Monday, August 3, 2020

समवाय विधि व्यतिरेकी विधि

1) व्यतिरेक विधि :- मनोवैज्ञानिक विधि है।
व्यतिरेक का अर्थ है तुलना करना विभेद करना।

यह द्वितीय भाषा शिक्षण की विधि है।

इसे तुलनात्मक विधि भी कहते हैं।

इस विधि मे व्याकरण का ज्ञान अध्ययन के साथ ही चलता है।

यह विधि सरल से कठिन की ओर शिक्षण सूत्र पर आधारित है।

इसमे प्रथम भाषा व द्वितीय भाषा मे समानता को याद न कराकर बालकों को असमानताओं को याद कराया जाता है।

यह विधि माध्यमिक तथा उच्च माध्यमिक स्तर पर उपयोगी है।

2) व्याकरण अनुवाद विधि:-
प्रवर्तक - द॰ भरतीय विद्वान श्री राम कृष्ण गोपाल भण्डारकर ।

अन्य नाम - भण्डारकर विधि ।
द्वितीय भाषा शिक्षण की सबसे प्रचलित व प्राचीनतम विधि है।
इसमे बालकों को सबसे पहले द्वितीय भाषा की व्याकरण पढाई जाती है इसके पश्चात गहनतम जानकारियाँ दी जाती हैं।
फिर द्वितीय भाषा के नियमों के बारे मे बताया जाता है।
इसके पश्चात प्रथम भाषा का अनुवाद द्वितीय भाषा में कर दिया जाता है।

इसमे बालक का सैद्धांतिक पक्ष तो मजबूत हो जाता है परंतु बालक का व्यवहारिक पक्ष कमजोर रह जाता है।

यह विधि अनुवाद के सिद्घांत पर आधारित है।

3) पाठ्यपुस्तक प्रणाली:-
अमनोवैज्ञानिक विधि है।
इसे सुग्गा प्रणाली भी कहते हैं।

इसे तोता प्रणाली भी कहते हैं।
इसमे आने वाले बड़े बड़े नियमों को रटा दिया जाता है।

4 ) समवाय या समवेत या समूह विधि:-
मनोवैज्ञानिक विधि है।
समवाय का अर्थ होता है- समूह मे साथ साथ।

पहली बार फ्रावैल ने 1840 मे एक विचार दिया था कि संसार का सारा ज्ञान एक ही है परंतु हमने इसे अलग अलग भागो मे बांट रखा है। इसलिए शिक्षा प्रणाली मे चाहिए कि एक बालक को सभी क्षेत्रों का ज्ञान समन्वित रूप से दिया जाना चाहिए।

यह विधि पाठ के सभी बिन्दुओं को साथ मे लेकर चलती है। इसलिये इसे समवाय विधि कहते हैं।
इस विधि मे गद्य पद्य आदि की शिक्षा के साथ साथ व्याकरण की भी शिक्षा दी जाती है।
थौरनडाईक गैट्स जॉन डिवी ने भी इनके विचार का समर्थन किया

भारत मे चलने वाली बुनियादी शिक्षा की अवधारणा भी शुरु हुई।





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