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Tuesday, August 4, 2020

प्रत्यक्ष विधि Direct methods


प्रत्यक्ष विधि को सुगम विधि/ प्राकृतिक विधि / निर्बाध विधि भी कहते हैं।
प्रवर्तक - गुइन महोदय

प्रत्यक्ष विधि का अर्थ होता है-वस्तुओं को प्रत्यक्ष रूप मे दिखाना।
तात्पर्य यह है कि वस्तुओं व जीव जन्तुओं का चित्र अथवा प्रतिमान दिखा कर क्रियाओं को करके दिखाना।

प्राथमिक स्तर के लिए उपयोगी

17वी सदी मे जौह्न कमेनियस ने यह विचार रखा कि भाषा को व्यवहारिकता के आधार ओर पढ़ाया जाना चाहिए
इसलिए भण्डारकर विधि के स्थान पर किसी अन्य विधि की आवश्यकता सबसे पहले जौन कमैनियस ने महसूस की।


सबसे पहले इस विधि का प्रयोग 1901 मे फ्रांस मे अन्ग्रेजी भाषा के लिये किया गया।
भारत मे इसका प्रयोग 20 वीं शताब्दी के प्रथम दशक मे बंगाल मे श्री टिपिंग ने की।
मुंबई मे लाने वाले श्री फैजर थे।
मद्रास मे लाने वाले श्री येट्स थे।



इस विधि मे तीन बातों का ध्यान रखा जाता है।
1 मातृभाषा का प्रयोग वर्जित है।
2 मौखिक कार्य को प्रधानता दी जानी चाहिए
3 वस्तु ओर शब्द के मध्य सीमा सम्बंध स्थापित कर पढ़ाया जाता है।


इस पद्धति का मुख्य सिद्घांत यह है कि जिस प्रकार बालक अनुकरण द्वारा मातृभाषा सीख लेता है उसी प्रकार बालक श्रवण और अनुकरण द्वारा दूसरी भाषा भी सीख सकता है ।

इस विधि मे सीमित शब्दावली का ही ज्ञान दिया जाता है।
अनेक ऐसे शब्द होते है जिनकी व्याख्या नही हो सकती है। जैसे भाववाचक संज्ञा के उदाहरण।

श्रवण कर बोलना कौशल पर जोर दिया जाता है।
पढना और लिखना कौशल गौण हो जाते है।


जैसे अ से अनार
इ से इमली
उ से उल्लु
इनको चित्रो के माध्यम से प्रत्यक्ष रूप मे दिखा कर पढाया जाता है।

अनुभूति और अभिव्यक्ति मे सीधा सम्बंध होना चाहिए ।

इस विधि मे उन्ही शब्दों का ज्ञान दिया जा सकता है जो मूर्त रूप म उपस्थित हों तथा उन्हे कक्षा कक्ष मे लाया जा सके।

इस विधि से लेखन तथा व्याकरण का ज्ञान रह जाता है ।
इस विधि मे वाक्य सरंचना का ज्ञान न्ही दिया जाता है।

इस विधि मे वार्तालाप मौखिक कार्य एवं बोलने पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है।

इस विधि मे अन्य भाषा को स्वतंत्र एवं पृथक भाषा के रूप मे पढ़ाया जाता है।

इस विधि मे सम्पूर्ण वाक्य को इकाई माना जाता है।

इस विधि मे अन्य भाषा के अध्ययन के समय अन्य भाषा मे ही आदेश निर्देश दिये जाते हैं।
उसी भाषा मे विचार अभिव्यक्ति की जाती है।


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