रों का ज्ञान।

(iv) साधारण ब्याज ज्ञात करने का सूत्र = मूलधन x दर x समय /100 

(v) इसी प्रकार त्रिकोणमिति में भी sinπ/2 = 1 

निगमन विधि में छात्र सीधे सूत्र का प्रयोग करके प्रश्नों को हल कर लेते हैं तथा भविष्य में प्रयोग करने के लिए उन सूत्रों एवं नियमों को याद कर लेते हैं।


निगमन विधि के पद / सोपान (Steps in Deductive Method) 

Trick : नि सा सू नि 

1. नियम / सूत्र / सिद्धांतों का ज्ञान ( नियम का ज्ञान ) 

2. आँकड़ों के आधार पर परीक्षण ( सामान्यीकरण)

3. सिद्धांतों / सूत्रों का प्रयोग( सूत्रीकरण)

4. उदाहरणों के आधार पर सिद्धांतों का पूर्ण सत्यापन करना( निरीक्षण ) 


निगमन विधि के गुण एवं विशेषताएँ




1. इस विधि के प्रयोग से गणित का कार्य अत्यन्त सरल एवं सुविधाजनक हो जाता है।

2. निगमन विधि द्वारा बालकों की स्मरण शक्ति विकसित होती है, क्योंकि इस विधि का प्रयोग करते समय बालकों को अनेक सूत्र याद करने पड़ते हैं।

3. इस विधि द्वारा ज्ञानार्जन की गति तीव्र होती है, क्योंकि बालक समस्या हल करते समय सीधे सूत्रों का प्रयोग करते हैं। 

4. जब समयाभाव हो तो उन परिस्थितियों में इस विधि का उपयोग करना चाहिए। 

5. रेखागणित में स्वयंसिद्धियों, अंकगणित में पहाड़े आदि को पढ़ाने के लिए इसी विधि का प्रयोग किया जाता है। 

6. इस विधि का प्रयोग करने पर शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों को कम परिश्रम करना पड़ता है।

7. इस विधि द्वारा कम समय में अधिक ज्ञान प्रदान किया जा सकता है।

8. इस विधि द्वारा नियमों, सिद्धान्तों एवं सूत्रों की सत्यता की जाँच आसानी से की जा सकती है।

9. इस विधि के प्रयोग से बालक अभ्यास कार्य शीघ्रता तथा आसानी से कर सकते हैं।

10. यह विधि संक्षिप्त होने के साथ-साथ व्यावहारिक भी है।




निगमन विधि की सीमाएँ या दोष

(Limitations or Demerits of Deductive Method)

आगमन विधि की भाँति निगमन विधि भी गणित शिक्षा की एक महत्त्वपूर्ण विधि है, जिसकी अपनी विशेषताएँ हैं, परन्तु फिर भी इस विधि में कुछ कमियों अथवा सीमाएँ हैं। इस विधि के प्रमुख दोष निम्नलिखित है-


1.यह विधि मनोविज्ञान के सिद्धान्तों के विपरीत है क्योंकि यह स्मृति-केन्द्रित विधि है। 

2.यह विधि खोज करने की अपेक्षा रटने की प्रवृत्ति पर अधिक बल देती है 

3. इस विधि में बालक यंत्रवत् कार्य करते हैं क्योंकि उन्हें यह पता नही रहता कि वे अमुक कार्य इस प्रकार ही क्यों कर रहे हैं? 

4.इस विधि द्वारा अर्जित किया गया ज्ञान अस्पष्ट एवं अस्थायी होता है, क्योंकि उसे वह अपने स्वयं के प्रयासों से नहीं प्राप्त करते हैं।

5. इस विधि में तर्क, चिन्तन एवं अन्वेषण जैसी शक्तियों को विकसित करने का अवसर नहीं मिलता है।

6. यह विधि छोटी कक्षाओं के लिए उपयोगी नहीं है, क्योंकि छोटी कक्षाओं के बालकों के लिए विभिन्न सूत्रों, नियमों आदि को समझना बहुत कठिन होता है।

7. इस विधि के प्रयोग से अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया अरुचिकर तथा नीरस बनी रहती है। 

8. इस विधि द्वारा बालकों को नवीन ज्ञान अर्जित करने के अवसर नहीं मिलते हैं।


आगमन एवं निगमन विधि में अन्तर


यह हम जानते हैं कि आगमन एवं निगमन विधि एक दूसरे की पूरक हैं, फिर भी दोनों की कार्यविधि, क्रियान्वयन तथा प्रकृति में अन्तर है। इन दोनों विधियों के अन्तर को निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

1.आगमन विधि में ' विशिष्ट से सामान्य', 'उदाहरण से नियम' तथा 'स्थूल से सूक्ष्म' की ओर शिक्षण सूत्रों का प्रयोग किया जाता है।

* निगमन विधि में 'सामान्य से विशिष्ट', 'नियम से उदाहरण तथा 'सूक्ष्म से स्थूल' की ओर शिक्षण सूत्रों का प्रयोग किया जाता है।



2.आगमन विधि में बालक एक अनुसंधानकर्ता के रूप में कार्य करता है तथा स्वयं सक्रिय रहकर नियम या सूत्र ज्ञात करता है।

