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Sunday, July 28, 2024

शिक्षण अधिगम सामग्री

शिक्षण अधिगम सामग्री :-

शिक्षण सामग्री वे साधन है जिन्हें हम आंखों से देख सकते हैं कानों से उनसे संबंधित ध्वनि सुन सकते हैं वे प्रक्रियाएं जिनमें श्रव्य-दृश्य इंद्रियां सक्रिय होकर भाग लेती हैं शिक्षण सामग्री कहलाती है |

डेंट के अनुसार:- शिक्षण सहायक सामग्री वह सामग्री है जो कक्षा में या अन्य शिक्षण परिस्थितियों में लिखित या बोली गई पाठ्य सामग्री के समझने में सहायता प्रदान करती है |

कार्टन ए.गुड के अनुसार :- कोई भी ऐसी सामग्री जिसके माध्यम से शिक्षण प्रक्रिया को उद्दीपित किया जा सके अथवा श्रवण इंद्रिय संवेदनाओं के द्वारा आगे बढ़ाया जा सके, शिक्षण सहायक सामग्री कहलाती है |


पढ़ाते समय शिक्षक को ऐसे शिक्षार्थियों की आवश्यकताओं और अपेक्षाओं का ध्यान रखना होता है जो योग्यताओं, रुचियों और अभिप्रेरणा में एक-दूसरे से काफी भिन्न होते हैं। साथ ही, सभी शिक्षार्थियों की अधिगम गति एक समान भी नहीं होती है। किंतु शिक्षक को तीव्र गति से सीखने वालों, सामान्य शिक्षार्थियों तथा कमज़ोर शिक्षार्थियों को एक साथ पढ़ाना होता है जिसके लिए उसे अलग-अलग युक्तियाँ अपनानी पड़ती हैं। इन युक्तियों के अंतर्गत शिक्षक विभिन्न प्रकार की शिक्षण अधिगम सामग्रियों का प्रयोग कर सकता है। अतः हम कह सकते हैं कि शिक्षकों के पास शिक्षण-अधिगम सामग्री ऐसे अस्त्र-शस्त्र हैं जिनका प्रयोग वे विविध प्रकार की संभावित चुनौतियों से निपटने के लिए करते हैं।

शिक्षक को उपर्युक्त प्रकार की शिक्षण अधिगम सामग्री को व्यवस्थित या विकसित करने के लिए उपायकुशल होना चाहिए और उसे इतना दक्ष होना चाहिए कि वह प्रत्येक का उपर्युक्त समय पर प्रयोग करे क्योंकि ऐसी सामग्री का अविवेकपर्ण उपयोग प्रत्युत्पादक हो सकता है।


निम्नांकित विवेचन शिक्षण सामग्री की भूमिका और महत्व पर प्रकाश डालती है।


शिक्षण-अधिगम सामग्रियाँ वे होती हैं जो :


  • अपने श्रव्य, दृश्य या श्रव्य दृश्य रूपों से बच्चों को आकर्षित करती हैं
  • शिक्षक के कार्य को सरल बनाने में सहायक साधन का कार्य करती हैं
  • शिक्षार्थियों की अधिगम के प्रति एकाग्रता और रुचि बनाए रखने में उपयोगी होती हैं
  • कक्षा शिक्षण की न्यूनताओं को दूर करती हैं
  • स्व-अधिगम को प्रोत्साहित करती हैं
  • कमज़ोर शिक्षार्थियों की सहायता के लिए प्रयोग में लाई जा सकती हैं (उपचारात्मक शिक्षण)
  • अमूर्त सिद्धांतों को यथार्थ अवधारणा प्रदान करती हैं
  • शिक्षार्थियों के अधिगम को उनकी स्थाई संपत्ति बनाने में सहायता देती हैं। शिक्षार्थियों को सृजनशील बनाती हैं और स्वयं करके सीखने का अवसर प्रदान करती हैं।


अतः शिक्षण-अधिगम सामग्री शिक्षकों के लिए बहुत महत्व रखती है। गणित शिक्षकों को तो इनकी और अधिक आवश्यकता होती है क्योंकि उनका ऐसी संकल्पनाओं से संपर्क पड़ता है जो बच्चों के लिए सामान्यतः कठिन मानी जाती हैं।

शिक्षण अधिगम सामग्री के उपयोग में तीन आधारभूत विचारणीय बातें होती हैं जो निम्नलिखित हैं

