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Sunday, August 2, 2020

रचना शिक्षण विधि

रचना शिक्षण विधि:- 


रचना शब्द का अर्थ - बनाना ,सजाना और क्रमबद्ध करके प्रस्तुत करना।
बालक जब बोलना- लिखना सीख जाता है, तो वह अपने भावों और विचारों को दूसरों के लिये सार्थक एवं प्रभावी ढंग से मौखिक या लिखित रूप से प्रकट करता है।
रचना भावों एवं विचारों की कलात्मक अभिव्यक्ति है।


रचना के दो प्रकार होते हैं।
1 मौखिक रचना 
2 लिखित रचना

रचना शिक्षण की विधियाँ 
A) चित्र वर्णन विधि:-- 
अध्यापक छात्रों के सामने कोई चित्र प्रस्तुत करता है तथा छात्रो को उस चित्र को देख कर वर्णन करने के लिये कहता है।
यदि छात्र मौखिक वर्णन करता है तो मौखिक रचना होती है।
लिखित रचना जैसे हाथी का चित्र दिखा कर हाथी पर पांच वाक्य लिखो

यह विधि प्राथमिक स्तर के लिये उपयोगी है।

B) शब्द प्रदान विधि :- 
इस विधि मे अध्यापक अपनी ओर से या छात्रों के सहयोग से शब्द श्यामपट्ट पर लिखता है तथा छात्रो को उस शब्द को या शब्दों को केंद्र मे रख कर रचना करने के लिये कहता है।
जैसे किसी कहानी की आउट लाईन दे कर पूरी कहानी लिखवाना ।

छात्र उन शब्दों को केंद्र मे रख कर लिखित या मौखिक रचना करता है।

सभी स्तरो के लिये उपयोगी है।

C) वाक्य प्रदान विधि/ रूपरेखा विधि:-
इस विधि के अन्तर्गत अध्यापक द्वारा वाक्य प्रदान किया जाता है।
छात्र उस वाक्य को केंद्र मे रख कर रचना करते है।
यह विधि उच्च प्राथमिक स्तर के लिये उपयोगी है।

D) अनुकरण विधि:- 
शिक्षक जैसे बोले वैसा ही नकल करना अनुकरण कहलाता है।
इस विधि मे बालक को प्रारंभ मे अक्षर ज्ञान कराया जाता है।
प्राथमिक स्तर के लिए उपयोगी इस स्तर पर लिखना व बोलना सिखाती है।
माध्यमिक स्तर पर रचना करने के लिये प्रयोग मे लायी जाती है।
इस विधि मे 3 प्रकार का अनुकरण होता है।

a) उच्चारण अनुकरण :- 
अध्यापक जैसा बोले वैसा ही बालक उसकी ध्वनियों का अनुकरण करे तो उसे उच्चारण अनुकरण कहते हैं।

b) लेखन अनुकरण :- 
शिक्षक के द्वारा लिखे हुये शब्दों का वैसा ही अनुकरण करना लेखन अनुकरण कहलाता है।

C) रचना अनुकरण/ प्रवचन विधि :- 
इस विधि मे शिक्षक बालकों के सामने एक रचना प्रस्तुत करता है और उसी रचना का अनुकरण कर एक नवीन रचना लिखने के लिये कहा जाता है।
इस अनुकरण मे भाषा तो बालक की होती है परंतु उसे शैली के लिये अध्यापक द्वारा बताई जाने वाली रचना पर ही निर्भर रहना पड़ता है।
जैसे दिवाली पर निबंध बता कर होली पर लिखने के लिये कहना।

E) प्रश्नोत्तर विधि:- 
इस विधि मे शिक्षक प्रश्न पूछता है ओर बालक उसका उत्तर देता है।
यह विधि प्राथमिक स्तर के लिए उपयोगी है।

F) उद्बोधन विधि :- 
प्रश्नोत्तर विधि का ही विकसित रूप है
इसका उद्देश्य पाठ से सम्बंधित क्रमबद्ध और व्यवस्थित विचार उत्पन्न करना है।
इस विधि का उपयोग ऐतिहासिक,भौगोलिक आदि विषयों के लिये किया जाता है।

G) विषय प्रबोधन विधि:- 
यह विधि उच्च कक्षाओं मे नाटक और कहानी की रचना शिक्षण के लिये उपयोगी है।
इसके अन्तर्गत शिक्षक पहले सभी पहलुओं को प्रस्तुत करता है और समझाता है 
बालक प्रस्तुत पहलुओं को स्वयं के विवेक ,कल्पना , तर्क के आधार पर रचना करता है।

H) मन्त्रणा विधि :- 
इसे अध्ययन विधि/ प्रणाली भी कहा जाता है।
इसके अन्तर्गत विषय से सम्बंधित पुस्तकों,लेखों,पत्रिकाओं तथा अन्य संदर्भ ग्रंथ का अध्ययन बालक द्वारा स्वयं किया जाता है।

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