* निगमन विधि में बालक को नियम अथवा सूत्र पहले से बता दिए जाते हैं। बालक खोजे गए नियम अथवा सूत्रों की पुष्टि मात्र ही कर पाता है।


3. आगमन विधि द्वारा छात्रों में खोज इसमें छात्रों को खोज प्रवृत्ति प्रवृत्ति का विकास होता है।

* निगमन विधि में खोज प्रवृति विकसित करने का अवसर नहीं मिलता है।


4. आगमन विधि अध्यापन (Teaching) की श्रेष्ठ विधि है 

* निगमन विधि अध्ययन या अधिगम(Learning )की श्रेष्ठ विधि है।




5. आगमन विधि छोटी कक्षाओं के शिक्षण में अधिक उपयोगी है। इस विधि में बालक स्वयं नियम एवं सूत्रों का निर्धारण करते हैं. जिससे उनमें आत्मविश्वास एवं आत्म-निर्भरता जैसे गुणों का विकास होता है।

* निगमन विधि उच्च कक्षाओं के लिए अधिक उपयोगी है। इसमें नियम या सूत्रों को पहले बता दिया जाता है जिससे उनमें आत्मविश्वास की कमी रहती है।



6. "आगमन विधि नवीन ज्ञान की खोज करने में सहायक है यह एक वैज्ञानिक विधि है जिससे छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है। यह विधि खोज या अनुसंधान का मार्ग है। 

* निगमन विधि में बालकों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित होने के अवसर नहीं मिलते हैं। यह अनुकरण का मार्ग है क्योंकि बालक बताए गए नियमों या सूत्रों का अनुकरण करता है। 

7. आगमन विधि में शिक्षक व शिक्षार्थी दोनों ही सक्रिय रहते हैं अतः यह छात्र केंद्रित विधि है। यह विधि मौलिक एवं रचनात्मक कार्यों पर बल देती है।

* निगमन विधि में शिक्षक ही अधिक सक्रिय रहता है शिक्षार्थी एक मूक श्रोता होता है। यह अध्यापक केंद्रित है। यह विधि समस्या समाधान पर अधिक बल देती है।




8.आगमन विधि द्वारा अध्ययन की प्रक्रिया रुचिकर हो जाती है। इस विधि में प्रत्येक पद या सोपान का महत्त्व होता है तथा बालक उनको लिखना सीख जाते हैं।

* निगमन विधि में  अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया नीरस हो जाती है। इस विधि में बालक बहुत से पदों को लिखना नहीं सीख पाते हैं।

9. अधिगम विधि की  गति धीमी होती है जिससे परिश्रम व समय अधिक लगता है। यह एक मनोवैज्ञानिक विधि है जो कि अवबोध-केंद्रित है।

* निगमन विधि की गति तीव्र होती है इसमें छात्र शिक्षक द्वारा दिए गए ज्ञान का प्रयोग करते हैं। जिससे परिश्रम व समय कम लगता है।यह अपेक्षाकृत अमनोवैज्ञानिक | है तथा स्मृति-केंद्रित है

आगमन एवं निगमन विधि में सम्बन्ध

 यर्थाथ रूप में आगमन एवं निगमन विधि एक दूसरे की पूरक हैं, इसलिए प्रारम्भ में आगमन विधि द्वारा उदाहरणों की सहायता से नियमों तथा सूत्रों का प्रतिपादन करना चाहिए। उसके बाद निगमन विधि द्वारा उनका उपयोग तथा अभ्यास करना चाहिए, क्योंकि गणितीय नियमों एवं सूत्रों को याद करने तथा उनका उचित उपयोग करके समस्याओं को शीघ्रता से हल करने के लिए निगमन विधि ही काम आती है।


गणित शिक्षण में आगमन एवं निगमन दोनों विधियाँ उसी प्रकार आवश्यक हैं जिस प्रकार चलने के लिए हमें दोनों पैरों की आवश्यकता होती है। आगमन विधि का प्रमुख आधार ज्ञान की उत्पत्ति एवं विकास है जबकि निगमन विधि में ज्ञान की शाश्वत प्रस्तुति ही मुख्य आधार होती है। अतः आगमन विधि अग्रगामी है तथा निगमन विधि उसकी सहगामी दोनों ही विधियों एक-दूसरे की कमियों को दूर करती हैं। इस प्रकार आगमन विधि से सूत्रों तथा नियमों को प्रतिपादित करने के पश्चात् निगमन विधि से आगे बढ़ने तथा अभ्यास करवाने की प्रक्रिया को ही आगमन निगमन विधि Inductive Deductive Method) कहते हैं। अतः गणित विषय सम्बन्धी नवीन तथ्यों, नियमों, सिद्धान्तों और सूत्रों का ज्ञान आगमन विधि द्वारा दिया जाना चाहिए तथा उसका उपयोग व अभ्यास निगमन विधि द्वारा करना चाहिए। दोनों विधियों के समन्वित रूप को निम्न उदाहरण द्वारा और अधिक स्पष्ट किया जा सकता है।

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