1. सामग्री की स्वाभाविक आवश्यकता :-  सामग्री विशेष की सहायता से संकल्पना को आसानी से स्पष्ट किया जा सके और उन्हें अच्छी तरह सीखा जा सके l l

2. शिक्षण अधिगम सामग्री का उपयोग :-  शिक्षण अधिगम सामग्री का उपयोग समय पर तथा उचित प्रकार से उपयोग होना अनिवार्य है l

3. अपेक्षित शिक्षण सामग्री को प्राप्त करना :-   किसी विशिष्ट प्रकरण पर चर्चा करने से पहले थोड़ी लागत वाले अथवा लागत रहित शिक्षण साधन होने चाहिए l

शिक्षण सामग्री के उपयोग में कुछ सामान्य बातों का ध्यान रखना आवश्यक है

  • शिक्षण अधिगम सामग्री के इस्तेमाल में जैसे लेने देने रखना प्रदर्शन करने आदि की प्रक्रिया में बच्चों को जिम्मेदार एवं भागीदार बनना चाहिए l
  • सामग्री की उपलब्धता समय पर सुनिश्चित होना चाहिए 
  • शिक्षक की यह जिम्मेदारी है कि कौन सामग्री किन परिस्थितियों में और किन उद्देश्य के लिए इस्तेमाल की जाए
  • सामग्री हमारे पास एक साधन के रूप में उपलब्ध होती है इसे ही पूर्ण नहीं मान कर शिक्षण करवाना चाहिए 
अध्यापन अधिगम सामग्री को प्रयोग करने का प्रयोजन :-
कक्षा में अध्यापन अधिगम सामग्री के प्रयोग करने के कुछ कारण निम्नलिखित हैं :-
  • विद्यार्थियों को अभिप्रेरित करना:- कुछ भी सीखने के लिए सबसे पहले यह आवश्यक है कि विद्यार्थियों का ध्यान आकर्षित किया जाए और अध्यापन अधिगम सामग्री कक्षा में विद्यार्थियों का ध्यान आकर्षित करने में सहायता करते हैं l
  • अध्यापन अधिगम सामग्री उत्प्रेरक का कार्य करती है l
  • सूचना को देर तक स्मरण रखने में सहायता करते हैं l
  • अध्यापन अधिगम सामग्री से अंत क्रिया करने से जितनी अधिक ज्ञानेंद्रिय का प्रयोग होगा सूचना उतनी ही देर तक स्मरण रह सकेगी अतः अधिगम प्रभावी और अधिक स्थाई होगा l
  • कक्षा अध्यापन की व्यवस्था करने में सहायता करना अनुक्रमिक रूप से व्यवस्थित तथ्यात्मक आंकड़ों को प्रस्तुत करने के लिए शाब्दिक या दृश्य अध्यापन अधिगम सामग्री का प्रयोग कर सकते हैं 
  • अभिवृद्धि परिवर्तन में सहायता करना:-  चित्र प्रतिरूप तथा अन्य अध्यापन अधिगम सामग्री से विद्यार्थियों में सकारात्मक अभिवृद्धि का विकास होता है 
  • अध्यापन अधिगम सामग्री सैद्धांतिक ज्ञान से व्यावहारिक ज्ञान की तरफ ले जाती है 
  • अधिगम सामग्री बच्चों में अवधारणाओं के निर्माण और प्राप्ति में सहायता करते हैं वह अमूर्त अवधारणाओं का मूर्तिकरण करते हैं इस प्रकार बच्चे उन्हें समझ लेते हैं और रटने की आवश्यकता नहीं पड़ती है l
श्रव्य दृश्य सामग्री प्रयोग के उद्देश्य:-
  1. विद्यार्थियों का ध्यान पाठ्यवस्तु की ओर केंद्रित करना l
  2. अमूर्त पाठ्यवस्तु को मूर्त रूप प्रदान करने का प्रयास करना l
  3. विद्यार्थियों में पाठ के प्रति रुचि जागृत करना l
  4. विद्यार्थियों के सीखने की गति में सुधार करना l
  5. जटिल विषय वस्तु को भी सरल एवं सहज रूप से प्रस्तुत करना l 
  6. विद्यार्थियों की निरीक्षण शक्ति का विकास करना l
  7. विद्यार्थियों की अभिरुचियों पर आसानुकूल प्रभाव डालना l
  8. शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में छात्रों को अधिक क्रियाशील बनाना जिससे अंतः क्रिया को प्रभावी बनाया जा सके l
  9. कक्षा के सभी विद्यार्थियों की योग्यता के स्तर एवं अधिगम क्षमता को ध्यान में रखते हुए शिक्षण की व्यवस्था करना

शिक्षण सहायक सामग्री की विशेषताएं:- 
  • शिक्षण सहायक सामग्री स्थाई रूप से सीखने एवं समझने में सहायक है 
  • मौखिक बात को काम करती है 
  • यह अनुभवों द्वारा ज्ञान प्रदान करती है 
  • यह समय की बचत तथा रुचि में वृद्धि करती है 
  • यह अध्यापक के विचारों में प्रवाहात्मकता प्रदान करती है 
  • अध्यापक को उपयोगी एवं अच्छे शिक्षण में सहायता करती है 
  • शिक्षण सामग्री भाषा संबंधी कठिनाइयों को दूर करती है 
  • शिक्षण सामग्री से वैज्ञानिक प्रवृत्ति का विकास होता है
  • शिक्षण अधिगम के माध्यम से छात्र स्वयं कार्य करने पर अपने को अधिक योग्य एवं साधन संपन्न तथा आत्मनिर्भर मानने लगते हैं
  • शिक्षण अधिगम सामग्री सूचना बातों को सरलता से समझा देती है और छात्रों की कल्पना एवं विचार शक्ति का विकास करती है 
  • शिक्षण सहायक सामग्री से पाठ में अधिक रोचकता आती है 
  • शिक्षण सहायक सामग्री शिक्षण एवं अधिगम प्रक्रिया को सुगम बनती है 
  • विभिन्न विषयों के अन्वेषण के प्रति उत्सुकता जागृत होती है 
  • छात्रों को उपकरण प्रयोग करने की विधि का ज्ञान होता है

अध्यापन निगम सामग्री बहुत प्रकार की होती है अतः उन्हें विभिन्न प्रकार से वर्गीकृत किया गया है इन्हें वर्गीकृत करने की सरलतम विधि एडगर डेल द्वारा प्रतिपादित तथा निरूपित अनुभव शंकु है |











अध्यापन अधिगम सामग्री को सामान्यतः तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है 
1.श्रव्य सामग्री 
2.दृश्य सामग्री और
3.श्रव्य दृश्य सामग्री 

स्वरूप के आधार पर शिक्षण अधिगम सामग्री का वर्गीकरण:-

दृश्य सामग्री (Visual)      श्रवण सामग्री (Audio)।     श्रव्य दृश्य सामग्री (Audio-Visual)

प्रतिरूप (Model)।            ग्रामोफोन आकाशवाणी।         दूरदर्शन चलचित्र

चित्र तथा पोस्टर।                 टेपरिकार्डर                          क्लोज सर्किट टेलीविजन

श्यामपट्ट।                          लिंग्वाफोन।                            वीडियो कैसेट्स

माया-दीप।                        भाषा प्रयोगशाला।                   प्रयोगशालाएँ

पत्र पत्रिकाएँ ,समाचार पत्र।     स्टीरियो रिकार्डर।                  कार्यशालाएँ

चित्रदर्शक (Epidiascope)।       टेलीफोन वार्ता।                 प्रदर्शन

वास्तविक पदार्थ।                     मानव स्वर आदि।                रोल-प्ले

रेखाचित्र तथा खाके।                                                        ड्रामा, खेल

मानचित्र।                                                                      टेली कान्फ्रेंस

सन्दर्भ पुस्तकें, एटलस तथा ग्लोब।                                    केवल टी०वी कम्प्यूटर

स्लाइड्स, फिल्मस्ट्रिप।                                                    सैटेलाइट टी०वी० वर्किंग

पाठ्यपुस्तकें, पूरक पुस्तकें।                                              माइक्रो / मिनी कम्प्यूटर

बुलैटिन बोर्ड, चुम्बक बोर्ड।                                               इण्टरनेट

भ्रमण तथा यात्राएं।                                                        लैपटॉप आदि |

संग्रहालय आदि|



श्रव्य सामग्री :-

1.रेडियो:-

  •  रेडियो के उपयोग से विज्ञान अध्ययन को प्रभावशाली और आकर्षक बनाया जा सकता है आकाशवाणी द्वारा समय-समय पर विज्ञान संबंधी वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं 
  • एनसीईआरटी के केंद्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी संस्थान (CIET) द्वारा विकसित विद्यालय विद्यार्थियों के लिए ऑडियो कार्यक्रम भी ज्ञानवाणी द्वारा प्रसारित किए जाते हैं
  • लाभ:- रेडियो से हमें सारी दुनिया के ताजा समाचार मिलते हैं  
  • कक्षा के वातावरण में परिवर्तन होता हैl
  • उच्च कोटि के वैज्ञानिकों तथा शिक्षकों के भाषण का विस्तार पूर्वक सरल एवं स्पष्ट वर्जन देश के हर कोने में बैठे छात्र सुन सकते हैंl

2.टेप रिकॉर्डर :-

  •  इस यंत्र का सबसे बड़ा लाभ यह है कि कहीं भी होने वाला विज्ञान सेमिनार की बातों को टैप करके कक्षा में बालकों को महत्वपूर्ण जानकारी दी जा सकती है
  • टेप रिकॉर्डर का लाभ यह भी है कि किसी भी आवाज को रिकॉर्ड करके जहां भी जब भी आवश्यकता हो छात्रों को सुनाया जा सकता है
  • भाषा शिक्षण में टेप रिकॉर्डर का प्रयोग महत्वपूर्ण है शुद्ध उच्चारण के अभ्यास में इससे बढ़कर दूसरा साधन है ही नहीं बालक अपने उच्चारण को इसकी सहायता से स्वयं सुनकर अशुद्ध को दूर कर सकता है पाठ को दोहराने या स्मरण करने में इसकी सहायता ली जा सकती है 

3.लिंग्वाफोन:-

  •  भाषा प्रयोगशाला का एक आवश्यक उपकरण है l
  •  इसका प्रयोग भाषा शिक्षण के अंतर्गत छात्रों को ध्वनियों का शुद्ध ज्ञान प्रदान करने, शुद्ध उच्चारण की क्षमता का विकास करने हेतु किया जाता है l
  •  इसकी सहायता से बड़ी कक्षाओं का आसानी से प्रभावशाली शिक्षण दिया जा सकता है

4.ग्रामोफोन और डिक्टा फोन :-

  • ग्रामोफोन और डिक्टा फोन का प्रयोग ध्वनि अभिलेखन हेतु किया जाता है l
  • ग्रामोफोन और डिक्टेफोन आदि का प्रयोग छात्रों को भाषण की तैयारी करने हेतु किया जाता है l
  • गीत संगीत की शिक्षा के लिए ग्रामोफोन का प्रयोग किया जाता है |


दृश्य सामाग्री :-
 
1.श्यामपट्ट:- 
  गणित शिक्षण की भांति विज्ञान शिक्षण को प्रभावशाली तथा उपयोगी बनाने के लिए कक्षा में श्यामपट्ट का प्रयोग अत्यंत आवश्यक है |
शिक्षण में श्यामपट्ट के महत्व को निम्न बिंदुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
  1.  विज्ञान में विभिन्न सूत्रों नियमों सूत्र संबंधों आदि को श्यामपट्ट पर लिखने से प्रत्येक छात्र उनका आसानी से प्रयोग कर सकता है 
  2. रेडियो पाठ ,दूरदर्शन, फिल्म प्रदर्शन, ओवरहेड प्रोजेक्टर जैसे द्रव्य श्रव्य सामग्री के प्रयोग में भी संपर्क की आवश्यकता होती है 
  3. पढ़ाई गई विषय वस्तु के मुख्य बिंदुओं को श्यामपट्ट पर दोहराकर छात्रों का ध्यान आकर्षित किया जा सकता है
  4.  संबंधित चित्र आकृति बनाकर विषय वस्तु को स्पष्ट किया जा सकता है 
  5. जो विषय वस्तु पढ़ाई गई है उसका सारांश अच्छी प्रकार से लिखा जा सकता है
  6.  इस पर बनाए गए चित्रों के माध्यम से पूरी कक्षा का ध्यान पाठ की ओर आकर्षित किया जा सकता है केवल यही एक ऐसी सामग्री है जो की कक्षा में हर समय आसानी से उपलब्ध रहती है 
  7. गद्य पाठ को पढ़ते समय कठिन शब्द व उनके अर्थ कविता शिक्षण के समय तुलनात्मक कविता या अध्यापक कथन आदि के लिए श्यामपट्ट का उपयोग किया जाता है 
  8. भाषा शिक्षण का श्यामपट्ट लेख अच्छा होना चाहिए
  9. श्यामपट्ट के प्रयोग से छात्र ज्ञान ग्रहण करने में सफल होते हैं तथा कक्षा में अधिक सक्रिय रहते हैं 
  10.  चार्ट, ग्राफ तथा सारणी का प्रदर्शन करते समय
  11.  मुख्य बिंदुओं (परिभाषा, नियम आदि) लिखते समय
  12.  कक्षा में कराए गए कार्य का मूल्यांकन करना करने हेतु 
  13. छात्रों को गृह कार्य देते समय
  14.  अपनी पाठ योजना की रूपरेखा लिखते समय 
  15. रेखा चित्र तथा रेखाकृतियां बनाने के लिए
  16.  किसी नियम, सूत्र, सिद्धांत अथवा आंकिक प्रश्नों को हल करने के लिए
  17.  प्रयोगशाला में प्रायोगिक कार्य से संबंधित जानकारी देते समय


श्यामपट्ट का प्रयोग करते समय सावधानी:-  
  • श्यामपट्ट पर लिखी गई सामग्री सभी छात्रों को स्पष्ट रूप से दिखाई देने चाहिए 
  • श्यामपट्ट पर लिखते समय मुंह से बोलना भी जाना चाहिए 
  • श्यामपट्ट पर लिखते समय कभी-कभी बीच में छात्रों की ओर भी देख लेना चाहिए 
  • श्यामपट्ट पर किया गया कार्य पूरा होना चाहिए
  • छात्रों की रुचि बढ़ाने के लिए रंगीन चौक का उपयोग करना चाहिए 
  • छात्रों को श्यामपट्ट पर लिखने तथा प्रश्नों को हल करने का अवसर प्रदान करना चाहिए 
  • श्यामपट्ट पर अक्षर मध्यम आकार के ही लिखनी चाहिए 
  • सीधी पंक्ति में लिखने का प्रयास करना चाहिए
  • विषय वस्तु को श्यामपट्ट पर प्रभावशाली ढंग से एक क्रम में प्रस्तुत करना चाहिए 
  • श्यामपट्ट पर बनाया गया चित्र स्पष्ट होना चाहिए


2. प्रत्यक्ष वस्तु ,वास्तविक पदार्थ या मॉडल :-
  • प्रदर्शन सामग्री में पहला महत्व प्रत्यक्ष वस्तु का है 
  • प्रत्यक्ष वस्तुओं को देखकर बालकों को उन वस्तुओं का ज्ञान सुगमता से हो जाता है चुंबक मेंढक तितली फूल बैरोमीटर थरमस इत्यादि वस्तुओं को दिखाकर अध्यापक अपना काम सरलता से कर लेते हैं
  •  प्रत्यक्ष वस्तु सामने होने से उनका ज्ञान भी पूरा होता है जिन वस्तुओं से बालक भली-भांति परिचित न हो उन्हें अवश्य दिखाना चाहिए 
  • मॉडल वास्तविक वस्तुओं के प्रतिबिंब या छाया होती है जो उसे वस्तु का प्रतिबिंब प्रतिनिधित्व करते हैं इनका प्रयोग किसी विषयवस्तु ,पद्धति, कार्य विधि अथवा विचारों को प्रदर्शित करने के लिए किया जा सकता है 
  • वास्तविक पदार्थ भी सहायक दृश्य उपकरण है इसके संपर्क में छात्रों को लाया जा सकता है कुछ पदार्थ सरलता से कक्षा में अध्यापक ले जा सकता है स्थूल वस्तुओं के साक्षात संपर्क में आकर बालक पाठ को अच्छी तरह समझता है और सूक्ष्म चिंतन की ओर अग्रसर होता है
  • मॉडल उपयोगी इसलिए होते हैं क्योंकि वह कठिन अवधारणाओं का सरलीकरण कर देते हैं 
  • बहुत बड़ी वस्तु को सुगमता से प्रेक्षणीय आकार में लघु कृत कर देते हैं 
  • किसी वस्तु अथवा तंत्र की आंतरिक संरचना को निदर्शित कर देते हैं 
  • छात्रों की , वस्तुओं के अथवा तंत्र के कठिन भावों को समझने में सहायता करते हैं l


3. चित्र :- 
  1. पाठ को आकर्षक व रोचक बनाने के लिए अध्यापक चित्र का प्रयोग कर सकता है 
  2. "रेखाओं और रंगों का वह संयोग जो अपनी मूक भाषा में किसी तथ्य,भाव योजना की अभिव्यक्ति करें चित्र कहलाता है "
  3. यह आंखों को सौंदर्य प्रदान करता है 
  4. चित्र में वस्तुओं का चित्रण रहता है 
  5. चित्र को ऐसी जगह टांगना चाहिए जहां से वह सभी बालकों को सरलता से दिखाई पड़े
  6. चित्र स्पष्ट होना चाहिए इनमें कलात्मकता , स्पष्टता , प्रभावितता ,शुद्धता, विश्वसनीयता, सत्यता एवं पूर्णता होनी चाहिए 
  7. इसे मनोरंजक, आकर्षक, उत्तेजित एवं व्यावहारिक होना चाहिए
4. चार्ट व ग्राफ :-
  1. चार्ट भी एक दृश्य साधन है जिसमें तथ्यों और चित्रों का संबंध में होता है इसमें तार्किक रीति से क्रमबद्धता होती है 
  2. यह विचारों अथवा तथ्यों के पारस्परिक मूल की वह सुंदर व्यवस्था है जिसमें तार्किक संगठन और क्रमिक विकास की योजना एक बोधगम्य  स्वरूप लिए होती है 
  3. हिंदी साहित्य का इतिहास पढ़ाते समय - समय चार्ट ,धारा चार्ट ,तालिका चार्ट ,वृक्ष चार्ट और संगठन चार्ट का प्रयोग किया जा सकता है 
  4. निबंध या व्याकरण को पढ़ने के बाद कभी-कभी श्यामपट्ट सारांश चार्ट के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है 
  5. विज्ञान विषय पढ़ाते समय चार्ट बहुत ही महत्वपूर्ण साधन है चार्ट की सहायता से विभिन्न यंत्रों की कार्य प्रणाली शरीर के अंगों की कार्य प्रणाली आदि के बारे में पढ़ाया जा सकता है 
  6. आवश्यकता अनुसार पाठ को सरल बनाने के लिए ग्राफ व चार्ट को भी प्रयोग में लाना चाहिए यह ग्राफ चार्ट यथासंभव घर से बने बने लाने की अपेक्षा बालकों के सामने ही बनाए जाने चाहिए l

5. फ्लैनेल बोर्ड:-  imp = इसका उपयोग कक्षागत उपयोग हेतु किया जाता है |
  • उपनाम - नमदा बोर्ड, Display बोर्ड, प्रदर्शन बोर्ड,
  • एक बड़े तख्ते पर फ्लैनल या खादी कपड़ा या ऊनी कपड़ा तानकर चिपका दिया जाता है इस बोर्ड को फ्लैनेल बोर्ड या खादी बोर्ड कहते हैं इसमें चौक से कुछ लिखा नहीं जाता वरन कुछ चित्रों या चिह्नो की कटिंग चिपकाई जाती है l
  • पाठ से संबंधित चित्रों को विभिन्न पोस्टर,पुस्तकों,पत्रिकाओं या समाचार पत्रों से काट लिया जाता है और उनके पीछे रेगमाल कागज लगा दिया जाता है अब इन चित्रों को खादी बोर्ड पर चिपकाने पर यह चिपक जाते हैं और आवश्यकता अनुसार निकाल दिए जाते हैं l
  • कहानी का विकास करने में चित्रों को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत किया जा सकता है l
  • प्रारंभिक स्तर पर वर्णमाला सीखने में ,संयुक्त अक्षरों का ज्ञान करने में खादी बोर्ड का प्रयोग किया जाता है l



6. बुलेटिन बोर्ड:- imp = इसका उपयोग कक्षागत उपयोग हेतु नहीं किया जाता है  |
  • उपनाम - सूचना पट्ट l
  • बुलेटिन बोर्ड का प्रयोग कक्षागत शिक्षण हेतु नहीं किया जाता है l
  • इसका उपयोग छात्रों की रचनाएं प्रदर्शन हेतु ,विद्यालय से संबंधित आवश्यक सूचनाओं ,समाचारों को प्रदर्शित करने हेतु किया जाता है l

7. डायोरमा:- 
  • इसे चित्र शाला भी कहते हैं l
  • इसका प्रयोग छात्रों द्वारा बनाई गई सामग्रियों को प्रदर्शित करने हेतु किया जाता है l
  • त्रिविमीय दृश्य जिसको संस्कृति विशेष के लोग किसी गत्ते पर बनाते हैं जिसमें त्रिविम दृश्य तथा मूलभूत मानव क्रियायों तथा विशिष्ट जीवन पद्धतियों को दर्शाया जाता है l
8. मैजिक लैंटर्न:- 
  • विज्ञान शिक्षण में यह भी एक आवश्यक यंत्र है इसकी सहायता से चित्र बड़े करके पर्दे पर दिखाए जाते हैं जिसमें कक्षा के समस्त बालक उनको अच्छी तरह देख सकें l
  • इस प्रकार सूक्ष्म वस्तुओं के चित्रों को संपूर्ण कक्षा के सम्मुख प्रस्तुत करके उनका ज्ञान दिया जा सकता है परंतु इसके लिए स्लाईडो की जरूरत होती है यह स्लाइड बनवानी पड़ती है l 
  • कक्षा में बहुत समय तक अंधेरा रखना पड़ता है जो की ठीक नहीं है l


9. एपिस्कोप/ Episcop :- 
  • इस यंत्र में स्लाइड की आवश्यकता नहीं पड़ती है इसके द्वारा किसी भी पुस्तक ,पत्रिका ,समाचार पत्र के चित्र को पर्दे पर दिखाया जा सकता है l
  • इस प्रकार इस यंत्र द्वारा स्लाइड बनवाने का खर्च भी कम हो जाता है l
  • पाठ से संबंधित ग्राफ ,रेखा-चित्र अथवा लेख इसकी सहायता से पर्दे पर दिखलाकर कक्षा को लाभ पहुंचाया जा सकता है l
  • यदि किसी कक्षा में किसी छोटे जीव जंतु आदि के बारे में बतलाना है तो ऐसी दशा में जंतु को एपिस्कोप में रखकर इसका आकार बड़ा करके पर्दे पर दिखलाना अति उपयोगी होता है

10. एपिडायस्कोप :-
  • इस यंत्र से लैंटर्न और एपिस्कोप दोनों का ही काम हो सकता है लैंटर्न की तरह इसमें स्लाइडिंग काम में लाई जा सकती हैं और एपिस्कोप की तरह इसमें चित्र ,रेखा चित्र ,नमूने और पदार्थ भी दिखाई जा सकते हैं l
  • चित्र तथा नमूने इत्यादि दिखलाने के अलावा इसका उपयोग पाठ का सारांश एक कागज पर लिखकर पर्दे पर दिखलाने में भी सहायक हो सकता है l
  • इसमें श्यामपट्ट पर लिखने की बचत हो सकती है l
  • प्राय बालकों में सामान्य त्रुटियां पाई जाती हैं जिनके बारे में संपूर्ण कक्षा को बतलाना आवश्यक है इस यंत्र द्वारा ऐसी त्रुटियां का संपूर्ण कक्षा को दिखलाकर उनको त्रुटियों से मुक्त कर सकते हैं l
  • भाषा शिक्षण में प्राकृतिक दृश्य, यात्रा वर्णन ,उत्सवों ,त्योहार आदि के पाठ पढ़ने में चित्र प्रदर्शक यंत्रों का प्रयोग हो सकता है

11. ओवरहेड प्रोजेक्टर:- (OHP) 
  • इस यंत्र की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि अध्यापक लिखने ,चित्र या आकृति खींचना आदि सभी कार्य प्रक्षेप की प्लेट पर अपनी इमेज के पास रहकर ही संपन्न करते हैं और संपूर्ण सूचना अध्यापक के सिर के ऊपर से छात्रों के समक्ष सामने की दीवार पर या पर्दे पर प्रक्षेपित होती रहती है इसलिए इसे शिरोपरि प्रक्षेप कहते हैं l
  • इसकी सहायता से विज्ञान के प्रश्नों चित्रों आकृतियों आदि को बढ़ाकर के विभिन्न कोणों से प्रदर्शित किया जाता है 

12. मानचित्र:- 
  • मानचित्र का सर्वाधिक प्रयोग इतिहास, भूगोल की कक्षा में होता है किंतु भाषा के पाठ में कुछ ऐतिहासिक या भौगोलिक दृश्य व प्रसंग को स्पष्ट करने के लिए मानचित्र का प्रयोग किया जा सकता है l
  • नालंदा ,विक्रमशिला, हिमगिरी,गोदावरी,केरल ,नागालैंड ,असम, चीन, सिंगापुर,जैसे पाठों को मानचित्र की सहायता से पढ़ाना सरल हो सकता है l
  •  मानचित्र को सामान्यतः निम्नलिखित श्रेणियां में वर्गीकृत किया जाता है 
A.प्राकृतिक मानचित्र 
B.राजनीतिक मानचित्र 
C.आर्थिक मानचित्र 
D.सामाजिक मानचित्र 
E.ऐतिहासिक मानचित्र
  • संक्षिप्त रूप में सूचना प्रदान करने के लिए मानचित्र का प्रयोग किया जाता है

श्रव्य दृश्य सामग्री:-

इस प्रकार की सहायक शिक्षक सामग्री में विषय वस्तु से संबंधित वस्तुओं यंत्रों या उनकी प्रक्रियाओं को चित्रों द्वारा प्रदर्शित करने के साथ-साथ उनके बारे में वर्णन भी सुनाया जाता है |

1.Television (टेलीविजन) :- 
  • दूरदर्शन एक आधुनिकतम श्रव्य दृश्य सामग्री है l
  • इसमें फिल्म और रेडियो के गुणों का समिश्रण है टेलीविजन भी एक ऐसा यंत्र है जिसके द्वारा देखना और सुनना दोनों क्रियाएं एक साथ संभव है l
  • ऐसी वैज्ञानिक संक्रियाएं अथवा उपकरण जिनको कक्षा में दिखाना बहुत खर्चीला अथवा कठिन होता है दूरदर्शन के माध्यम से बहुत आसानी से दिखाई तथा समझाया जा सकते हैं l
  • इसका महत्वपूर्ण लाभ यह है कि इसमें चलचित्रों ,मॉडलों ,फोटोग्राफ, फिल्म स्ट्रिप आदि दृश्य सामग्री का उपयोग किया जा सकता है जिससे कि शिक्षण प्रभावशाली हो सके l
  • यह सबसे अधिक आशापूर्ण श्रव्य दृश्य उपकरण है क्योंकि संदेश वाहन के इस एक यंत्र में रेडियो तथा चलचित्र के गुणों का सम्मिश्रण है l
2.कंप्यूटर(COMPUTER):- 

  • कंप्यूटर आधुनिक एवं नवीनतम खोज है जिसकी सहायता से विज्ञान शिक्षण को और अधिक रोचक एवं प्रभावशाली बनाया जा सकता है l
  • सूचना एवं संप्रेषण प्रौद्योगिकी के इस युग में विशेष कर विज्ञान एवं गणित शिक्षण में सहायक सामग्री के रूप में कंप्यूटर बहुत अधिक प्रचलित है l
  • यह शिक्षण एवं अनुदेशन का एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण माध्यम है इसकी सहायता से शिक्षण करने पर बालकों में प्रेरणा उत्पन्न की जा सकती है तथा छात्र भी सक्रिय रहकर सीखने के लिए तत्पर रहते हैं l दूरवर्ती शिक्षा के अंतर्गत कंप्यूटर द्वारा अनुदेशन एक नवीन प्रत्यय है l
**सहायक सामग्री के रूप में कंप्यूटर का महत्व:-  
  1. छात्रों की निष्पत्ति स्तर में बढ़ोतरी करता है
  2. गणितीय एवं सांख्यिकी संक्रिया करता है 
  3. ग्राफ चार्ट सारणी आदि बनता है 
  4. कंप्यूटर सूचनाओं को एकत्रित करता है तथा आवश्यकता पड़ने पर पुन: प्रस्तुत करता है l
  5.  इसकी सहायता से छात्रों में सोचने समझने ,परीक्षण, समस्या समाधान ,समालोचनात्मक ,संरचनात्मक तथा निर्णय लेना आदि विभिन्न शक्तियों का विकास होता है

3.चलचित्र:- 
  • पश्चिमी देशों में पाठ्यवस्तु को स्पष्ट करने के लिए चलचित्रों का खूब प्रयोग होने लगा है l
  • साहित्य में वर्णित विभिन्न प्रकार के काल्पनिक दृश्य को वर्णन द्वारा स्पष्ट किया जाता है किंतु इन दृश्यों को फिल्मों में फोटोग्राफी की कला द्वारा सरलता से प्रदर्शित किया जा सकता है l
  • नवीन खोजने के परिणाम स्वरूप आज फोटोग्राफी की कला में बहुत विकास हो गया है और सूचनाओ का दिखाया जाना संभव है

4.नाटक:- 
  • अभिनय तथा नाटकों की पद्धति द्वारा भी विज्ञान के अध्ययन को रोचक बनाया जा सकता है l
  • किसी भी क्रियाकलाप को नाटक द्वारा प्रस्तुत करने से वह मूर्त रूप में बालक के मस्तिष्क पर प्रभाव डालता है l 
  • उदाहरण के लिए विज्ञान संबंधी समस्याओं पर आधारित नाटक खेले जा सकते हैं l


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शिक्षण अधिगम सामग्री

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